बीते एक साल से जिन तीन कृषि कानूनों पर किसान दिल्ली की सीमा पर और देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे थे, उन कानूनों को केंद्र ने वापस लेने का फैसला किया है। आपको बता दें कि केंद्र के इस फैसले से उसका खुदका खेमा दो गुटों में बंट गया है। कोई इस फैसले का समर्थन कर रहा है, तो कोई इसका विरोध कर रहा है। किन्तु यह सभी जानते हैं कि वर्ष 2022 में 6 राज्यों में विधानसभा चुनाव 2022 आयोजित होने जा रहे हैं, जिनमें शमिल हैं उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल-प्रदेश, और गोवा। और यह चुनाव सीधे-सीधे भाजपा के लिए नाक का सवाल है, वह भी खासकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में।
उत्तर प्रदेश एवं पंजाब का चुनावी बिगुल, चुनाव से साल भर पहले ही फूंक दिया गया था। और अब केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून पर लिए फैसले का श्रेय अन्य राजनीतिक दल लेने में जुटे हैं। विपक्ष में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को इस फैसले का ताज पहनाना चाहते हैं, तो कुछ विपक्षी दल अपने-अपने सर पर यह ताज सजाना चाहते हैं। मगर इन सभी का लक्ष्य एक ही है 'विधानसभा चुनाव 2022'।
जैसा कि हम पहले भी बात कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश/पंजाब विधान-सभा चुनाव 2022 सर पर है और सभी राजनीतिक पार्टियां इस चुनाव को जीतने के उद्देश्य से मैदान में उतर चुकी हैं, तो यह फैसला राजनीतिक दबाव में नहीं लिया गया है, ऐसा कहना गलत होगा। भाजपा के कई नेता यह खुलकर कहते दिखाई दे रहे हैं कि इस फैसले को चुनाव 2022 के लक्ष्य को देखर ही लिया गया है। जिसका फायदा भाजपा को होगा या नहीं इसका उत्तर जनता के मतदान के ऊपर है।
उत्तर प्रदेश, पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 कई दिलचस्प मोड़ लेगा।(Wikimedia Commons)
किन्तु राजनीतिक विशेषज्ञ यह कयास लगा रहे हैं कि इस बार भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहाँ 'भारतीय किसान यूनियन' की अच्छी पकड़ है, वहां यह किसान आंदोलन बड़ा प्रभाव डालेगा। इसके साथ भाजपा ने जिस तरह 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में यहाँ से बढ़त बनाई थी, उसके लिए उसे 2022 में संघर्ष करना पड़ेगा। इसके साथ किसान आंदोलन ने सुर्खियों से खो चुकी जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रिय लोक दल को नया जीवन दान दिया है। अब यह पार्टी जाट वोटबैंक पर अपनी अच्छी पकड़ बना चुकी हैऔर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से विलय, अब इसे और मजबूती देगा।
साथ ही उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 विपक्ष बनाम भाजपा माना जा रहा है। वह इसलिए क्योंकि जिस बहुमत के साथ भाजपा 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता के सिंहासन पर आसीन हुई थी, इसका अनुमान न तो किसी विशेषज्ञ ने लगाया था और न ही स्वयं को सटीकता का पर्याय मानने वाले एग्जिट पोल ने लगाया था। इसलिए अब किसी भी विपक्षी पार्टी की लड़ाई आपस में न होकर, सीधे-सीधे भाजपा से हो गई है।
विपक्ष हर वह मौके ढूंढ रहा है, जिससे वह उत्तर प्रदेश एवं केंद्र सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर सके, और किसान आंदोलन ने उन्हें ऐसा करने का भरपूर मौका और समय दोनों दिया। साथ ही अब जब केंद्र ने कानूनों को वापस लेने का फैसला कर लिया है, इसे भी विपक्षी दलों ने मौके रूप में देखा है और इस फैसले का श्रेय लेने की जैसे होड़ मच गई है।
इस बीच उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का मसीहा बनने की कोशिश में जुटे एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी अब किसान आंदोलन के तर्ज पर CAA और NRC के विरोध की धमकी देते दिखाई दे रहे हैं। माना यह जा रहा है कि जिस तरह भाजपा हिंदुत्व को अपने पाले में लेकर चल रही है, वैसे ही औवेसी भी मुस्लिम वोटबैंक को अपने पाले में खिसकाने की कोशिश कर रहे हैं।
अब देखना यह है कि उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में किसान आंदोलन और यह फैसला क्या असर डालता है!