2020 Flashback : कॉमन मैन के चश्मे से 2020 की सबसे चर्चित खबरें

2020 Flashback : कॉमन मैन के चश्मे से 2020 की सबसे चर्चित खबरें
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हुआ यूँ कि एक दिन प्रधानमंत्री जी ने जनता से निवेदन कर दिया कि 22 मार्च को हम सभी अपने घरों के दरवाज़े पर लक्षमण रेखा खींच लें। पहली दफा लगा कि यह सब एक दो दिन का तमाशा होगा फिर जो जैसा था वैसा पटरी पर लौट आएगा! मगर देखते ही देखते यह पूरा साल ही तर्क-वितर्क से परे खिसक लिया।

बहरहाल महामारी का आतंक तो जगज़ाहिर है मगर उसके अलावा भी 2020 में ऐसी कई बातें हुईं, जो लोगों के बीच चिंतन और बहस का विषय बनी रहीं, जिन्हें हम 2020 Flashback की मदद से पुनः याद करेंगे…मगर कॉमन मैन के चश्मे से।

दिल्ली का सांप्रदायिक दंगा

भारत की राजधानी दिल्ली में फरवरी में हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से एक बार फिर से देश में धार्मिक भय पनपने लगा था; खासकर महानगर दिल्ली में। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ चल रहे धरने ने अचानक ही विकराल रूप धर लिया था। दंगों में मरने वालों की संख्या 53 बताई गयी थी।

24 फ़रवरी से दिल्ली के पूर्वोत्तर इलाके में हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे होने लगे। कई जगह वाहनों को जलाया गया। सड़कें जाम कर दी गयीं। कितनी ही इमारतों को हवन कुंड में डाल दिया गया।

दिल्ली का सांप्रदायिक दंगा। (VOA)

चकित करने वाली बात यह रही कि जहाँ दिल्ली में एक तरफ लोग अपनी पहचान और ज़िन्दगी के लिए लड़ते दिख रहे थे, वहीं आगरा में नमस्ते ट्रम्प के पोस्टर्स और होर्डिंग्स लग रहे थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 24 – 25 फरवरी के बीच भारत दौरे पर थे। दंगों की ज्वाला 29 फरवरी को जा कर शांत हुई थी। मगर उससे उठे धुंए ने भारत में मुस्लिमों की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया।

फैले उपद्रव में कई पत्रकारों पर भी हमले किए गए। जिसके बाद से पत्रकारों ने ट्विटर पर अपना आक्रोश व्यक्त किया। वैसे इस तरह के दंगों में मुस्लिम का मुस्लिम पर वार करना और हिन्दू का हिन्दू पर वार करना देखा जा सकता है। फिर ऐसे मसअले में लड़ाई किसकी किससे है, कौन तय करेगा? गौर करने वाली बात एक और है कि इन दंगों में शामिल कुछ लोगों को यह भी ना इल्म था कि यह दंगा फसाद किस लिए है। कुछ लोग तो मात्र भाईचारे के नाम पर कट-मरने को तैयार थे…वाह रे जमूरे!

हाथरस

उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 वर्षीय दलित लड़की ने अपने साथ हुए कथित सामूहिक दुष्कर्म और दयनीय अत्याचारों के बाद दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया था। जिसके उपरान्त पीड़िता के चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। पहले तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने लड़की के साथ किसी भी तरह के दुष्कर्म से इनकार कर दिया था। मगर सीबीआई द्वारा जारी की गयी चार्जशीट में यह साफ़ कर दिया गया है कि पीड़िता के साथ हुए यौन उत्पीड़न से इनकार नहीं किया जा सकता।

इसे उत्तर प्रदेश पुलिस की लापरवाही कहें, या डर? यह तो मैं नहीं जानता मगर घटना स्थल पर मीडिया को प्रतिबंधित कर के योगी सरकार ने ईमानदारी का सबूत तो पेश नहीं किया। हाथरस कांड में कई पहलुओं पर बात छिड़ने लगी थी जिसमें से एक था दलितों और ठाकुरों के बीच का जाति युद्ध। पीड़िता के परिवार के गले में भी झूठी बयानबाजी की सुई लटकाई जा रही थी।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने पदेर रात पीड़िता का दाह संस्कार कर दिया था।

