गाय के चमड़े को रक्षाबंधन से जोड़ने कि कोशिश में था PETA इंडिया, विरोध होने पर साँप से की लेखक शेफाली वैद्य कि तुलना

PETA इंडिया का रक्षाबंधन से जुड़ा लेदर फ्री कैम्पेन(Picture: PETA India, Twitter)
PETA इंडिया का रक्षाबंधन से जुड़ा लेदर फ्री कैम्पेन(Picture: PETA India, Twitter)
Published on
3 min read

आज ट्वीटर पर मचे एक बवाल में PETA इंडिया का हिन्दू घृणा खुल कर सबके सामने आ गया है। ये बात जगजाहिर है की PETA इंडिया, कई सालों से हिन्दू धर्म और हिन्दू त्योहारों पर खुल कर निशाना साधते आई है। सीधे तौर पर नहीं, बल्कि जानवरों की रक्षा के आड़ में PETA इंडिया ने कई बार हिन्दू त्योहारों पर निशाना साधा है, जब की ईद जैसे इस्लामिक त्योहारों पर, कटने वाले बकरों को लेकर PETA इंडिया की ज़ुबान सिल जाती है। 

इस बार इस विवाद की शुरुआत 15 जुलाई को हुई, जब PETA इंडिया के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर, 'गाय की रक्षा' की अपील करते हुए एक ट्वीट डाला गया। लेकिन वो आम अपील नहीं थी, बल्कि उस अपील को ऐसे प्रस्तुत किया गया था, जैसे गाय को हिन्दू धर्म मानने वाले लोगों व हिन्दू त्योहार से बचाने की ज़रूरत है।

इस अपील में गाय कहती हुई नज़र आ रही है की, "इस रक्षा बंधन कृपया कर के मुझे बचाएँ, चमड़े का इस्तेमाल ना करें"। हालांकि, सीधे तौर पर देखें तो इसमें कोई तकलीफ़ नहीं है, लेकिन सवाल ये है की, हिन्दू त्योहार का ज़िक्र करते हुए, "मुझे बचाओ" जैसे शब्दों का प्रयोग आखिर PETA इंडिया ने क्यूँ किया। क्या इससे ये दर्शाने की कोशिश की जा रही थी की, 'गाय पर हिंदुओं द्वारा बर्बरता की जाती है'?

आपको बता दें की, अलग अलग धर्मों में ऐसे कई त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें जानवरों को मार कर खाने का रिवाज़ है। जैसे, इस्लाम में ईद के मौके पर बकरे को मार कर खाने की प्रथा है तो वहीं, अमरीका जैसे देशों में 'थैंक्सगिविंग' के मौके पर 'टर्की' नामक पक्षी को खाने का रिवाज़ है। कायदे से देखा जाए तो, ईद के मौके पर मुसलमानों से बकरे को ना मरने की अपील, या थैंक्सगिविंग के मौके पर इसाइयों से टर्की ना खाने की अपील करना हर तरीके से सटीक मालूम पड़ता है, लेकिन रक्षा बंधन जैसे त्योहार को केंद्र में रख कर गाय को ना मरने की अपील करना कौन से दृष्टिकोण से सही है। जानकारी के लिए आपको बता दें की, हिन्दू धर्म में, रक्षा बंधन के मौके पर गाय को मारना तो दूर, किसी भी तरह के मांसाहारी पदार्थों के सेवन तक पर कड़ा प्रतिबंध होता है। इन सब में सबसे महत्पूर्ण बात ये है की, हिन्दू समुदाय के लोग ही हैं, जो दूसरे धर्म के विपरीत सदियों से गाय को मारे जाने का विरोध करते आए हैं। यहाँ तक की सनातन धर्म में गाय को माँ का दर्जा दिया गया है। ऐसे में PETA द्वारा हिंदुओं से ही ऐसी अपील करने का मकसद, हिंदुओं का उपहास करना प्रतीत होता है। इस ट्वीट पर जब एक ट्वीटर यूज़र ने PETA इंडिया के दोगलेपन को उजागर किया तो, PETA इंडिया का आधिकारिक ट्वीटर हैंडल, एक इंटरनेट ट्रोल की तरह बर्ताव करने लगा। 

इसके बाद कई और लोगों ने भी PETA इंडिया के इस दोगलेपन पर सवाल करना शुरू कर दिया। लोगों का कहना था की, हर बार हिन्दू धर्म या हिन्दू त्योहारों को ही अपने प्रपंचों का केंद्र क्यूँ बनाया जाता है, जबकि ईद जैसे इस्लामिक त्योहार पर, जब लाखों की संख्या में बकरे काटे जाते हैं, उस पर PETA इंडिया खुल कर क्यूँ नहीं बोलती। 

इसी बीच, अपने न्यूनतम स्तर को छूते हुए, PETA इंडियन ने लेखक शेफाली वैद्य पर निजी हमला शुरू कर दिया। शेफाली वैद्य के महीनों पुराने एक ट्वीट (शेफाली, खुद स्वीकार कर रही हैं की वो मछली आदि का सेवन करती हैं) को निकाल कर PETA इंडिया ने उस पर जवाब देते हुए लिखा की, "खुद मछली व मुर्गा खाते हो, लेकिन मुसलमानों से उम्मीद करते हो की वह बकरा खाना छोड़ दें?"

इसके बाद, कई और ट्वीट में एक ट्रोल के माफिक, PETA इंडिया ने शेफाली वैद्य पर कई निजी हमले किए। एक ट्वीट में तो PETA इंडिया ने लेखक शेफाली वैद्य की तुलना एक साँप से कर दी। उस ट्वीट में PETA ने शेफाली वैद्य पर निशाना साधते हुए लिखा की, "आपकी तरह, साँप भी जीवित प्राणी है, हम उसकी भी मदद करते हैं"। 

3 दिनों पहले, गायक मालिनी अवस्थी द्वारा विरोध जताने पर भी भीड़ गया था, PETA इंडिया।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com