खुद को अल्संख्यक बताने वाले वह जिनकी विश्वभर में जनसंख्या दूसरे स्थान पर है।(सांकेतिक चित्र, Pixabay)
खुद को अल्संख्यक बताने वाले वह जिनकी विश्वभर में जनसंख्या दूसरे स्थान पर है।(सांकेतिक चित्र, Pixabay)

“अल्पसंख्यक का रोना रोने वाले अल्पसंख्यक नहीं”

अल्पसंख्यक या माइनॉरिटी यह शब्द आय-दिन ख़बरों में पढ़ी या सुनी जाती हैं। किन्तु क्या हमें अल्पसंख्यक होने असल मतलब ज्ञात है? अगर हिन्दू को बहुसंख्यक बताया जा रहा है तो क्यों साल दर साल उनकी जनसँख्या में कटौती हो रही है? आज वही अल्पसंख्यक सरकारी फायदा और आरक्षण का लुफ्त तो उठा रहें हैं, किन्तु वह बेरोज़गारी और विश्वविद्यालयों में सीट कम होने का विलाप भी करते हैं और सरकार की व्यवस्था को कोसते हैं?

यह सभी सवाल शुरुआत में इसलिए पूछे गए हैं क्योंकि अंत में आप हमें किसी पंथ या संप्रदाय का ठेकेदार न बता दें। आज यह काम कई लोग कर रहें हैं। गोदी मिडिया, भगवा आतंकवाद, इस्लामोफोबिया यह सभी शब्द इन्ही विक्रेताओं और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों की ही देन है। लिबरल यानि उदार सोच रखने वाले व्यक्तित्व के सामने जब कोई आरक्षण और अल्पसंख्यक का मुद्दा उठाता है तो उन्हें केवल एक ही तबके पर कटाक्ष करने की सूझती है और हम उसे उदारवादी सोच मान लेते हैं। विद्यालयों में हिंदी भाषा बोलना वर्जित है किन्तु कविता उर्दू शब्द के बिना नही लिखा जा सकता, कोई कहता है उर्दू जैसी मधुर और कोई भाषा नहीं, किन्तु उन्हें न तो उर्दू लिखना आता है और न ही पढ़ना। ग़ालिब की शायरियों से जो दो शब्द सीखे उसी इन सबकी उर्दू का शब्दकोश भर जाता है।

साल 2011 तक की जनगणना पर अगर हम नज़र दौड़ाएंगे तो एक न एक बार आपको भी ताज्जुब होगा कि हर 10 साल में हिन्दुओं की जनसंख्या 84.1% से 79.8% पर आ गई है। वहीं इस्लाम में हर 10 साल में वृद्धि हुई है। ईसाई धर्म जैसे का तैसा है 2.3% पर, सिख धर्म की जनसंख्या में भी कटौती आई है जो कि अब 1.72% है। गौर करने वाली बात यह है कि जो अन्य श्रेणी में आए हुए धर्म हैं उनमे तेजी से वृद्धि हुई है।

धर्म श्रेणी1951 %1961 %1971 %1981 %1991 %2001 %2011 % 
हिन्दू 84.1%83.45%82.73%82.3%81.53%80.46%79.8%
इस्लाम 9.8%10.69%11.21%11.75%12.61%13.43%14.23%
इसाई 2.3%2.44%2.6%2.44%2.32%2.34%2.3%
सिख 1.79%1.79%1.89%1.92%1.94%1.87%1.72%
अन्य 0.43%0.43%0.41%0.42%0.44%0.72%0.9%
बौद्ध 0.74%0.74%0.7%0.7%0.77%0.77%0.7%
जैन0.46%0.46%0.48%0.47%0.4%0.41%0.37%

उपरिलिखित सूची से आप यह अंदाज़ा लगा सकते हो कि किस तरह एक धर्म हर 10 साल में लगभग 10 गुना बढ़ रहा है। यह सभी आंकड़ें सरकारी हैं। देश आज़ाद होने के 1951 में पहली जनगणना की गई। हालाँकि बटवारे के कारण सीमाओं का बटवारा और जनता से अपने घर का बटवारा हुआ। लेकिन आश्चर्य इस बात की है कि आज़ादी के बाद सभी धर्मों की जनसंख्या में कटौती हुई और घटना बढ़ना हुआ। किन्तु हिन्दू धर्म लगातार घटना और इस्लाम लगातार बढ़ना एक संदेह को उत्पन्न कर रहा है। वह यह सवाल उठाने पर मजबूर कर रहा है कि क्या लव-जिहाद को इसी सरकार ने गंभीरता से लिया है? क्या धर्मपरिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दों को बरगलाया गया है?

इस्लाम धर्म की जनसंख्या साल दर साल दर साल वृद्धि हो रही है।(Pixabay)

एक देश में इस्लाम धर्म का 14.23% होना यह ठोक कर बता रहा है कि अल्पसंख्यक का पत्ता सिर्फ वोटों के लिए खेला जा रहा है। आरक्षण को कब का ख़त्म कर दिया गया होता, अगर राजनीति और वोटों को मोह न होता।

भारतीय जनता पार्टी के उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज ने अब कहा है कि "पाकिस्तान की तुलना में भारत में मुस्लिम आबादी अधिक है, इसलिए मुसलमानों के अल्पसंख्यक दर्जे को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया जाना चाहिए। मुसलमानों को अब खुद को हिंदुओं का छोटा भाई-बहन समझना चाहिए और देश में उनके साथ रहना चाहिए।"

साक्षी महाराज के इस बयान पर विवाद होना तय है किन्तु इस बात को झुटला भी नहीं सकते की जिस देश की 96.5 मुसलमान है उसकी तुलना भारत में रह रहे मुसलमान संख्या में अधिक हैं। तो यह अल्पसंख्यक का रोना क्यों?

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