हाथरस मामले ने देश के लोगों में क्रोधाग्नि तब प्रज्वलित की जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने परिवार की मंजूरी के बिना ही देर रात पीड़िता का दाह संस्कार कर दिया था। फिर देखते ही देखते योगी सरकार पर दबाव बनने लगा। विपक्ष की पार्टियां हाथरस पीड़िता के लिए अपनी सहानुभूति दर्ज कराने लगी। स्थिति इतनी दयनीय है कि आज कल राजनेताओं के हर कदम, हर फैसले से केवल सियासत की बू आती है। लगता है कि जब कुर्सी के लिए खून हो सकता है, तो दो बूँद आंसुओं का गिराना कौन सी बड़ी बात है।

बॉलीवुड

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि बॉलीवुड में सिर्फ कुछ लोग नहीं बल्कि लाखों लोग काम करते हैं, लाखों प्रतिभाशाली कलाकार यहां आना चाहते हैं, अगर हम बॉलीवुड को यूँ ही बदनाम करते रहेंगे तो यह लाखों टैलेंटेड लोग कहाँ जाएंगे? उनका कथन चिंतन योग्य इसलिए है क्योंकि इस साल लोगों ने बॉलीवुड की जम कर खिल्ली उड़ाई है। आलिया भट्ट और संजय दत्त स्टारर फिल्म 'सड़क 2' का यू ट्यूब पर सबसे ज़्यादा डिसलाइक बटोरने का रिकॉर्ड बनना इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करता है।

दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत

दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से प्रभावित हो कर लोगों ने बॉलीवुड को कटघरे में खड़ा कर दिया। सुशांत सिंह की मौत ने एक बार फिर से बॉलीवुड में नेपोटिज़्म का विषय छेड़ दिया था। फलस्वरूप, बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत ने भी अपनी आवाज़ को पुनः बुलंद किया। कंगना ने मूवी माफिया की पोल खोलते हुए महाराष्ट्र पुलिस और शिवसेना पर भी तीर चला डाले। जिसकी वजह से कंगना और शिव सेना के बीच ज़बानी जंग छिड़ गई। अब अचानक से बीएमसी द्वारा कंगना का घर तोड़ने के पीछे कोई तो कारण रहा होगा?

दिवंगत अभिनेता की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स मामले में एनसीबी ने हिरासत में ले लिया था। रिया चक्रवर्ती को 28 दिनों के बाद रिहा किया गया। इसके बाद बॉलीवुड में ड्रग्स के मामले में और भी कई हस्तियों पर ऊँगली उठी और कई लोगों से पूछताछ भी की गई। गौरतलब है कि एनसीबी ने इससे पहले बॉलीवुड पर कभी इस तरह से छापा नहीं मारा था। ड्रग्स की इसी खोज बीन के तहत एनसीबी ने कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया को गांजा रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।

लगता है कि इस साल बॉलीवुड पर शनि भारी था।

भारत-चीन झड़प

साल 2020 की बात हो और चीन का ज़िक्र ना आए, यह भला कैसे मुमकिन है। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद की वजह से गतिरोध कायम है। दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकल पाया है। सिर्फ इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने कई बार जम्मू एवं कश्मीर मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप करना चाहा जिसके जवाब में भारत ने उसे सीधे मुंह से चेतावनी दे दी।

चीन को एक सीधा संदेश देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारत, सीमा पर कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है और हर हाल में अपनी संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करेगा। 

