Sita Navami 2022: भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जनहितकारी भयहारी।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष सीता नवमी 20 मई से लेकर 21 मई 2021 तक मनाया जाएगा। (NewsGram Hindi)
हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष सीता नवमी 20 मई से लेकर 21 मई 2021 तक मनाया जाएगा। (NewsGram Hindi)
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भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जनहितकारी भयहारी।अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी।।

मिथिला नरेश राजा जनक और माता सुनयना जी की पुत्री और अयोध्या नरेश राजा रामचंद्र जी की धर्मपत्नी, माता सीता का प्राकट्य अर्थात उनका जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। तभी से इस दिन को प्रत्येक वर्ष भारतीय संस्कृति में सीता नवमी (Sita Navami 2022), सीता जयंती (Sita Jyanti) या जानकी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हिन्दू पंचांग (Hindu Panchang) के अनुसार, इस वर्ष सीता नवमी 10 मई को मनाया जा रहा है। माना जाता है कि, इस दिन सभी विवाहित महिलाएं उपवास रखती हैं और अपने घर – परिवार की सुख – समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन व्रत के दौरान माता सीता और भगवान रामचंद्र जी की पूजा – अर्चना की जाती है।

माता सीता (Mata Sita) की जन्म की कथा इस प्रकार है कि, हिन्दू धर्म के धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एक बार मिथिला नरेश महाराज जनक जी खेत में हल जोत रहे थे। उसी दौरान उन्हें मिट्टी के नीचे एक कलश मिला, राजा जनक जी ने देखा की उसमें एक सुंदर कन्या है। राजा जनक जी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह उस कन्या को अपने साथ जनकपुर ले गए। क्योंकि वह कन्या मिट्टी से जन्मी थी और हल के आगे के भाग को सीता कहा जाता है। तभी से उस सुंदर कन्या का नाम सीता रखा गया।

जानकी नवमी (Sita Navami 2022) से जुड़ी धार्मिक मान्यता यह भी है कि, माता जानकी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है और धन – समृद्धि की देवी लक्ष्मी इस दिन माता सीता के रूप में अवतरित हुई थीं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के बालकांड में माता सीता का सुंदर वर्णन किया है। (Wikimedia Commons)

गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) जी ने रामचरितमानस (Ramcharitmanas) के बालकांड में माता सीता का सुंदर वर्णन किया है। तुलसीदास जी ने, सीता जी की वंदना करते हुए उन्हें, समस्त जगत का कल्याण करने वाली, सभी प्रकार के क्लेश को हरने वाली, पालनकर्ता आदि राम वल्लभा कहकर सुशोभित किया है।

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।

सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥

अर्थात:- उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली, सम्पूर्ण क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्र जी की प्रियतमा श्री सीता जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

माता जानकी का, त्याग, सेवा, उनका संयम, पति – परायणता, विनयशीलता की भावना भारतीय संस्कृति एवं समस्त नारी जाति के लिए अनुकरणीय है।

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