किसी विचित्र कारण के चलते भारत के अंग्रेजी बोलने वाले इंटेलेक्चुअल सर्किल में हिंदुओं के साथ हुए अत्याचारों पर बातें करना 'कूल' नहीं समझा जाता। लेकिन यही इंटेलेक्चुअल लोग ये मानते हैं कि 'माइनोरिटी' से जुड़े मामलों पर बात करना बहुत अच्छा और प्रगतिशील होना है। इसके पीछे सोच है कि चूंकि अल्पसंख्यक लोग संख्या में कम हैं, इसलिए वे कमजोर तबके के हैं और कमजोर तबकों के बारे में बातें करना अच्छा होता है, ठीक ? दूसरी तरफ हिंदू बहुसंख्यक हैं चूंकि वे संख्या में ज्यादा हैं, इसलिए यह अपने आप तय हो जाता है कि वे मजबूत हैं और वे अल्पसंख्यकों पर दबदबा बनाकर रखते हैं। इतना ही नहीं, अब तो हिंदू-हित की बात करने वाली पार्टी भी आठ सालों से सत्ता में है।
हिन्दुओं पर अत्याचारों की कहानियाँ भारत के अलावा अन्य देशों में भी हमेशा से देखने और सुनने को मिलती है लेकिन उसे कैसे भी तमाम ताकतों की बदोलत दबा दिया जाता है जैसे कि अगर ये अत्याचार की कहानियाँ कहीं उजागर हो गई तो मानो पूरी दुनिया में धर्म निरपेक्ष के अस्तित्व पर कहीं दाग न लग जाए| आपको बता दें कि बांग्लादेश में जिस तरह हिन्दुओं का कत्लेआम कट्टरपंथियों द्वारा हो रहा है, वह एक बड़ी समस्या का विषय है, लेकिन फिर भी बांग्लादेश की सरकार वहाँ के हिंदुओं को सुरक्षा देने का बस आस्वासन देती है | बांग्लादेश में कई हिन्दू मंदिरों को तोड़ा जा रहा है लेकिन बांग्लादेश की सरकार ने इसपर चुप्पी साधी हुई है | ऐसा लगता है कि कट्टरपंथियों के सामने बांग्लादेश की सरकार ने सरेंडर कर दिया है| ढाका यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश से हर साल 2 लाख से ज्यादा हिंदुओं का पलायन हो रहा है| इसके पीछे धार्मिक कट्टरता और हिंदुओं की संपत्ति को हड़पने वाली साजिश काम कर रही है| इस साजिश के पीछे बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन और सिस्टम दोनों मिलकर काम कर रहे हैं|
अगर बात पाकिस्तान की करें तो उसकी हालत तो हिन्दुओं पर अत्याचार के मामलों में बांग्लादेश से भी बत्तर है | पाकिस्तान का तो पेशा ही बन गया है हिन्दुओं पर अमानवीय अत्याचार करना, उनका धर्म परिवर्तन कराना और मंदिरों को तोडना| हाल के कुछ वर्षों में हिन्दू लडकियों को इस्लाम में जबरदस्ती परिवर्तित कराना पाकिस्तान का नया हथकंडा है जिससे पाकिस्तान अपने देश में हिन्दू आबादी का अस्तित्व पूरी तरह से मिटाना चाहता है |वैसे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और मौजूदा बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार, हिंसा और हमले की घटनाएं पिछले 75 वर्षों से लगातार होती आ रही हैं| 1947 में आजादी के बाद लाखों हिंदू परिवार पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश से निकलकर पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों में आकर बस गए थे| इसके बाद वर्ष 1950 में बांग्लादेश में भीषण सांपद्रायिक दंगे शुरू हो गए थे|
