गोवा में मिशनरी द्वारा किए गए अत्याचारों का कहीं भी उल्लेख क्यों नहीं?

गोवा में मिशनरी द्वारा किए गए अत्याचारों का कहीं भी उल्लेख क्यों नहीं?
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गोवा आज भारत के विकसित और पर्यटन के क्षेत्र में संपन्न राज्य है। गोवा को उसके मोहक समुद्री किनारों और सुंदर दृश्यों के लिए जाना जाता है। किन्तु आज, अगर आपको गोवा में पुर्तगाली या ईसाई छाप ज़्यादा देखने को मिलती है तो उसका भी एक काला अतीत है। जब पुर्तगाली आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर हमला किया गया तब उन पुर्तगाली मिशनरियों का एक-मात्र उद्देश्य था केवल जबरन धर्म परिवर्तन करवाना। किन्तु इससे जुड़े दस्तावेजों को या तो गबन कर लिया या फिर नष्ट कर दिया गया।

गोवा अधिग्रहण का काला समय 1560 से लेकर 1812 तक चला, जब पुर्तगालियों ने देश पर आक्रमण किया और गोवा को अपने शासन में सम्मिलित कर लिया। जिसका खामियाजा वहाँ पर रह रहे हिन्दुओं को झेलना पड़ा। क्रूर मिशनरियों ने हिन्दुओं पर धर्मपरिवर्तन के लिए हर संभव प्रताड़ना दी। कुछ ने भय में आकर ईसाई धर्म अपना लिया और कइयों को क्रूर प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। इन मिशनरियों का काम ईसाई चर्चों का गोवा में बढ़ावा देना, हिन्दुओं का धर्मांतरण करवाना और उन्हें प्रताड़ना देना था। साथ ही उन सभी हिन्दुओं की जमीन पर अधिग्रहण करना भी था, जिन्होंने इसका विरोध किया।

गोवा अधिग्रहण के समय गोवा की मूल भाषा कोंकणी बोलने पर भी पाबन्दी लगा दी गई थी। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि उन मिशनरियों का उद्देश्य क्या था। इसका प्रमाण आपको 25 जनवरी 1545 को जेसुकेट मिशनरी फ्रांसिस जेवियर द्वारा पुर्तगाल के राजा जॉन तृतीय को लिखे गए एक पत्र मिलता है जिसमे उन क्रूर कानूनों को मंजूरी देने की बात लिखी गई थी।

लोगों को आग में झोंक दिया जाता था। (ट्विटर)

मिशनरियों द्वारा किए गए क्रूरता को इस प्रकार सोचिए: आग में जलता हुआ व्यक्ति, कटे हुए शरीर के अंग, महिलाओं पर प्रताड़ना, आँखों में छेद, इत्यादि। यह सब उस समय धार्मिक तौर पर कानूनन सही ठहराया गया। जब गोवा अधिग्रहण कानून लागु भी नहीं हुआ था उससे पहले ही पुर्तगाली चर्च ने यह फरमान जारी कर दिया था की राज्य के सभी हिन्दू मंदिरों को तोड़ दिया जाए और उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया जाए।

1539 में नए बनाए गए ईसाईयों का भी भारी संख्या में कत्लेआम करवाया गया क्योंकि चर्च को यह शक था की वह सभी गुप्त तरीके से अपने देवी देवताओं को पूजते हैं। इस सब का आदेश चर्च द्वारा ही दिया गया था। किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने अमानवीयता के चेहरे रहे फ्रांसिस जेवियर, एलेक्सीओ डिआज फाल्को और हेनरी ली को दुनिया के सामने धर्मपरायणता, परोपकार और समाज सेवा के शब्दों से सम्बोधित किया।

आप उस समय हिन्दुओं पर किए गए प्रताड़ना का अंदाजा लगाने के लिए ईसाई चर्च द्वारा बनाए गए कानूनों की तरफ ध्यान केंद्रित करें, जिसके उपरांत आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि पुर्तगाली किस मकसद से भारत में आए थे:

१. एक हिंदू अनाथ बच्चे को ईसाईयों द्वारा जब्त कर लिया जाता था और उसे ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया जाता। पुर्तगाल द्वारा यह शाही आदेश 1559 में चर्च को दी गई थी। इस तरह से सभी अनाथालयों को जब्त कर लिया गया था।

गोवा अधिग्रहण का दृश्य एक चित्रकार द्वारा।(Wikimedia Commons)

२. हिंदू महिलाएं अगर ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गईं, तो उन्हें पैतृक संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार मिलता था। उनके हिंदू भाई-बहनों के बीच संपत्ति के बंटवारे की अनुमति नहीं थी।

३. सभी कानूनी कार्यवाहियों में, सभी कानूनी सबूतों के गवाह बनने के लिए हिन्दू होना अस्वीकार्य था। केवल ईसाई गवाहों को ही कानूनी सबूत के रूप में अनुमति दी गई थी। इस प्रकार सभी कानूनी निर्णयों की वैधता ईसाइयों और चर्च द्वारा विनियोजित की गई।

४. पुर्तगाली गोवा में हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। हिंदू मंदिर के लिए कोई मरम्मत, रखरखाव, पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं थी। इस प्रक्रिया में पूर्व 16 वीं शताब्दी के सभी मंदिरों को उजाड़ा गया और ध्वस्त कर दिया गया। किन्तु इतिहास के वामपंथी चाटुकारों ने कही इसका उल्लेख भी नहीं किया।

५. अनुष्ठान और विवाह और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में हिंदू पुजारियों का सामाजिक जुड़ाव वर्जित था। केवल चर्च को सभी सामाजिक कार्यक्रमों को करने की अनुमति थी।

भारत की यह बदनसीबी कहें या इतिहासकारों का एकतरफा रवैया, लेकिन यह बात सच है कि आज जो लोग धर्मनिरपेक्ष का चोगा ओढ़ कर समानता की बात करते हैं उन्हें अपने अतीत के विषय में न कोई ज्ञान है और न ही उनके ज्ञान का कोई स्रोत है।

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