सिविल सेवा परीक्षा और हिंदी माध्यम विषय पर एक राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किया गया। वेबिनार में देश भर से बड़ी संख्या में शिक्षकों, विद्यार्थियों, अभिभावकों और सिविल सेवा अभ्यर्थियों ने सहभागिता की। यह संगोष्ठि भारतीय मनो-नैतिक शिक्षा और संस्कृति को समर्पित संस्थान 'प्रज्ञानम इंडिका' द्वारा आयोजित की गई।
कार्यक्रम के संयोजक एवं 'प्रज्ञानम इंडिका' के संस्थापक निदेशक प्रोफेसर निरंजन कुमार ने कहा, "देश में सुचारु रूप से व्यवस्था चलाने में संघ लोक सेवा आयोग का महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन आयोग पिछले कुछ समय से सवालों के घेरे में है। इसमें प्रश्नों के अनुवाद की भी समस्या शामिल है। इसके अलावा अभ्यर्थियों की आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक पृष्ठभूमि भी अक्सर परीक्षा में पिछड़ने का कारण बनती है जिन पर समग्र रूप से ध्यान देने की जरूरत है।"
आईएएस तथा अपनी बैच में यूपीएससी परीक्षा टॉपर डॉ सुनील कुमार बर्णवाल ने कहा, "भाषा प्रारंभिक स्तर पर भले एक समस्या बने पर प्रतिभा को वह बहुत समय तक रोके नहीं रख सकती है। इसलिए अभ्यर्थियों को अन्य बातों पर ध्यान दिए बिना अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। भारतीय भाषाएं हमारी संस्कृति से जुड़ी है।"
आईएएस निशांत जैन ने सिविल सेवा परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं के चयनित अभ्यर्थियों की संख्या पांच प्रतिशत से भी कम होने पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, "हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों में प्रतिभा की कमी नहीं होती, बल्कि वे अपेक्षाकृत सामाजिक रूप से अधिक प्रतिबद्ध होते हैं। सिविल सेवा परीक्षाओं में अकादमिक से जुड़े लोगों की निष्क्रियता और कोचिंग की अति सक्रियता के कारण भी विसंगतियां आई हैं जिसे दूर करने की जरूरत है।"
आईएएस विवेक पांडेय ने सिविल सेवा परीक्षा में तमाम समस्याओं से परे अपनी मौलिकता पर जोर देने का आग्रह किया। उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा को राष्ट्रीय चरित्र की परीक्षा बताते हुए अपने व्यक्तित्व में विकास पर जोर दिया। उन्होंने परीक्षा में अत्यंत संक्षिप्त और साररूप में उत्तर लेखन की बात भी कही। (आईएएनएस)