हम अगर भारत में हिंदुओं की समस्याओं पर बात करें तो हिंदुओं के दबदबे वाले देश में हिंदुओं के लिए कोई समस्याएं कैसे हो सकती हैं इसीलिए हमारे देश के इंटेलेक्चुअल लोगों को The Kashmir Files फिल्म अच्छी नहीं लगी। उन्होंने इसे खारिज करने की भरसक कोशिश की लेकिन वे नाकामयाब रहें| यही कारण है कि भारत के इंटेलेक्चुअल लोग 'द कश्मीर फाइल्स' की बड़ी कामयाबी से दुःखी हैं। इस लो-बजट फिल्म में कोई सुपरस्टार नहीं थे। इसे समर्थन करने वालों में कोई बड़ा नाम नहीं था। न इसके लिए मेगा मार्केटिंग कैम्पेन चलाया गया और न ही क्रिटिक्स ने इसकी तारीफों के पुल बांधे। इसके बावजूद यह फिल्म तकरीबन तमाम बॉलीवुड-रिकॉडों को तोड़ चुकी है। इसने समाज पर गहरा असर भी डाला है। इसने बहस छेड़ी हैं और दर्शकों को भावुक किया है। इससे हमें यह भी अंदाजा लगता है कि हमने कोशिशें की है। जब वे इसमें नाकाम हो गए तो उन्होंने अपनी इंटेलेक्चुअलों वाली हरकतें शुरू कर दीं कि जो चीज पसंद न आए, उसे पक्षपातपूर्ण, प्रोपगंडा, फर्जी आदि घोषित कर दो। लेकिन इसका फिल्म पर कोई असर नहीं पड़ा।
1990 के दशक में कश्मीर घाटी से पंडितों के पलायन पर केंद्रित यह फिल्म हमें झकझोर देती है। इस त्रासदी पर जितनी बहस होना चाहिए थी, उतनी नहीं हुई है। इस फिल्म ने यह भी बताया कि हिंदुओं की समस्याओं पर बातें करने वाली फिल्मों की हमारे यहां कितनी कमी रही है, जो दर्शक इसको देखने उमड़ पड़े। क्योंकि सच यही है कि भारत में आप सार्वजनिक रूप से हिंदुओं की समस्याओं पर बात नहीं कर सकते अगर आपने की तो इंटेलेक्चुअल लोग आप पर चढ़ बैठेंगे। बड़ी उम्दा अंग्रेजी में वो आपको नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे। आखिर में आप कम्युनल होने के ठप्पे से इतना डर जाएंगे कि चुप हो जाएंगे। (इस कॉलम के बाद अब मैं भी साम्प्रदायिक कहलाने के लिए तैयार हूं)। लेकिन सच तो कहा ही जाएगा। फिल्म भले ही परफेक्ट न हो, भले उसमें हिंसा के विचलित कर देने वाले दृश्य हो, भावना का उफान हो और शायद उसकी कहानी में कुछ जगहों पर रचनात्मक स्वतंत्रता भी ली थी , उसे बदला नहीं जा सकता।
कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार{Twitter}
भारत में जहां बहुसंख्यक आबादी हिंदुओं की है- एक राज्य में हिंदुओं को निर्ममता से मारा गया और अपने घर से ही निकाल दिया गया। इसके बावजूद उस समय की सरकार ने कुछ नहीं किया। क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक उस समय की सरकार का हिमायती था। द कश्मीर फाइल्स' को प्रोपगेंडा बोलना न केवल कश्मीरी पंडितों बल्कि पूरे देश के हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है। हिंदुओं के दुःखों पर बात करने से संकोच क्यों? हिंदू भारत में बहुसंख्यक हैं दुनिया में नहीं, लेकिन दुनिया में वे तुलनात्मक रूप से अल्पसंख्यक हैं। नेपाल के अलावा भारत ही ऐसा देश है, जहां हिंदू बहुसंख्यक में हैं।
जब कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार हुआ और सरकार कुछ नहीं कर पाई तो इसने हिंदुओं के इस भरोसे को डिगा दिया कि भारत उनका घर है। जो लोग यह कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों की इतनी बातें मत करो, उन्हें इसे समझना चाहिए था कि वे किस समय में जी रहे थे। उस समय मुसलमानों के वोट इतने कीमती थे कि जब देश में चरमपंथी इस्लामिक संस्थाएं फैलने लगीं तो उन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया। आतंकी हमले और बम धमाके होते रहते थे और तथाकथित 'ताकतवर बहुसंख्यक' डर में जीने को मजबूर थे। लेकिन आज यह सब नहीं होता आज जो सरकार केंद्र में है, वह हिंदू हितों की रक्षा करती है। हो सकता है कि वह उनके पक्ष में झुकी हुई भी हो, क्योंकि शायद वही उनका वोटबैंक है|
