बंगाल की पावन धरती ने अनेक वीरों को जन्म दिया है जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया। इनमें महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस, महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय, दुनिया को भारतीय संस्कृति के दर्शन कराने वाले स्वामी विवेकानंद एवं ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे अनेक महापुरुष के नाम शामिल है। इन्हीं अनेक लोगों में एक ऐसा महापुरुष जिसने बहरे अंग्रेजों को इंकलाब की गूंज सुना दिया। जी हां आप ठीक समझे भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त। आज हम इस वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बटुकेश्वर दत्त के जीवन पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालेंगे-
कौन है बटुकेश्वर दत्त?
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को बंगाल के पूर्व वर्धमान के खंडागोश गांव के कायस्थ परिवार में हुआ था। दत्त ने हाईस्कूल और कॉलेज की पढ़ाई कानपुर में की। बटुकेश्वर दत्त के लिए कानपुर हमेशा यादगार रहेगा क्योंकि यहीं पर उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह से हुई थीं। इसके बाद वे 1928 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बन गए। बता दें, भारतीय स्वतन्त्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश राज को समाप्त करने के उद्देश्य से हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया था। यह मुख्यता क्रांतिकारियों का संगठन था जो अंग्रेजों से बलपूर्वक आजादी लेने का समर्थक था। 1928 तक इसे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में जाना जाता था।
बटुकेश्वर दत्त के जीवन की प्रमुख घटनाएं :
बहरे अंग्रेजों को सुनाया इंकलाब का बम –
बटुकेश्वर दत्त के जीवन की सबसे अहम घटना तब हुई जब 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट किया था। यह बम विस्फोट ब्रिटिश राज्य की तानाशाही के विरोध मे किया गया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को मिला आजीवन कारावास –
केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके जाने के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह कहीं भागे नहीं और वहीं पर खड़े होकर अपनी गिरफ्तारी दे दी, जो उनकी निर्भीकता दर्शाता है। इसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर कार्यवाही हुई और उन्हे बम धमाके के आरोप में को 12 जून 1929 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जिसके बाद इन्हें लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया।
बटुकेश्वर दत्त को सुनाई गई काला पानी की सजा –
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि बटुकेश्वर दत्त को पहले तो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तो फिर काला पानी की सजा क्यों सुनाई गई? दरअसल जेल में ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।
बटुकेश्वर दत्त ने जेल में ही 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की थी जिसके बाद से दत्त की तबीयत खराब होने लगी थी। दत्त को सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। बता दें, काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।
देश को स्वतंत्रता हासिल होने के बाद बटुकेश्वर दत्त ने अंजलि दत्त से विवाह कर लिया था और निवास स्थान अपना पटना बना लिया था। बटुकेश्वर दत्त बिहार विधान परिषद के सदस्य भी मनोनीत किए गए थे। बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। ऐसा माना जाता है कि बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार उनके क्रांतिकारी साथियों के साथ किया जाए।