श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद असल में है क्या?

ईदगाह मस्जिद, मथुरा (सोशल मीडिया)
ईदगाह मस्जिद, मथुरा (सोशल मीडिया)

अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद को ख़त्म हुए एक साल भी नही हुआ है और नज़दीक ही नए विवाद ने जन्म लिया है। पहले राम तो अब कृष्ण, जी हाँ! अब कृष्ण जन्मभूमि का मामला मथुरा कोर्ट में न्याय के लिए इंतजार कर रहा है। ऐसा क्या हुआ कि जिस मामले को 1968 में सुलझा लिया गया था उसे फिर से उठाने का फैसला लिया गया ?

असल में, राम जन्मभूमि के पक्ष में आए फैसले को हिंदुत्व और उस आंदोलन की जीत तरह माना गया था और अटकलें लगाई जा रहीं थीं कि अगली बारी कृष्ण जन्मभूमि की है। अब वह अटकलें सच होती दिख रहीं हैं क्यूंकि मथुरा कोर्ट में जमीन विवाद को लेकर एक दावा दायर किया गया है जिसमे पूरी 13.37 एकड़ की जमीन पर कृष्ण जन्मभूमि होने का दावा किया गया है और दावा एडवोकेट विष्णु जैन ने दायर किया है।

क्या है यह कृष्ण जन्मभूमि विवाद? आइए विस्तार में जानते हैं इसके इतिहास और दावे को।

कहा जाता है कि आज जिस जगह पर मंदिर और मस्जिद स्थित है उसे 'कटरा केशव देव' के नाम से जाना जाता है। दावा यह भी किया जा रहा है कि यह पूरा इलाका कृष्ण जन्मभूमि का है और यहीं पर श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। मगर मुगल शासक औरंगज़ेब ने मथुरा में कृष्ण मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद का निर्माण कराया था।

इतिहास क्या कहता है ?

इतिहास वह कड़ी है जिस से हमे पूरे मामले को जानने में मदद मिलती है, तब ज़्यादा पुरानी बात न करते हुए 1804 से इस बात को आगे बढ़ाते हैं, यह बात तब की है जब 'मथुरा' ब्रिटिशों के नियंत्रण में आया तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने कटरा की ज़मीन को नीलाम किया था और इसके खरीदार थे बनारस के राजा पटनीमल। इन्ही राजा ने यहां पर मंदिर बनवाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन यह हो न सका और इस जमीन का हक़ राजा के वारिसों के पास ही रहा।

1935 में मुस्लिमों ने 13.37 एकड़ ज़मीन पर केस लड़ा लेकिन इलाहबाद हाई कोर्ट ने राजा के वारिस राज कृष्ण दास के हक़ में फैसला सुनाया। नौ साल बाद पंडित मदनमोहन मालवीय ने 13000 रुपए में यह ज़मीन को राज कृष्ण से खरीदा, जिसमें जुगलकिशोर बिड़ला ने आर्थिक मदद दी थी। मालवीय के मृत्यु के बाद बिड़ला ने यहां श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया, जिसे श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना गया।

श्री कृष्ण जन्मस्थल और मस्जिद की प्राचीन तस्वीर। (Wikimedia Commons)

बिड़ला ने जयदयाल डालमिया के सहयोग से इस ज़मीन पर मंदिर का निर्माण करवाया और यह निर्माण 1982 में जाकर पूरा हो सका। अभी तीसरी पीढ़ी के अनुराग डालमिया ट्रस्ट के जॉइंट ट्रस्टी हैं।

1968 में हुआ था एक करार:

1964 में जन्मस्थान संघ ने पूरी जमीन पर नियंत्रण करने के लिए सिविल केस दायर किया और मुस्लिम पक्ष से भी समझौता कर लिया। समझौते के तहत दोनों पक्षों ने अपने हिस्से की कुछ ज़मीन एक दूसरे को सौंप दी। यही कारण है कि जिस स्थान पर मस्जिद है, वह जन्मस्थान के नाम पर है।

'अभी' दायर किए गए दावे में कोर्ट के उस समय दिए गए फैसले को चुनौती देते हुए उसे रद्द करने की मांग की गई और उस विवादित ज़मीन को श्री कृष्ण जन्मस्थल का ही हिस्सा कहे जाने को कहा है, यह भी कि मस्जिद ईदगाह ने जो भी निर्माण करवाए हैं उन्हें हटवाया जाए।

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