कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म और मारपीट के बाद हाथरस की 19 वर्षीय दलित युवती दिल्ली के एक अस्पताल में सात दिनों पहले जिंदगी से जंग हार गई थी, जिसके बाद से मीडिया में यह मुद्दा छाया हुआ है।
इस मुद्दे पर एक तरफ जहां टीवी चैनलों पर बहस जारी है, वहीं दूसरी ओर अखबारों और पत्रिकाओं में भी इस घटनाक्रम पर काफी लिखा जा रहा है। इसके साथ ही देशभर में चहुंओर इसी मामले पर चर्चा चल रही है। इस बीच हाथरस की इस वीभत्स घटना को लेकर अभी भी ऐसे सवाल हैं, जिनका कोई उत्तर नहीं मिल सका है।
हाथरस के बुलगड़ी गांव में दलित युवती के साथ ठाकुर जाति से संबंध रखने वाले चार युवकों ने कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर उसके साथ इतनी बेरहमी की जिससे पीड़िता ने बाद में दम तोड़ दिया।
इस मुद्दे पर कुछ महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिनका कोई उत्तर नहीं मिल सका है। यह सवाल है :
दिल्ली के अस्पताल में टीवी चैनलों द्वारा लिए गए वीडियो फुटेज में लड़की को यह कहते हुए सुना गया है कि गला घोंटने से पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। पीड़िता की मां ने अपनी बेटी की मौत से पहले और बाद में बनाए गए वीडियो में अलग-अलग दावे पेश किए हैं। एक वीडियो में उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपियों में से एक संदीप ने लड़की का गला घोंटने की कोशिश की और जब मां ने मदद के लिए पुकारा तो वह भाग गया। वहीं एक अन्य वीडियो में वह दावा करती हैं कि उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया गया।
लड़की के भाई, जो अब ऑनर किलिंग का भी आरोपी बताया जा रहा है, उसने कहा कि उसकी बहन खेत में बिना कपड़ों के पाई गई।
सवाल यह है कि परिवार बार-बार अपना रुख क्यों बदल रहा है?
राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी पीड़िता के परिवार से मिलने गए थे। (Twitter)
आरोपी के एक परिवार के सदस्य का कहना है, "यह तो अच्छे से स्पष्ट है कि परिवार (पीड़िता के परिजन) जानता है कि उसे अधिक धन और अधिक सहानुभूति मिलेगी, अगर वह दुष्कर्म के एंगल को आगे रखते हैं और यही वजह है कि वे ऐसा कर रहे हैं। क्या एक गांव के एक खेत में सुबह 9.30 बजे दुष्कर्म हो सकता है, जब सब लोग काम के लिए बाहर ही थे?"
इस बीच, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने कहा है कि मेडिकल रिपोर्ट में लड़की के साथ दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है। यह कथित घटना 14 सितंबर को हुई थी और लड़की की मेडिकल जांच आठ दिन बाद 22 सितंबर को हुई।
चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि चिकित्सा परीक्षण में देरी से साक्ष्यों पर विपरीत असर हो सकता है।
राज्य सरकार जहां दुष्कर्म की थ्योरी को नकार रही है, वहीं परिवार उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म होने की बात पर अड़ा है। इस बीच विपक्षी दल स्वाभाविक रूप से इस मुद्दे का उपयोग योगी आदित्यनाथ सरकार को निशाना बनाने के लिए कर रहे हैं।
इस घटना को ठाकुरों और दलितों के बीच एक जाति युद्ध के परिणामस्वरूप पेश किया जा रहा है। हालांकि, दोनों पक्ष इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि लड़की और आरोपी व्यक्तियों के परिवारों के बीच, एक दशक में कम से कम दो बार लड़ाई हो चुकी है।
लड़की का परिवार जाहिर तौर पर इस तथ्य को छिपाना चाहता है, क्योंकि वे 14 सितंबर की घटना की गंभीरता को कम नहीं करना चाहते हैं, जिसके कारण लड़की की मृत्यु हो गई।
आरोपी भी इन तथ्यों को छिपा रहे हैं, क्योंकि वे उस कथित घटनाक्रम के लिए एक मकसद नहीं जोड़ना चाहते हैं।
इस मामले में जिलाधिकारी (जिला मजिस्ट्रेट) प्रवीण कुमार लक्सर की भूमिका संदेह के घेरे में है।
सूत्रों का कहना है कि वह लक्सर ही थे, जिन्होंने पीड़ित परिवार के विरोध किए जाने के बाद उन्हें कथित तौर पर बंधक बनाकर रात में पीड़िता का दाह संस्कार करा दिया।
बाद में उन्होंने शुक्रवार को गांव में मीडिया के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया और पीड़ित परिवार के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया।
कथित तौर पर लक्सर के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक शीर्ष नेता से अच्छे संबंध है और यही वजह है कि हाथरस से उनके निष्कासन/स्थानांतरण को रोक दिया गया?
