मशहूर पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता, सुंदर लाल बहुगुणा (Sundar Lal Bahuguna) का 21 मई को निधन हो गया। 94 वर्षीय बहुगुणा कोरोना से संक्रमित पाए जाने के बाद उन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था। वह डायबिटीज के भी शिकार थे और कोरोना के साथ ही उन्हें निमोनिया भी हो गया था। इतनी बीमारियों से लड़ने के बावजूद दुनिया भर में मशहूर हुए बहुगुणा आज हमारे बीच से जा चुके हैं।
सुंदर लाल बहुगुणा के निधन पर प्रधानमंत्री मोदी सहित कई नेताओं ने शोक प्रकट किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने ट्वीट के माध्यम से लिखा "श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है।" उनकी सादगी और करुणा की भावना को भुलाया नहीं जा सकता है। वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) ने भी ट्वीट कर शोक प्रकट किया।
क्या था चिपको आंदोलन?
भारत के उत्तरी राज्य, उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले से सन 1973 में यह आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के नाम पर लगातार काटे जा रहे वनों की कटाई को रोकना था। उस समय सरकार द्वारा जंगल की जमीन को एक स्पोर्ट्स कंपनी को दिए जाने का आदेश दिया गया था। जिसके बाद लगभग, रैनी गांव के ढाई हजार से भी अधिक पेड़ों को काट दिया गया था। जिसके विरोध में पूरा गांव उठ खड़ा हुआ था। सुंदर लाल बहुगुणा उनके साथी और कई महिलाओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। धीरे – धीरे इस विरोध ने एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया था, जिसे आज हम "चिपको आंदोलन" (Chipko movement) के नाम से जानते हैं। इस आंदोलन के जनक सुंदर लाल बहुगुणा, गौरी देवी, सुदेशा देवी और बचनी देवी को माना जाता है। एक बार जब सरकार के आदेश के तहत ठेकेदारों को पेड़ों की कटाई के लिए गाँव भेजा गया, तो उस समय पेड़ों को बचाने के लिए सभी महिलाएं पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई थी और उन्होंने कहा "पहले हमे काटो, फिर पेड़ को काटना।"
सभी महिलाएं पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई थी और उन्होंने कहा "पहले हमे काटो, फिर पेड़ को काटना।" (Wikimedia Commons)
दिन – रात पेड़ से चिपक कर महिलाओं ने उस समय पेड़ को काटने से रोक लिया था। जिसके बाद पेड़ को काटने का आदेश सरकार को वापस लेना पड़ा था। हालांकि यह एक आंदोलन जरूर था, लेकिन यह गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित था और उसी के तहत इस आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से चलाया गया था। बिना किसी हिंसा के इस आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाया गया था। जैसे पर्यावरणविदों (Environmentalist) ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें काटने से बचाने के लिए अपना नेतृत्व किया था, आगे चलकर यह देश – दुनिया में प्रसिद्ध हो गया था। पूरी दुनिया के पर्यावरण प्रेमी और पर्यावरण संरक्षण में लगे लोग इस आंदोलन से काफी प्रेरित हुए थे।
गांधीवादी विचारधारा के बहुगुणा ने उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इन पेड़ों को न काटने और जंगल की सुरक्षा बनाए रखने की अपील की थी। जिसके बाद इंदिरा गांधी को वन संरक्षण कानून लाना पड़ा था और इस कानून के अनुसार इन इलाकों के पेड़ों की कटाई को अगले 15 साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था।
चिपको आंदोलन के कारण दुनिया भर में वृक्षमित्र के नाम से मशहूर हुए बहुगुणा, के काम से प्रभावित होकर अमेरिका (America) के फ्रेंड ऑफ नेचर (Friend of Nature) नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत किया था। समाज और पर्यावरण में हित के लिए संघर्ष करने वाले बहुगुणा को 2009 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया था। इसके अलावा राष्ट्रीय एकता पुरस्कार और अन्य कई पुरस्कारों से भी उन्हें नवाजा गया था।