जय गंगाजल फिल्म के गायक प्रवेश मल्लिक की कहानी, उन्हीं की जुबानी

प्रवेश मल्लिक, गायक/संगीतकार(Image: Wikimedia Commons)
प्रवेश मल्लिक, गायक/संगीतकार(Image: Wikimedia Commons)

नेपोटिज़्म के दौर में बॉलीवुड जैसे फिल्म उद्योग में टिके रह कर अपना नाम बनाने का सफर बहुत ही कठिन है। लेकिन ये सच है की,  इसी सफर को तय कर कई महारथियों ने अपना मुकाम हासिल किया है, और उन्ही में शामिल हैं, बॉलीवुड के बहुचर्चित गायक और संगीतकार प्रवेश मल्लिक। 

बिहार के एक छोटे से जिले, मधुबनी से आकर बड़े शहर, मुंबई में अपनी पहचान बनाने वाले प्रवेश मल्लिक बताते हैं की उन्हे बचपन से ही संगीत में रुचि थी। परिवार की संगीत से जुड़ी पृष्ठभूमि ने उनकी इस रुचि को और भी बल देने का काम किया। प्रवेश बताते हैं की उनके दादाजी तबला बजाया करते थे, तो वहीं पिता अब भी गाया करते हैं। उनके 5 भाइयों में से लगभग सभी का संगीत से जुड़ाव रहा है। उनके बड़े भाई का मैथिली लोक संगीत में काफी नाम है, तो वहीं उनसे छोटे वाले तबलावादक हैं, उनके भाइयों में तीसरे वाले शिक्षक और गायक दोनों ही हैं, जब की प्रवेश से छोटे वाले भाई, दिल्ली में साउंड इंजीनियर का काम करते हैं, और बाकी प्रवेश मल्लिक तो प्रवेश मल्लिक हैं ही। 

प्रवेश मल्लिक, मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं और उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषा मैथिली है। प्रवेश के पिता बिहार से हैं तो वहीं उनकी माँ नेपाल से हैं। यही वजह है की प्रवेश मल्लिक की हिन्दी के साथ साथ मैथिली और नेपाली भाषा पर भी मजबूत पकड़ रही है। उन्होने इन दोनों क्षेत्रीय भाषाओं में भी कई गाने निकाले हैं जिन्हे काफी सराहा गया है।

बिहार की क्षेत्रीय भाषा 'मैथिली' को शहर के युवाओं से जोड़ने का लक्ष्य-

प्रवेश मल्लिक ने हमसे बात करते हुए बताया की वो फिलहाल मुंबई में ही हैं, और कोरोना के कारण देश भर में लगे लॉकडाउन के दौरान भी उनहोंने अपने संगीत पर लगातार काम किया है। इस दौरान उनहोंने चार मैथिली गानों को बनाया और उन्हे यूट्यूब पर डाला है। मिथिलांचल क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले नौजवान पीढ़ी के लोग जो शहर में बस चुके हैं, उनका अपने क्षेत्रीय भाषा मैथिली से संपर्क टूट गया है। लेकिन प्रवेश मल्लिक, मैथिली बोल को आधुनिक संगीत में पिरो कर ऐसा पेश करने की कोशिश लगातार करते हैं,  जिससे नौजवान पीढ़ी के लोग आकर्षित हो कर अपने क्षेत्रीय संगीत से जुड़ सकें। प्रवेश मल्लिक ने बताया की, अमरीका में रह रहे प्रवासी भारतीय लोगों का भी उन्हे कॉल आया था जिन्होंने उनके मैथिली गाने की तारीफ करते हुए बताया की, उनके बच्चे, जिनका मैथिली से संपर्क टूट चुका था, वो भी इन गानों को बहुत पसंद कर रहे हैं। प्रवेश कहते हैं की, ये उनके लिए बहुत ही गर्व का विषय है। लॉकडाउन के दौरान उनहोंने भारत सरकार के लिए कोरोना से जुड़ा गाना भी बनाया है जिससे लोगों को प्रेरणा मिल सके। 

प्रवेश मल्लिक के शुरुआती दिनों की कहानी-

प्रवेश अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं की, संगीत में रुचि होने के बावजूद वो पढ़ाई में भी काफी अच्छे हुआ करते थे। उनके पिता चाहते थे की वो डॉक्टर बने, जिसकी वजह से, पटना और उसके बाद नेपाल में रह कर वे कई दिनों तक मेडिकल की तैयारी करते रहे। उसी दौरान उन्होनें भारतीय ऐंबेसी में भी अपना नाम निकाला था। लेकिन उस दौरान भी वे संगीत से जुड़े रह कर गाने बनाते रहे, जिनमें से उनके कई एलबम क्षेत्रीय स्तर पर प्रचलित होने लगे। ये देखते हुए, आस-पास के लोगों ने उनके पिता को सुझाव देते हुए कहा था की, "अभी से ही लोग इसे जानने लगे है, इसीलिए अगर ये डॉक्टर बनेगा तो एक ही क्षेत्र तक सिमट कर रह जाएगा, लेकिन संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ेगा तो दुनिया भर में नाम कमाएगा"। 