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

मोदी सरकार ने लद्दाख सीमा पर चीन से टकराव के हालात पैदा होने के बाद 29 जून 2020 को लोकप्रिय एप टिकटॉक, वीचैट, यूसी ब्राउजर सहित कुल 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद भी चीनी एप्प्स को बैन करने की क्रिया चलती रही। आईएएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत द्वारा नवीनतम प्रतिबंध के तौर पर 43 चीनी मोबाइल एप्लिकेशन पर प्रतिबंध लगाए जाने से व्यथित चीन ने भारत सरकार से पारस्परिक हित में व्यापार संबंधों को बहाल करने का आग्रह किया। शायद चीन यह भूल गया कि कांच टूट जाने के बाद पहले सा कभी नहीं होता।

इस बार सरकार के साथ साथ, कॉमन मैन द्वारा भी चीन के प्रति सख्त रवैया अपनाया गया। लोग अब चीनी खिलौने या अन्य कोई भी चीनी वस्तु खरीदने से पहले एक बार ज़रूर सोचते हैं। चीन को खबर होनी चाहिए कि चाँद पर सब्जी उगाने के लिए, धरती की ज़मीन बंजर करोगे तो अंत में पछताने के अलावा दूसरा कोई विकल्प सामने नज़र ना आएगा।

बाबरी मस्जिद विध्वंस

लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 30 सितंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया, जिनमें भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कई अन्य लोग शामिल हैं।

फैसले वाले दिन कोई विवाद ना हो, इसलिए लखनऊ को हाई अलर्ट पर रख दिया गया था। गौरतलब है कि हर हिन्दू और हर मुस्लिम ने इस फैसले का स्वागत किया। और सड़कों पर ना तो गाड़ियां जलीं, ना गोलियां चलीं। भई अब 500 साल पुराने मुद्दे पर, हम 2020 के आधुनिक लोग भला क्यों लड़ने लगें। मगर फिर भी अभी ऐसे कई लोग हैं जो इस फैसले से ख़ुश्क हैं।

26 जनवरी से प्रस्तावित मस्जिद का निर्माण शुरू होने की उम्मीद है।

जहाँ एक तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार रामनगरी अयोध्या का कायाकल्प करने के लिए नित नए कदम उठा रही है और अयोध्या में राममंदिर निर्माण के साथ ही यहां पर बनने वाली मस्जिद का डिजाइन इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन द्वारा जारी भी कर दिया गया है। वहीं दूसरी तरफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा है कि अयोध्या के धनीपुर में प्रस्तावित मस्जिद, वक्फ अधिनियम और शरीयत के खिलाफ है।

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किसान आंदोलन

आने वाले सालों में भारत में जब भी 2020 को याद किया जाएगा, उस वक़्त किसान आंदोलन का ज़िक्र ज़रूर होगा। दिल्ली-हरियाणा सीमा पर बैठे लाखों किसानों के आंदोलनकारी बर्ताव को महीने भर से ज़्यादा हो चुका है और अब यह 2021 में कब जाकर थमेगा, यह तो सरकार और किसान संगठन के बीच किसी सफल वार्ता के उपरान्त ही ज्ञात होगा। देश भर के किसान अलग अलग जगहों पर केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज़ बुलंद किए बैठे हैं। किसानों की मांग स्पष्ट है; हमारे देश का किसान कृषि कानूनों का खंडन चाहता है।

जिसके जवाब में भारतीय जनता पार्टी ने किसान चौपाल लगा कर किसानों को नए कृषि कानूनों से होने वाले लाभ से अवगत कराने का अभियान चलाया है।

लंदन में भारत के किसानों के समर्थन में सड़कें जाम कर दी गईं थीं। (VOA)

ऐसे में किसान आंदोलन की आड़ में कोई केंद्रीय कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़ दे रहा है, कोई सत्तारूढ़ पार्टी को गिराने की कोशिश में लगा है। अब इन सब के बीच किसानों के लिए कौन सा हल छिपा है, भविष्य में यह देखने वाली बात होगी।

साल 2020 में और भी ऐसी कई बातें हुई जिनमें से कुछ ऐतिहासिक रहीं, कुछ कष्टकारी भी। परन्तु कॉमन मैन के चश्मे से यह साल बेहतरीन भी रहा क्योंकि हमने रिश्तों के साथ साथ खुद से खुद तक की महत्वता को जाना है।

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