इसमें कोई शक नहीं कि भारत में अनेक धर्मों के लोग मिलकर रहते हैं। हमारी जीडीपी में सभी का योगदान है। लेकिन हमें समझना होगा कि अतीत में सभी समुदायों को तकलीफें झेलना पड़ी हैं, जिनमें हिंदू भी शामिल हैं। आबादी के प्रतिशत से यह नहीं तय हो जाता कि हमलावर कौन था और शिकार कौन बना| ब्रिटिश राज के दौरान भारत में अंग्रेज अल्पसंख्यक थे, तो उस समय विक्टिम कौन था ? भारत के लोग या अल्पसंख्यक अंग्रेज! लेकिन हमारे इंटेलेक्चुअल्स अपने को श्रेष्ठ दिखाने में इतने मसरूफ हैं कि वे भारत के अतीत को भी परख नहीं पाते हैं। यह सच है कि भारत केवल हिंदुओं के लिए नहीं है। यह अनेक समुदायों का घर है, जिन्होंने अतीत में बहुत तकलीफे सही हैं। इनमें हमारे मुसलमान भाई और बहन भी शामिल हैं और हमें उनकी समस्याओं को सुनना चाहिए। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि हिंदुओं ने भी कम दुःख नहीं झेले हैं। एक-दूसरे की तकलीफों को सुनना और उनके लिए हमदर्दी जताना एकतरफा चीज नहीं होनी चाहिए। 'द कश्मीर फाइल्स' एक ऐसी कहानी है, जिसे कहना जरूरी था। उसकी अभूतपूर्व सफलता यह भी बताती है कि इस कहानी को सुना जाना भी इतना ही जरूरी है।
हम यह नहीं कह रहे है कि भारत में सिर्फ हिन्दुओं पर अत्याचार की बात हो, जाहिर सी बात है मुस्लिमों पर भी अत्याचार होते हैं उनपर भी बात होनी चहिए| आखिरकार वे भी हमारे देश के नागरिक हैं लेकिन दिक्कत तब होती है जब हिन्दुओं पर अत्याचार को सेक्युलर और मुस्लिमों के अत्याचार को कम्युनल करार दे दिया जाता है| हिन्दुओं पर आत्याचार पर देश का कोई बुद्धिजीवी और हमारे देश का एक ख़ास तबका अपनी जुबान नही खोलना चाहता लेकिन अगर जहाँ मुस्लिमों पर अत्याचार की बात आती है वहां यहीं लोग तुरंत अपना पक्ष रखने को उतारू हो जाते है और सोशल मीडिया पर मानो एक डर के माहौल वाली क्रांति छेड़ देते है | अगर भारत देश की नींव धर्म निरपेक्ष से शुरू होती है तो फिर यह कैसा धर्म निरपेक्ष है जहाँ अखलाख के मॉब लिंचिंग और आसिफा के बलात्कार की बात तो देश की मीडिया , नेता और बुद्धिजीवी लोग दिन रात बात करके इन्साफ दिलाने पर अड़े रहते लेकिन कोई कमलेश तिवारी, रुपेश पाण्डेय, गौरव भारवा की निर्मम हत्या पर कोई इन्साफ दिलाना तो दूर बात करना भी उचित नही समझता| यहाँ तक की देश की तमाम मीडिया इन हिन्दू हत्याओं पर कवरेज करना तक नहीं चाहती क्यूंकि उन्हें पता होता है कि यहाँ कवरेज से टीआरपी नही आने वाली है |
सबसे ज्यादा आश्चर्य तो तब हुआ जब उत्तर प्रदेश के कैराना से तेजी से हिन्दुओं के पलायन जैसी बड़ी घटना पर किसी ने आगे आकर न कुछ बोला और नाही देश की मीडिया ने हिन्दुओं के पलायन वाली इतनी बड़ी घटना को तबज्जों दी| इस इतनी बड़ी घटना के बारे में लोगों को तब पता चला जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिन्दू पीड़ितों का हाल जानने स्वयं कैराना गए| लेकिन वहीँ जब देश का कोई अभिनेता यह बोल दें कि मुझे देश में डर लग रहा है, मुस्लिम होने की वजह से मुझे भाड़ा पर कमरा नही मिला, देश में डर का माहौल है तब देखों कैसे देश के बड़े- बड़े बुद्धिजीवियों में इनके प्रति सहानभूति दिखने की होड़ मच जाती है, साथ ही देश की मीडिया और न्यूज़ चैनल्स इन सब बयानों पर प्राइम टाइम शो करते है , आर्टिकल लिखते है और दिन रात इन्ही के पीछे पड़ें रहते हैं | जिससे यह साफ पता चलता है कि भारत में आज के परिवेश में चाहे वह समाज में हो, फिल्म व वेब सीरीज में हिन्दुफोबिया को बहुत तेज़ी से फैलाया जा रहा है जिसका परिणाम भविष्य में भारत के लिए सरासर गलत होंगे|