इसके बाद प्रवेश मल्लिक ने मेडिकल को अलविदा कह दिया और दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। दिल्ली में उन्होनें गांधर्व महाविद्यालय से संगीत की पढ़ाई की, और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से संगीत के विषय में ही मास्टर भी किया। इसी दौरान, संगीत के क्षेत्र से जुड़े और भी कई लोग उन्हे मिले, जिनके साथ मिल कर प्रवेश मल्लिक ने 'सानिध्य' नाम के म्यूज़िकल बैंड की शुरुआत की थी। बक़ौल प्रवेश मल्लिक, बैंड का पहला कार्यक्रम ही बहुत हिट रहा था, जिससे उन्हें , और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। 

प्रवेश मल्लिक बताते हैं की उन्होने अपने गुरु पद्मश्री पंडित मधुप मुद्गल जी से बहुत कुछ सीखा है। हिन्दी, मैथिली और नेपाली के अलावा उनहोंने बंगाली, पंजाबी जैसे अन्य भाषाओं पर भी अपनी पकड़ बनाई और उन गानों को भी कंपोज किया। 13 साल दिल्ली में रह कर संघर्ष करने के बाद 2013 में प्रवेश मल्लिक मुंबई चले आए, जहां पर उनकी मुलाक़ात, बॉलीवुड के बहुचर्चित राजनीतिक फिल्म निर्देशक, प्रकाश झा से हुई।  

प्रवेश मल्लिक का पहला बड़ा ब्रेक-

प्रकाश झा से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी को याद करते हुए प्रवेश बताते हैं की, प्रकाश झा अपनी आने वाली फिल्म 'जय गंगाजल' के लिए ठेठ लोकगीत को गाने और कंपोज करने वाला संगीतकार ढूंढ रहे थे, और उनकी ये खोज प्रवेश मल्लिक पर जा कर खत्म हुई। प्रकाश झा को प्रवेश का स्टाइल काफी पसंद आया था, जिसके बाद उन्होने प्रवेश को 3 दिनों के अंदर, 6 अलग अलग परिस्थितियों से जुड़े 3-3 गानों का स्क्रैच बनाने को कहा था। प्रवेश ने 3 दिनों के अंदर 18 स्क्रैच बना कर तैयार कर दिया, जिसमे से 12 स्क्रैच को फिल्म के लिए चुना गया था। इसके अलावा उन्हे फिल्म में दो गानों को गाने का मौका भी दिया गया। ये प्रवेश मल्लिक के जीवन का पहला बड़ा ब्रेक था। 

फिल्म 'जय गंगाजल का गाना:

इस तरह प्रवेश मल्लिक, संगीत के क्षेत्र में लगातार काम करते रहे, जिसके बाद उन्हे ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बरेली की बर्फी' में भी अपना योगदान देने का मौका मिला। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात आम आदमी पार्टी से निष्कासित और आप एनआरआई सेल के पूर्व संयोजक, डॉ मुनीश कुमार रायज़ादा से हुई। डॉ मुनीश रायज़ादा, शिकागो के रहने वाले डॉक्टर हैं, जिन्होनें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर उनकी आम आदमी पार्टी के चंदे को लेकर कड़े सवाल उठाए थे, जिसके बाद उन्हे पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। 

डॉ मुनीश रायज़ादा से मुलाक़ात और राजनीतिक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़, ट्रांसपेरेंसी:पारदर्शिता के लिए काम-

उस वक़्त डॉ मुनीश रायज़ादा, अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के चंदा चोरी से जुड़े खुलासे को लेकर एक राजनीतिक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़, ट्रांसपेरेंसी: पारदर्शिता, पर काम कर रहे थे, जिसके गानों के लिए उन्हे कंपोजर की ज़रूरत थी। मुनीश रायज़ादा से पहले से जुड़े गीतकार, अनु रिज़्वी के ज़रिए प्रवेश मल्लिक भी उनसे जुड़ गए। प्रवेश मल्लिक ने इस राजनीतिक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ के 2 गानों को कम्पोज़ किया जिसमे से एक गाना 'बोल रे दिल्ली बोल' को गायक कैलाश खेर ने गाया, तो वहीं दूसरा, 'कितना चंदा जेब में आया' गाने को उदित नारायण ने गाया। प्रवेश मल्लिक बताते हैं की, उनका पूरा प्रयास था की वो डॉ मुनीश रायज़ादा की कल्पना को सही धुन दे सकें। 

प्रवेश मल्लिक द्वारा कम्पोज़ किया गया, ट्रांसपेरेंसी: पारदर्शिता का दो गाना:

प्रवेश मल्लिक बताते हैं की उनके परिवार और उनकी पत्नी के निरंतर सहयोग ने उन्हे हमेशा आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया। उनके मुताबिक, हौसला एक दिन में तैयार नहीं होता है, लेकिन कुछ अलग करने की चाह ने उन्हे कभी हार मानने नहीं दिया। 

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