इस घटनाक्रम पर बुलगड़ी गांव जातिगत आधार पर व्यापक रूप से विभाजित हो चुका है। अधिकांश स्थानीय निवासी घटनाक्रम पर कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं और जो लोग इसके लिए सहमत भी होते हैं तो वे उनके नाम का खुलासा नहीं किए जाने का अनुरोध करते हैं।
ऐसे ही एक निवासी ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "हर कोई जानता है कि लड़की की दो आरोपियों के साथ दोस्ती थी। वे अक्सर फोन पर बात करते थे और गांव में हर कोई इसके बारे में जानता था। घटनाक्रम को तमाशा में बदलने की स्थिति से बचने के लिए पुलिस को मोबाइल फोन लेकर उनकी जांच करनी चाहिए और कॉल रिकॉर्ड निकलवाना चाहिए।"
पुलिस ने हालांकि शुक्रवार को परिवार के सदस्यों के फोन जब्त कर लिए थे, जिसके बाद उनमें से कुछ ने टीवी चैनलों पर इस बारे में रोना-बिलखना शुरू कर दिया, जिसके बाद उन्हें फोन वापस दे दिए गए।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि हाथरस के साथ ही राज्य के अन्य हिस्सों में भी ठाकुरों और अन्य उच्च जातियों ने चार आरोपी युवकों के समर्थन में जुटना शुरू कर दिया है।
अभियुक्तों का पक्ष रखते हुए और उनका समर्थन करते हुए उच्च जाति की पंचायते हो रही हैं और यह मुद्दा दो जातियों के युद्ध की तरह बनता जा रहा है।
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हाथरस की घटना में एक और अनुत्तरित सवाल परिवार के करीबी लोगों द्वारा मीडिया प्रबंधन (मैनेजमेंट) है।
सूत्रों के मुताबिक, टीवी चैनलों को हाथरस पहुंचने से पहले ही बता दिया गया था कि लड़की का पार्थिव शरीर वहां पहुंच चुका है। पुलिस से एक बड़ी चूक यह हो गई कि उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया कि वहां मीडिया भी मौजूद है और फिर पुलिस ने रात के अंधेरे में पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया।
जैसे ही टीवी चैनलों पर रात को दाह संस्कार की बात उजागर हुई तो सत्ता पक्ष के पसीने छूट गए।
सवाल यह है कि पीड़ित परिवार के लिए बुलगड़ी गांव में मीडिया की मौजूदगी को किसने सुनिश्चित किया, ताकि यह मुद्दा राष्ट्रीय घटना में बदल जाए? आखिर कौन इस घटना को उजागर करके लाभ उठाना चाहता है और क्यों और कैसे मीडिया ने खुद को इस्तेमाल करने की अनुमति दी है?
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सोमवार को कहा कि उनके पास परिवार और मीडियाकर्मियों के बीच बातचीत की रिकॉर्डिग है, जो उन्हें बता रहे हैं कि क्या बयान देना है।
अधिकारी ने कहा, "हमने एक खुली प्राथमिकी दर्ज की है और जांच से सच्चाई का पता चल जाएगा।"
जब इस घटनाक्रम ने राजनीतिक भूचाल ला दिया तो योगी सरकार ने डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू की।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार रात को राज्य ब्यूरोक्रेसी में बड़े प्रशासनिक फेरबदल के साथ अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी को सूचना विभाग से हटाकर अतिरिक्त मुख्य सचिव नवनीत सहगल को यह प्रभार सौंप दिया।
सूत्रों ने कहा कि यह फेरबदल हाथरस की घटना के दौरान मीडिया प्रबंधन खराब होने के कारण हुआ है।
सहगल को मीडिया के अपने उत्कृष्ट संचालन के लिए जाना जाता है और उनका मीडियाकर्मियों के साथ भी बेहतर तालमेल बताया जाता है। हालांकि वह पहले से हो चुके नुकसान को कम करने में सक्षम नहीं हैं, फिर भी वह निश्चित रूप से आगे की क्षति को रोक सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने एक लोक संपर्क (पीआर) कंपनी को भी काम पर रखा है, जो मुख्य रूप से विदेशी मीडिया और राष्ट्रीय आउटलेट पर ध्यान केंद्रित कर रही है। हालांकि स्थिति को संतुलित करने के लिए पीआर एजेंसी अब तक कुछ खास नहीं कर सकी है।
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भले ही हर राजनीतिक दल हाथरस मामले में मानवता के कोण को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए डेढ़ साल का समय बचा है, जिसे देखते हुए विपक्ष इस घटना का उपयोग योगी आदित्यनाथ सरकार को निशाना बनाने के लिए कर रहा है।
मुख्यमंत्री अकेले ही विपक्ष से जूझ रहे हैं, जिन्हें पार्टी और प्रदेश के अन्य मंत्रियों से खास समर्थन नहीं मिल रहा है।
हाथरस की घटना 'योगी बनाम अन्य सभी' की लड़ाई बन गई है और यह स्थिति राजनीति में जवाब देने से ज्यादा सवाल उठा रही है। (आईएएनएस)