“वेद” केवल ग्रंथ नहीं ज्ञान रूपी संविधान है ।

वेद सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथो में से एक है अथवा सर्वोपरी है। (Wikimedia Commons)
वेद सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथो में से एक है अथवा सर्वोपरी है। (Wikimedia Commons)

सैंधव सभ्यता के पश्चात ही भारत में वैदिक अथवा आर्य सभ्यता का उद्गम हुआ था। ऐसी मान्यता है , वैदिक सभ्यता का ज्ञान हमें ' वेदों ' से प्राप्त होता है।

वेद सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथो में से एक है अथवा सर्वोपरी है। केहते हैं : जहां ज्ञान है , वहीं वेद है। वेद का अर्थ ही ज्ञान है। पुरातन ज्ञान – विज्ञान का अथाह भंडार है। देवता , ब्रह्मांड, ज्योतिष, भूगोल, खगोल, गणित, विज्ञान , औषिधि , रसायन आदि सभी धार्मिक नियमों का ज्ञान इसमें निहित है। वेदों में ज्ञान की मेहता को प्रकट करते हुए कहा गया है की :-

।। येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।

अर्थात:- जिसके पास विद्या , तप , ज्ञान, शील, गुण, धर्म में से कुछ नहीं उस मनुष्य का जीवन पशु के समान है ।

वेदों की रचना समय – समय पर ऋषियों द्वारा होती रही। ऐसी मान्यताएं है , की वेद एक ही थे , लेकिन पढ़ने की सहूलियत ने इसे बांट दिया । जिससे बाद में ये सहिताएं , ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद के नाम से जाने गए ।

वेदों की चार सहिताएं है| जिन्हें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद के नाम से जाना जाता है। (Wikimedia Commons)

ऋग्वेद

ऋग्वेद के समय जो भी सांस्कृतिक चेतना थी वो आज भी भारतीयों के हृदय में विद्यमान् है । ऋग्वेद 10 मंडलों में विभक्त है , व प्रत्येक मंडल में 1028 सुक्त है । यद्यपि ऋग्वेद की 21 शाखाएं थी परन्तु आज कुछ की दृष्टव्य  है।  यह तात्कालीन सभ्यता व संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करने वाला एक अद्वितीय ग्रंथ है इसलिए यह चारों वेदों में सर्वश्रेष्ठ है।

सामवेद
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।10.22।।
अर्थात :- मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवताओं में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और प्राणियों की चेतना हूँ। ऋग्वेद का सार ही सामवेद है । सामवेद में 1000 शाखाएं है और इसकी सभी ऋचाओं को संगीतमय रूप दिया गया है , क्योंकि यह वेद , संगीत शास्त्र का मूल है । माना जाता है कि इसी से भारतीय संगीत का उद्गम हुआ था। संगीत का प्रथम अर्थ ही सामवेद है ।

यजुर्वेद 

सभी वेदों में सर्वाधिक लोकप्रिय स्थान यजुर्वेद का है ।यह एक श्रुति धर्मग्रंथ है। जहां गद्य एवम् पद्य मंत्रो का समागम है। जन – जन में विख्यात "गायत्री मंत्र" और "महामृत्युंजय मंत्र" यजुर्वेद से ही लिए गए है |

अथर्ववेद

अथर्ववेद में बड़ी मात्रा में विविधताएं देखने को मिलती हैं। गृह – सुख , भूत प्रेत का निवारण , विवाह, कीट – पतंगों का नाश , कृषि में वृद्धि आदि सभी विषयों का विवेचन किया गया है । अथर्ववेद में ही पृथ्वी की महता का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि :

माता भूमिः , पुत्रों अहं पृथ्वियाः ।

अर्थात :- ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र है। धरती माता हमारे जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख आधार है, और हमारा पोषण करती है।
कहा जाता है की , अथर्ववेद का वैदिक साहित्य में अपना एक स्वतंत्र महत्व है।

कहते हैं वेदों का ज्ञान पूर्ण है और अपौरुषेय है। इसका उद्देश्य हमें भौतिक जगत के दुःखों से छुटकारा दिलाकर , शश्वत जगत का परम सुख प्रदान करना है। आज के युग में वेदों की महत्व  क्षीण हो गया है । सत्य का कुछ अंश तो महाभारत काल के दौरान ही समाप्त हो गया था लेकिन आज इसका मूल रूप भी समाप्त हो गया है । यह संपूर्ण संसार ही एक झूठ का जाल बनता जा रहा है । वेदों में कहा गया है , सत्य सर्वोपरी है । चाहे युग कोई भी रहे , सत्य का अनुसरण होना चाहिए। समाज में फैली बुराइयां , छल – कपट  तभी समाप्त होंगे जब समाज में सच्चाई होगी । कलांतर में धर्म का अर्थ कर्म से था लेकिन आज धर्म को मनुष्यता से जोड़ दिया गया है। आजकल धर्म के नाम पर जो संगठन चलाए जाते हैं ,वे केवल धर्म की दुकानें भर है, जहां धर्म का व्यापार होता है। हमारी पहचान हमारी संस्कृतियों से ही है , और इसको जिंदा रखने के लिए वेदों को समझना आवश्यक है।

अटल बिहारी वाजपेई जी ने कहा था :-

वेद – वेद के मंत्र – मंत्र में , मंत्र – मंत्र की पंक्ति – पंक्ति में,
पंक्ति पंक्ति के अक्षर स्वर में , दिव्य ज्ञान आलंग प्रदीप्त।

वेद ज्ञान का ऐसा अथाह सागर है जिसके बूंद – बूंद में ज्ञान प्रज्वलित होता है । इसलिए वेदों का अनुसरण तो युगों – युगों तक होना चाहिए ।

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