आज पूरा देश वीर मराठा योद्धा एवं करोड़ों लोगों के दिल में बसने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज का 392वां जयंती मना रहा है। महाराज शिवाजी को 'रयतेचा राजा' भी कहा जाता है जिसका हिंदी अनुवाद है लोगों का राजा। Chhatrapati Shivaji Maharaj ने अपने जीवन में कई अप्रतिम शौर्य की गाथाओं को अपने नाम किया था। उन्ही के गाथा सुनकर आज भी महाराष्ट्र और पुरे देश में शिवगर्जना की जाती है, जिसमे जोश से सराबोर युवाओं में और भी जोश आ जाता है। शिवाजी महाराज ने ऐसे भी पथ बताए हैं जिनपर चलना आज के युवाओं के लिए आवश्यक हो गया है। वह मार्ग है:
शिवाजी महाराज(Chhatrapati Shivaji Maharaj) ने सदैव बुद्धि को शक्ति से अधिक माना है। चाहे वह राजनीति हो, समझौते हों या युद्ध का क्षेत्र हो उन्होंने कभी भी बल को बुद्धि पर हावी न होने दिया। जिस वजह से उन के द्वारा लिए गए फैसलों पर और रणनीति पर आज भी चर्चा की जाती है। और आज के समय, हर क्षेत्र में बुद्धि एवं बल का उपयोग समान अंतर पर किया जाता है। चाहे वह खेल का मैदान हो या ऑफिस की मीटिंग।
एक बार छत्रपति शिवाजी(Chhatrapati Shivaji Maharaj) की सेना में शामिल एक सिपाही युद्ध जीतने के पश्चात प्रतिद्वंदी की बहु को उपहार रूप में लाया था। जब उसने उस कन्या को महाराज से मिलाया तब उन्होंने अपने सिपाही द्वारा किए बर्ताव के लिए क्षमा मांगी और उस कन्या को आभूषण एवं वस्त्र उपहार में भेंट कर सम्मान के साथ उसके शिविर पहुँचाया। छत्रपति शिवाजी महाराज महिलाओं को प्रताड़ित करने वालों को मौत की सजा देते थे। इस गाथा को आज भी उनके महिलाओं के प्रति सम्मान के उदाहरण के रूप में सुनाया जाता है। ऐसी एक नहीं कई घटनाएं हैं। इस पथ पर चलने के लिए ज्यादा कुछ नहीं केवल अपनी मर्यादा की सूझ-बूझ होनी चाहिए।
छत्रपति शिवजी महाराज।(Pixabay)
शिवाजी महाराज के जीवन में 3 गुरु थे, उनकी माता जिन्होंने जीवन का ज्ञान दिया। गुरु रामदास स्वामी जिन्होंने उन्हें अध्यात्म की शिक्षा दी और गुरु दादोजी कोंडदेव जिन्होंने शास्त्र और युद्धनीति का पथ पढ़ाया। इन्ही गुरुओं के मार्गदर्शन का नतीजा था कि आज भी शिवाजी की शौर्य गाथा लाखों करोड़ों दिलों में ज्वलंत है। इसलिए शिष्य का सबसे पहला काम ही उचित गुरु चुनना होता है, अन्यथा किताबों में लिखे ज्ञान को कोई भी बता सकता है किन्तु उस ज्ञान का उपयोग, मतलब और किस तरह आप उसका अपने जीवन में प्रयोग कर सकते हैं वह केवल गुरु ही बता सकता है।
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शिवाजी महाराज अपनी रणनीति व योजनाओं को मूल रूप देते वक्त अपने प्रतिद्वंदी और उसके विपरीत परिस्थितयों का खासकर ध्यान रखते थे। उसकी ताकत, कमजोरी, और सैन्यशक्ति को ध्यान में रखकर ही अपनी योजनाओं को पूर्ण रूप देते थे। और आज हमे भी यही करना चाहिए क्योंकि हर क्षेत्र में आपकी कुशलता के साथ-साथ तरीकों पर भी बारीकी से नजर रखी जाती है। जिस वजह से दूसरों से हटकर कुछ करने के लिए कुछ हटकर सोचना जरूरी है।
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