“धर्मो रक्षति रक्षतः” आज इस विषय पर मतभेद क्यों?

हाल ही में होयसला समय की महाकाली की मूर्ति को उपद्रवियों ने तोड़ दिया था। (सोशल मीडिया)
हाल ही में होयसला समय की महाकाली की मूर्ति को उपद्रवियों ने तोड़ दिया था। (सोशल मीडिया)
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"धर्मो रक्षति रक्षतः" आज इस भाव एवं इस विषय पर वामपंथियों द्वारा भरपूर मात्रा में भ्रान्ति फैलाई जा रही है। इस भाव का अर्थ है "यदि तुम धर्म की रक्षा करोगे, तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा।" किन्तु आज 'रक्षा' शब्द को हिंसा से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। 'हिंसा' जिसका हिंदु धर्म एवं संस्कृति में कई लम्बे समय से विरोध किया जाता रहा है, आज उस धर्म को ही गोधरा एवं राम मंदिर से जोड़ा जा रहा है। क्या यह उचित है?

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भाजपा के दिवंगत नेता अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा लिखित कविता के एक अंश को दोहराता हूँ कि 'हिन्दू के नाते उनका दुःख, सुनते यदि तुम्हें लाज आती। तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहाँ कुचली जाती।' अटल जी ने 'सीमा के उस पार' की बात की है जहाँ आज भी अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार किया जाता है। मंदिरों और मठों को मुग़लों की भांति तोड़ दिया जाता है।

यह उन सभी धर्मनिरपेक्ष तबके को नहीं दिखेगा क्योंकि उनके लिए कुछ बेटियों के साथ हुए लव जिहाद जैसे अपराध जिसका पिछले 112 दिनों में 43 मामले दर्ज हो चुके हैं मामूली मुद्दे हैं। उन्हें यह सब वोटों को चमकाने वाला विषय लगता है।

आज उस देश में जहाँ हिंदी भाषी सबसे अधिक हैं वहीं से हिंदी को न थोपने की बात उठाई जाती है। यह मतभेद क्यों? अगर कोई एक पार्टी के काम से खुश नहीं है तो धर्म से क्यों मुँह मोड़ा जा रहा है।

भारत की अखंडता में भंग क्यों और यह तनाव पैदा करने वाले कौन हैं? इसका जवाब है 'हम सब' क्योंकि दंगाइयों पर लाठी चार्ज धर्मनिरपेक्षों को गलत लगता है, मगर मंदिर की मूर्तियों का टूटना मामूली। शक इस बात पर और गहरा जाता है जब 'भगवा आतंकवाद' जैसे मनगढंत शब्द को खुद तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग समर्थन देते हैं। विश्वविद्यालयों में भारत विरोधी नारे भी उन्हीं की देन है। राम मंदिर को गलत और आतंकी के फांसी को भी गलत बताना इन सब की ही पहल का हिस्सा है। हिंदुस्तान शब्द से आपत्ति है! यह ढोंग कब तक और किसके लिए?

जिन्होंने कभी कहा था कि दिल्ली में 'स्वराज' की स्थापना करेंगे आज उन्हीं के राज में मंदिरों की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं और वह चुप्पी सादे बैठे हैं। जी हाँ! दिल्ली के बेगमपुर में शिवशक्ति मंदिर में दर्जनों मूर्तियों को तोड़ दिया गया और लोगों ने यह कहते हुए सुना कि 'सिर काट दिया, सिर काट दिया'।

बेगमपुर इलाके में शिवशक्ति मंदिर टूटी भगवान की टूटी हुई मूर्तियां। (Twitter)

इस जहर को फैलाने में वामपंथी मीडिया भी पीछे नहीं है जिन्होंने प्रेम और धोखे को एक समान माना है। और तो और उन्होंने यह तक लिख दिया कि 'लड़की अपनी स्वीकृति से भागी' किन्तु क्या उस लड़के को धोखा देने की भी स्वीकृति मिल चुकी है या धर्म परिवर्तन कराना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है? ऐसे मीडिया जो भ्रान्ति को भी आग की तरह फैलाते हैं, उनसे संभल कर रहना होगा। क्योंकि इन कुछ ओछी मीडिया संगठनों की वजह से पूरे मीडिया जगत पर लांछन लगता है।

हालांकि, देश में एक और बड़ी घटना हुई है जिस से आपकी भी चिंता बढ़ सकती है। मैंगलोर(Mangalore) के बेजाइ(Bejai) इलाके में फ्लाईओवर के नीचे एक चेतावनी लिखी हुई मिली जिसमें लिखा था "लश्कर जिंदाबाद" आगे लिखा गया कि "संघ और हिन्दुओं से भिड़ने के लिए लश्कर-ए-तैयबा और तालिबान को एकजुट होने पर मत उकसाओ" अब सवाल यह है कि क्या यह चेतावनी हिन्दुओं की ओर से दी गई है? और हम कब तक मूक दर्शक बने रहेंगे?

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