क्यों केरल का ईसाई समाज हिन्दू नेतृत्व चाहता है?

क्यों केरल का ईसाई समाज हिन्दू नेतृत्व चाहता है?
क्यों केरल का ईसाई समाज हिन्दू नेतृत्व चाहता है?
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हाल ही में 6 अप्रेल को केरल राज्य में मुख्य चुनाव हुए थे, जिसमे 73 प्रतिशत जनता ने मतदान किया। चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए सूची के अनुसार मतगणना 2 मई को की जाएगी, और उस समय यह पता चलेगा कि जनता ने किस पार्टी को सेवा का मौका दिया है।

किन्तु इस चुनाव में कुछ खास देखने और सुनने को मिला, कि केरल का ईसाई समाज हिन्दुओं को जिताना चाहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ईसाई समाज को कट्टर इस्लाम के बढ़ते वर्चस्व से नए खतरे की आशंका सताने लगी है। उन्हें लव जिहाद जैसा अपराध अपनो के साथ भी होने का डर है। सिरो-मालाबार चर्च ने कई मौकों पर यह चिंता व्यक्त की है कि कट्टर इस्लामिस्ट हिन्दू के साथ ईसाई बेटियों को लव जिहाद का शिकार बना रहे हैं। 

आपको बता दें की केरल की कुल जनसंख्या में से 54 प्रतिशत हिन्दू हैं, 26.56 प्रतिशत मुस्लिम हैं और 18.38 प्रतिशत ईसाई हैं। यहाँ के ईसाई समाज को हिन्दू पार्टी के सत्ता में आने से कोई परहेज नहीं है बल्कि वह यह मानते हैं कि इस्लामिक कट्टरता और आय दिन तनाव से हटकर यही बेहतर विकल्प है। 

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ भी कई कार्यक्रमों में इस्लामिक कट्टरता से बचने के लिए हिन्दुओं और ईसाईयों को एक साथ आने का आह्वाहन किया है। केरल के ही भाजपा नेता के सुरेन्द्रन ने बड़ा बयान देते हुए यह कहा था कि, 'आईएसआईएस' हिन्दू और ईसाई बच्चियों पर लव जिहाद जैसे अपराध का शिकार बना रहे हैं और इसी अपराध को रोकने यदि केरल की जनता ने भाजपा को वोट दिया तो वह लव जिहाद के खिलाफ कानून लाएंगे।

करेल में लव जिहाद के साथ साथ धर्म परिवर्तन भी एक अहम मुद्दा है।(सांकेतिकचित्र,फाइल फोटो)

लव जिहाद के खिलाफ बने कानून को पहले ही भाजपा शासित चार राज्यों में लागू कराया जा चुका है। जिनके तहत होने वाली करवाई को भी तेज कर दिया गया है। केवल उत्तर प्रदेश में ही एक महीने में लव जिहाद पर बने कानून के तहत 51 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।

यह बात तो एकदम सही है कि भाजपा शासन से पहले देशभर में लव जिहाद पर चर्चा भी नहीं की जाती थी। कई मासूम बेटियां इस रेडिकल इस्लामिस्म का शिकार बन अपनों से दूर कर दी जाती थीं। इस अपराध के खिलाफ आज देश भर में गुस्से और साथ ही साथ डर का भी माहौल है। किन्तु राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों से इस डर में कमी आई है। 

केरल का ईसाई समाज यह कहने से भी नहीं घबराता कि उन्हें इस्लामॉफ़ोबिया है, ऐसा इसलिए कि जिस आक्रामक तरीके से देश भर में इस्लामिक कट्टरधारी अपने एजंडे को बढ़ावा दे रहे हैं उससे किसी न किसी अराजकता और खून-खराबे की स्थिति बनी रहती है। उदाहरण के रूप में दिल्ली में सीएए/एनआरसी के खिलाफ विरोध, इतना आक्रामक हुआ की कई सरकारी और निजी सम्पत्तियों को जला दिया गया। दिल्ली में ही घर के बाहर रिंकू शर्मा को बेरहमी से मार दिया गया। इस कट्टरता से किसे नहीं डर लगेगा?

बहरहाल, केरल में इसी चुनावी दांव-पेच के बीच कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेताओं ने यह आरोप लगाया की लव जिहाद का मुद्दा उठाकर संघ परिवार लोगों को अहम मुद्दों से भटका रही है। इसका मतलब यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को बेटियों की इज्जत से ज़्यादा एक विशेष वर्ग का वोट हासिल करना ही मकसद है। 

केरल में जबरन धर्म-परिवर्तन भी एक अहम मुद्दा है, ऐसा इसलिए क्योंकि 2016 के रिपोर्ट के अनुसार केवल केरल राज्य में करीब 6000 लोगों का इस्लाम में धर्म-परिवर्तन कराया गया था। अब इनमे से कितने जबरन थे या अपनी इच्छा से यह बता पाना तो असम्भव है किन्तु यह आरोप लगाया गया कि यह धर्म-परिवर्तन जबरन कराया गया था। 

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