लौहपुरुष सरदार पटेल का राजनीतिक मनोभाव

वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद शहर में हुआ था। (Wikimedia Commons)
वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद शहर में हुआ था। (Wikimedia Commons)
Published on
2 min read

हम हर साल सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाते हैं। भारत को अखंड भारत की ओर ले जाने में उनकी भूमिका अतुलनीय रही है।

हालाँकि, पटेल की गिनती क्रांतिकारियों में नहीं होती मगर वह आज सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए एकता का प्रतीक हैं।

उनका मानना था कि कांग्रेस का लक्ष्य ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के भीतर अपनी आन को कायम करने की ज़िद होनी चाहिए ना की पूर्ण स्वतंत्रता। महात्मा गाँधी की ही तरह, पटेल ने भी ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में आज़ाद भारत की भागीदारी में लाभ देखा, बशर्ते कि भारत को समान दर्जा मिले।

समाजवादी विचारों के समर्थक पटेल, स्वतंत्रता के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता की शर्त के खिलाफ थे, इसी कारण से गाँधी के कहने पर 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के लिए जवाहरलाल नेहरू को चुना गया। और आगे चल कर गाँधी के ही दबाव ने उन्हें इस पद से हमेशा वंचित रखा। अगर 1945-46 में गाँधी का दबाव ना होता तो, पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते।

पटेल, जवाहरलाल नेहरू की देश में आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने की हठ से असहमत थे। उन्होंने सदा ही पारंपरिक हिंदू मूल्यों में निहित एक रूढ़िवादी सोच को अपना समर्थन दिया था।

सरदार पटेल और महात्मा गांधी। (Wikimedia Commons)

स्वतंत्रता के पहले तीन वर्षों के दौरान, पटेल ने उपप्रधान मंत्री, गृहमंत्री, सूचना मंत्री और राज्यमंत्री के रूप में देश की सेवा की। वह भारत को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे।

कहते हैं कि उनके परिवार वालों का मानना था कि पटेल आगे चल कर कोई आम नौकरी ही करते नज़र आएंगे। मगर 1917 में महात्मा गाँधी से हुई उनकी मुलाक़ात ने पटेल को स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा कर दिया।

1917 से 1950 तक सरदार पटेल भारतीय राजनीतिक पट्टी पर हावी रहे। पटेल ने भारतीय संविधान की नींव रचने में अपना महत्वपूर्ण योदान दिया।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com