अब मछलियां करेंगी गंगा को प्रदूषण मुक्त

प्रदूषण के बढ़ने से ना केवल मनुष्य परंतु पर्यावरण को भी हनी पहुंच रही है। (wikimedia commons)
प्रदूषण के बढ़ने से ना केवल मनुष्य परंतु पर्यावरण को भी हनी पहुंच रही है। (wikimedia commons)

गंगा को स्वच्छ करने के अभियान में सरकार कर रही है मेहनत। आए दिन प्रदूषण बढ़ता जा रहा है जिसे लेकर सरकार भी चिंतित है। प्रदूषण के बढ़ने से ना केवल मनुष्य परंतु पर्यावरण को भी हनी पहुंच रही है। गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार प्राकृतिक तरीके अपनाने जा रही है। इसके तहत नदी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करने की कोशिश में नदी में विशेष प्रकार की मछलियां छोड़ी जाएंगी। 'नमामि गंगे' कार्यक्रम जून 2014 में 20,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ केंद्र सरकार द्वारा एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया एक एकीकृत संरक्षण मिशन है।

'नमामि गंगे' योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा योजना बनाई है। नदियों की पारिस्थिति के तंत्र को मजबूत करने और प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार गंगा में 15 लाख मछलियां छोड़ेंगी। 'नमामि गंगे' योजना के तहत गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार के आदेश पर मत्स्यपालन विभाग के द्वारा गंगा में विभिन्न प्रजाति की मछलियों को छोड़ने की योजना बनाई गई है। उत्तर प्रदेश के 12 ज़िलो में ये मछलियां छोड़ी जाएँगी। 'नमामि गंगे' प्लान के तहत गंगा में मल-जल जाने से रोकने के लिए एसटीपी का निर्माण होगा। गंगा टास्क फॉर्स ,समेत गंगा को स्वच्छ और सुरक्षित करने के लिए सभी प्रयास कर रहे है, जिसमें योगी सरकार को सफलता भी मिल रही है। अब गंगा के इको सिस्टम को बरकरार रखते हुए, गंगा को साफ रखने के लिए मछलियों का इस्तेमाल होगा। सरकार 12 जिलों में 15 लाख मछलियां नदियों में छोड़ेगी। जिसमे गाजीपुर ,वाराणसी ,मिजार्पुर ,प्रयागराज ,कौशाम्बी ,प्रतापगढ़ ,कानपुर ,हरदोई ,बहराइच ,बुलंदशहर ,अमरोहा ,बिजनौर जिले शामिल है। पूर्वांचल में वाराणसी और गाजीपुर में 1.5-1.5 लाख मछलियां गंगा नदी में छोड़ी जाएंगी।

'नमामि गंगे' कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया एक एकीकृत संरक्षण मिशन। (pixabay)

प्रमुख सचिव नमामि गंगे अनुराग श्रीवास्तव कहते हैं "गंगा की स्वच्छता और भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए समग्र प्रयास किए जा रहे हैं। ये भी उसी का एक हिस्सा है।" मत्स्य विभाग के सहायक निर्देशक एन एस रहमानी ने बताया कि "गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरकरार रखने के लिए अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती है। यह मछलियां नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती है। ये मछलियां गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती है, साथ ही यह जलीय जंतुओं के लिए भी लाभकारी होती है।"

उन्होंने आगे बातया कि "गंगा में अधिक प्रदूषण से मछलियो की संख्या कम होती जा रही है। 20 सालो से लगातार नदियों में मछलियां घट रही है। जो अब 20 प्रतिशत रह गई है। इसमें रोहू ,कतला व मृगला (नैना)नस्ल की मछलियां गंगा में डाली जाएंगी, जो गंगा का पानी स्वच्छ करेंगे।" उन्होंने बताया कि "4 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में मौजूद लगभग 15 सौ किलो मछलियां 1 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रोजन वेस्ट को नियंत्रित करती है"। इसलिए सरकार ने गंगा में भी लगभग 15 लाख मछलियों को प्रवाहित करने का फ़ैसला लिया है। हर दिन गंगा में काफी मात्रा में नाइट्रोजन गिरता है। यदि नाइट्रोजन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे अधिक होता है तो यह जीवन के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है। इसके बढ़ने से मछलियों की नस्ल आगे नहीं बढ़ पाती और वह अंडे नहीं दे पाती है। इससे इनकी प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित होती है।

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