कहते हैं "मनुष्य एवम् समाज" सदैव एक दूसरे के पूरक हैं। समाज के बिना मनुष्य नहीं , मनुष्य के बिना समाज नहीं । जब भी हमारे देश में कोई नया कानून बनता है तो उस पर तर्क – वितर्क करना हर नागरिक का अधिकार है । कानून हमारे अधिकारों के खिलाफ हो तो विरोध करना भी हमारा अधिकार है, लेकिन जब वही आंदोलन हमारे देश की प्रतिष्ठा के किए श्राप बन जाए तो कोई भी देश इससे केसे उभरे । आज हमारी आज़ादी को 73 साल बीत गए हैं। स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के पश्चात भारत में अनेकों सामाजिक आंदोलन हुए । लेकिन छात्र आंदोलन का अपना एक अलग महत्व रहा है ।
वरिष्ठ पत्रकार "रामशरण जोशी" कहते हैं ' आज का युवा भारत का सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है। आज का छात्र और युवा वर्ग ही आने वाले भारत की एक अद्भुत तस्वीर खींच सकता है । लेकिन ये हमारे देश का दुर्भाग्य है की आज का युवा वर्ग अपने उद्देश्य को भूलकर राजनीति के गंद्दे खेल का हिस्सा बनता जा रहा है। जिनकी दृष्टि ' दूरदर्शिता' होनी चाहिए जिनके कर्म विवेकशील होने चाहिए , आज वही विद्यार्थी वर्ग सब जानते हुए भी दिशाहीन हो चले हैं। सब यहां भेड़ – चाल बनते जा रहे हैं ,जिनकी अपनी कोई राह नहीं है ।
राजनीति एक ऐसा विज्ञान होता है जो राज्य एवम् उसके नागरिकों को कल्याण की भावना सिखाती है । लेकिन आज राजनीति केवल धर्म से जुड़ी है। आज लोकतंत्र के नाम पर प्रायः ढकोसले होते रहते हैं । सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का विरोध करना तो जैसे पेशा बन गया हो और प्रदर्शनों में शामिल होना तो केवल फ़ैशन बन गया है। और इन प्रदर्शनों में सबसे ज्यादा बढ़ – चढ़ कर हिस्सा आज का युवा वर्ग लेता है ।
देश – विदेश में छात्र आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है। छात्रों ने अपने हक की लड़ाई में या तो देश की सत्ता को नष्ट कर दिया या राजनीति की तसवीर को ही बदल कर रख दिया । लेकिन तब के आंदोलनों और आज के छात्र आंदोलनों में बड़ा अंतर आप देख सकते है। 1974 में पटना के छात्रों और युवकों द्वारा , भ्रष्टाचार , महंगाई , ग़लत शिक्षा नीति के विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया गया था । जिसमें बड़े स्तर पर नारेबाज़ी हुई , संसद के सामने धरना प्रदर्शन हुए। इसके परिणाम स्वरूप पुलिस बल द्वारा निर्ममता पूर्वक लाठी चार्ज किये गए , गैस के गोले छोड़े गए। जिसमें बढ़े स्तर पर छात्रों की मृत्यु भी हुई। उस समय इस आंदोलन को रोकने में कांग्रेस सरकार पूरी तरह नाकाम रही तभी तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल कि घोषणा की थी । लेकिन साल भर बाद ही हुए चुनाव में कांग्रेस सरकार सत्ता से हाथ धो बैठी । इस तरह उस समय के छात्रों – युवकों ने राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार पर लगाम कसी थी।
लेकिन आज कल के आंदोलनों में केवल अज्ञानता की मिलावट है । राजनीति में आज छात्र वर्ग केवल हड़ताल , नारेबाज़ी , प्रदर्शन, झूठ ही सीख रहा है । CAA , NRC जैसे कानून जिनका बड़े स्तर पर देश के युवा वर्ग द्वारा विरोध किया गया वो पूरे देश ने देखा था । कानून चाहे सही हो या ग़लत , उसके खिलाफ विरोध भी विवेकता से किया जाना चाहिए । लेकिन कानून के बारे में पूर्ण जानकारी ना होते हुए भी सरकार के विरोध में प्रदर्शन हुए । पत्थरबाज़ी हुई , सार्वजनिक वस्तुओं को आग लगा दिया गया । प्रदर्शन का 'दर्शन शास्त्र' कहता है – आंदोलन सोए हुए समाज को गति प्रदान करता है। लेकिन जो समाज मर गया है उसे गति कौन प्रदान करें। 2020 में JNU में उठा आंदोलन फ़ीस की बढ़ती मांग को लेकर था । लेकिन विरोश प्रदर्शन करते हुए , छात्र आंदोलनों को गुंडा – गर्दी में बदलते देर नहीं लगी। 2016 में JNU में ही देश के टुकड़े के नारे लगाए गए थे जहां JNU के ही एक छात्र ' कन्हैया कुमार ' द्वारा "भारत तेरे टुकड़े होंगे" का नारा दिया गया था। लेकिन ये हमारे देश की विडंबना ही है कि आज इन जैसे युवा वर्ग के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती क्योंकि इस देश का विपक्ष इनके पक्ष में खड़ा रहता है । राजनीति तो हमारे विवेक को विकसित करता है । हमारे अस्तित्व का निर्माण करता है । राजनीति ही युवाओं को आने वाले कल का , देश का , एक सफल नेता बनने में सहयोग प्रदान करता है । लेकिन आज का युवा वर्ग , धर्म से जुड़ी राजनीति का पुतला बनता जा रहा है।
कहते है : विघां ददाति विनयं ( विद्या अर्थात ज्ञान हमें विनम्रता प्रदान करती है।) और विनम्रता ही हमें सही – गलत का ज्ञान सिखाती है । लेकिन आज छात्र वर्ग जिस अज्ञानता की राह पर है इससे वो आने वाले समाज के लिए केवल श्राप साबित होंगे। आज पढ़ा – लिखा समाज ही दंगों के बीच सब स्वाहा कर रहा है। जबकि छात्र और युवा वर्ग का कर्तव्य जानकारी के अभाव में गुमराह होने की बजाय राजनीति का सही ज्ञान अर्जित करना अथवा राजनीति में बढ़ते अपराध , भ्रष्टाचार को खत्म करना है । और एक ऐसे समाज की नींव रखना जिसको आनेवाले कई दशकों तक याद रखा जा सके।