भारतीय लोकतंत्र के वह दहशत भरे 45 मिनट जो आज भी स्तब्ध कर देते हैं

भारतीय संसद भवन। (Wikimedia Commons)
भारतीय संसद भवन। (Wikimedia Commons)

देश में नए संसद भवन (Indian Parliament) की आधारशिला रखी जा चुकी है। कहा जा रहा है कि यह आधुनिक भवन 2022 तक बन कर तैयार हो जाएगा। यह नया भवन पुराने भवन के समीप ही बनाया जा रहा है। उस पुराने संसद भवन के समीप जिसने भारतीय लोकतंत्र के सबसे खौफनाक हमले को सहा।

तारीख थी 13 दिसंबर 2001, जहाँ 45 मिनट के तांडव ने भारत को अंदर से झकझोर दिया था। मगर भारतीय लोकतंत्र इतना भी कमज़ोर नहीं कि लाल बत्ती वाली सफेद एम्बेस्डर से उतरे पांच आतंकवादियों के सामने घुटने टेक लेता।

संसद भवन (Parliament) में सभी नेतागण मौजूद थे। पक्ष और विपक्ष के बीच बहस छिड़ गई। संसद की कार्यवाही को 40 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया। तभी कुछ देर बाद गोलियों की अंधाधुन बौछार से संसद भवन की दीवारों में उठी गूंज ने भवन के भीतर मौजूद सांसदों और नेताओं को चौकस कर दिया। हमले के समय संसद में लालकृष्ण आडवाणी के साथ और भी कई दिग्गज नेता एवं पत्रकार उपस्थित थे।

AK47 राइफल और ग्रेनेड के साथ गेट नंबर 12 से दाखिल हुए आतंकवादियों और भवन के सुरक्षाकर्मियों के बीच फायरिंग शुरू हो गई थी। सी.आर.पी.एफ (CRPF) और दिल्ली पुलिस के जवानों ने भवन को चारों तरफ से घेर लिया था। भवन के भीतर जाने वाले रास्ते पर लगे दरवाज़े को बंद कर दिया गया। इस फायरिंग में परिसर के सुरक्षाकर्मियों सहित कुल 10 लोग मारे गए। जिसमें एक पत्रकार भी शामिल है। मगर इन सब के बलिदान और संसद भवन (Parliament) में तैनात जवानों के सामर्थ्य ने भवन पर कब्ज़ा करने की मंशा लिए पकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) और जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) के उन पाँचों आतंकवादियों को ढेर कर दिया था।

आपको बता दें कि बाद में जांच करने पर हमलावरों की एम्बेस्डर गाड़ी से 30 किलो RDX बरामद हुआ था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन पर हुए हमले में शहीद हुए वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की। (PIB)

अगर उन मानवता के दुशमनों के इरादे कामयाब हो जाते तो आज 13 दिसंबर 2001 की तस्वीर इतनी भयानक होती जिसका अनुमान लगाना, आज भी किसी भारतीय को पल भर के लिए स्तब्ध रख सकता है।

पाकिस्तानी लिंक

दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने संसद भवन पर हुए हमले (Indian Parliament attack) का मार्गदर्शक पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) एजेंसी को बताया था। घटना में दोषी ठहराए गए अफजल गुरु (Afzal Guru) ने भी पकिस्तान लिंक की बात को हरी झंडी दी थी। अफजल गुरु (Afzal Guru) को 9 फरवरी 2013 की सुबह फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया था।

भारत में यह हमला दिसम्बर के महीने में हुआ था। गौरतलब है कि नवंबर 2001 के दौरान श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर की विधानसभा पर भी इसी तरह के हमले को अंजाम दिया गया था। इस हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद का ही हाथ था।

अंग्रेज़ी में खबर पढ़ने के लिए – Here's How Underworld Still Operates From Behind The Bars

आतंकवादियों के लिए धर्म और जगह मात्र एक बहाना है। इंसानी रूह को अंदर से तड़पा कर उन पर अपना सिक्का जमाने की उनकी इच्छा भला कहाँ किसी से छिपी बैठी है।

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