यह शौर्य गाथा है शहीद वीरांगना रानी अवंतीबाई की

भारत की वीरांगना रानी अवंतीबाई की गाथा को आज के आधुनिक युग ने भुला दिया है।(फाइल फोटो)
भारत की वीरांगना रानी अवंतीबाई की गाथा को आज के आधुनिक युग ने भुला दिया है।(फाइल फोटो)

यह भारत देश शौर्य और पराक्रम से भरा हुआ देश है। यहाँ बसने वाले वीरगाथाओं ने देश एवं विदेश में एक-एक भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा किया है। रानी कोटा से लेकर रानी लक्ष्मीबाई इन सभी वीरांगनाओं ने अपने राज्य और देश की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। मगर आज के भटके भारत ने इन सभी गाथाओं को भुला दिया है। इन वीरों को वह महत्व नहीं दिया गया जिनके यह हकदार थे। ऐसे ही एक वीरांगना की अमर गाथा आप सबके सामने लाया हूँ। यह इतिहास है रानी अवंतीबाई(Rani Avantibai) की जिन्होंने अंग्रेजों को उलटे पाँव भागने पर विवश किया था।

16 अगस्त 1831 को आज के मध्य प्रदेश में रानी का जन्म हुआ। अवंतीबाई के पिता राव जुझार सिंह जिला सिवनी के जमींदार थे, जिन्होंने बचपन से अवंतीबाई को शिक्षा, घुड़सवारी एवं तलवारबाज़ी सीखने की छूट दी। यह बात इसलिए भी ख़ास है क्योंकि उस समय और आज भी कई जगह बेटियों को घर का काम ज़्यादा सिखाया जाता है। रानी अवंतीबाई के किस्से दूर-दूर तक मशहूर होने लगे थे। अवंतीबाई(Rani Avantibai) के साहस और कौशल को देखकर सभी आश्चर्यचकित रह जाते थे।

रानी अवंतीबाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रमादित्य सिंह से हुआ था। वर्ष 1850 में अपने पिता की मृत्यु के उपरांत राजकुमार विक्रमादित्य ने राजा का पदभार संभाला। रानी अवंतीबाई के दो पुत्र हुए जिनका नाम था अमान सिंह एवं शेर सिंह। राज-काज संभालने के कुछ समय बाद ही राजा अस्वस्थ रहने लगे। नौबत यह आन पड़ी थी कि उनसे रियासत का काम संभालना दूभर हो गया। उस समय दोनों राजकुमार भी छोटे थे जिस वजह से राज-काज कौन संभालेगा इस पर दुविधा की स्थिति पैदा हो गई थी। जिसके पश्चात रानी अवंतीबाई ने राज-काज संभालने का निर्णय लिया।

रानी अवंतीबाई के सम्मना में जारी किया गया डाक टिकट।(Pixabay)

अंग्रेजी शासन अपने साम्राज्य के विस्तार में हर संभव प्रयास कर रहा था। उस समय के ब्रिटिश राज के गवर्नर जनरल थे लॉर्ड डलहौजी जिसका भारत में 'डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स' कानून के जरिए सभी हिन्दू बहुल प्रांतों को किसी भी तरह अपने साम्राज्य में शामिल करना ही मकसद था। और इसी कानून के जरिए वह कानपुर, झांसी, नागपुर, सतारा, जैतपुर, संबलपुर, उदयपुर, करौली इत्यादि रियासतों को हड़प चुका था।

जब राजा के अस्वस्थ रहने की भनक अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंचीं, तो डलहौजी की नजर इस रियासत पर भी पड़ी। और उसने रियासत को अंग्रेजी हुकूमत के अधीन लाने का फैसला किया। जिसके उपरांत रानी अवंतीबाई(Rani Avantibai) को अयोग्य घोषित कर सत्ता को हड़प लिया गया। इसे रानी अवंतीबाई ने स्वयं के साथ-साथ स्वतंत्रता का भी अपमान समझा।

सन 1857 में जब सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता की आग जन्मी थीं तब इस आग लपटें रानी अवंतीबाई(Rani Avantibai) तक भी पहुँची। जिसके तत्पश्चात ही उन्होंने संग्राम में कूदने का फैसला किया। रानी अवंतीबाई(Rani Avantibai) के साथ अन्य साथी रिआसतों ने भी संग्राम में कूदने का फैसला किया और यह सब रानी द्वारा लिखे गए खतों की वजह से संभव हुआ। इस समय रानी लगभग 4000 स्वतंत्रता सेनानियों का नेतृत्व कर रहीं थीं, जो कि देश और स्वतंत्रता के लिए मर-मिटने के लिए भी तैयार थे।

भारतीय वीरों ने अंग्रेजों के साथ खेरी गांव में हुए पहले झड़प में उन गोरों के दाँत खट्टे कर दिए। गोरों ने यह नहीं सोचा था कि भारतीय शेर उन पर भारी पड़ेंगे। रानी अवंतीबाई द्वारा बनाई गई रणनीति का ही यह नतीजा था कि अंग्रेजों को भागने पर मजबूर होना पड़ा और मंडला क्षेत्र रानी अवंतीबाई के अधीन आ गया।

जब इस घटना की खबर ब्रिटिश प्रशासन को लगी तो वह सब बौखला गए, किन्तु वह यह भी जानते थे कि इन भारतीय शेरों से भिड़ना आसान काम नहीं होगा। तब गोरों ने पहले से कई ज़्यादा क्रूर रणनीति बनाई। इस बार हुए झड़प में हमारे देशभक्त मशीनगनों और बर्बरता के सामने नहीं टिक पाए और अंततः रानी को जान बचाने के लिए और इस संग्राम को जीवित रखने के लिए देवीरगढ़ के जंगलों में भागना पड़ा। अंग्रेजों द्वारा देशभक्तों की हत्या की आग अभी भी रानी के सीने में धधक रही थी और रानी अवंतीबाई उन वीरांगनाओं में से थीं जिन्होंने हारना सीखा ही नहीं।

रानी अवंतीबाई ने पुनः सेना एकत्र कर अंग्रेजों के शिविर पर हमला बोला किन्तु फिर एक बार आजादी के मतवालों को मशीनगनों द्वारा रौंध दिया गया। जब रानी(Rani Avantibai) ने स्वयं को अंग्रेजों से घिरते हुए देखा तब उन्होंने बंधक के रूप में नहीं स्वतंत्र मरने का फैसला किया और अपने ही तलवार से खुद के प्राण ले लिए। ऐसे ही कई स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश भर में आजादी की मुहीम तेज हुई थी। ऐसे ही वीर, वीरांगनाओं के बलिदानों से प्रेरित होकर शहीद भगत सिंह, आज़ाद जैसे अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए बलिदान दिए। जिसका परिणाम है आज का 'आजाद भारत'।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com