गृहणियों को वेतन बनाम महिलाओं के अवैतनिक काम की गणना

गृहणियों को वेतन बनाम महिलाओं के अवैतनिक काम की गणना

By: जीमोल उन्नी

तमिलनाडु में कमल हसन की राजनीतिक पार्टी ने अपने चुनावी अभियान के तहत गृहणियों को वेतन देने का वादा किया है। उनके इस विचार का कांग्रेस नेता शशि थरूर ने स्वागत किया है। वहीं मीडिया में पायलट जोया अग्रवाल के नेतृत्व में महिला पायलटों द्वारा सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु की सबसे लंबी उड़ान पूरी करने की खबरें छाई हुई हैं।

लेकिन ये सोचने वाली बात है कि ये खबरें राष्ट्रीय श्रम सांख्यिकी में महिलाओं के काम के बेहतर आंकड़े पाने के लिए नारीवादी सांख्यिकीविदों और अर्थशास्त्रियों द्वारा लंबे समय से लड़ी जा रही लड़ाई की तुलना में सुर्खियां बटोरने में कैसे कामयाब रहीं? इतना ही नहीं वे दस्तावेज भी जो उनके भुगतान और अवैतनिक कार्यों की गिनती कर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उनका पूरा योगदान बताते हैं?

1988 में सेल्फ-एम्प्लॉयड यानि कि खुद का काम करने वाली महिलाओं और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों पर राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट 'श्रमशक्ति' में कहा गया था कि "सभी महिलाएं श्रमिक हैं क्योंकि वे उत्पादक और प्रजननकर्ता हैं। यहां तक कि जब वे कामकाजी नहीं है तब भी वे इसमें शामिल हैं। वे सामाजिक रूप से उत्पादन श्रम और प्रजनन में शामिल हैं, जो सभी समाजों के अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे में घर के काम करने वाली गृहणियों को सामाजिक/आर्थिक उत्पादक के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।"

महिलाओं की काम में सहभागिता को मापने के लिए दशकों से बहस चल रही है। इतना ही नहीं यह आरोप भी लगता रहा है कि सरकारी सांख्यिकीय प्रभाग पारंपरिक श्रम बल के आंकड़ों में महिलाओं के अवैतनिक कामों की अनदेखी की जाती है। काम को मापने की परिभाषाएं और मानक इंटनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) और इसके इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन लेबर स्टेटिसटिशियन (आईसीएलएस) द्वारा तय किए जाते हैं। 1982 में 13वीं आईसीएलएस ने आर्थिक रूप से सक्रिय जनसंख्या, रोजगार, बेरोजगारी औके लिए परिभाषा और मानदंड निर्धारित किए थे, जिनमें बाद में 1987, 1998 और 2008 में संशोधन किया गया।

महिलाओं की वर्क फोर्स में हिस्सेदारी में कमी आ रही है।(Pixabay)

जीडीपी पर डेटा संग्रह के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देश देने वाले संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रीय खातों की प्रणाली सिफारिश करती है कि महिलाओं के प्रजनन संबंधी काम या देखभाल करने जैसे अवैतनिक कामों को देश के राष्ट्रीय खातों में गिना जाना चाहिए और उनका लेखा-जोखा भी होना चाहिए। लेकिन इस पर तर्क दिया जाता है इन अवैतनिक कामों का मूल्य राष्ट्रीय आय में आय के प्रवाह के लिए लगाए जाने वाले अनुमानों को गड़बड़ा देगी।

आईएलओ की 19वीं आईसीएलएस ने काम को मापने के लिए जो मानक बनाए हैं, वे लिंग को लेकर ज्यादा संवेदनशील हैं। पारंपरिक परिभाषा में श्रम बल को तीन श्रेणियों में – नियोजित, बेरोजगार और श्रम बलों (या निष्क्रिय) से बाहर, में बांटा गया है। लेकिन 19वीं आईसीएलएस में 'काम' की एक अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकीय परिभाषा पर सहमति व्यक्त की गई जिसमें ऐसी 5 प्रमुख गतिविधियां बताई गई थीं, जिनमें लोग शामिल हो सकते हैं।

पहला बड़ा बदलाव यह था कि 'काम' में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए भुगतान करने वाली और अवैतनिक गतिविधियां शामिल थीं। इसमें काम को बताने वाली गतिविधियां थीं – 1. स्वयं के उपयोग के लिए उत्पादन करना, 2. दूसरों के उपयोग के लिए वेतन या लाभ के लिए काम करना, 3. दूसरों के उपयोग के लिए काम करना लेकिन बिना भुगतान के (ए) अवैतनिक प्रशिक्षु की तरह काम करना, (बी) अन्य अवैतनिक काम और (सी) स्वयंसेवक की तरह काम करना।

दूसरा बड़ा बदलाव यह किया गया था कि एक व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक गतिविधियों में शामिल हो सकता है।

नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसओ) अपने श्रम बल सर्वेक्षण में पहले एम्प्लॉयमेंट एंड अनएम्प्लॉयमेंट सर्वे (ईयूएस) में महिलाओं के काम को मापने के लिए पारंपरिक परिभाषा का उपयोग करता था। अब इसका नया वर्जन पेरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) है। वैसे तो विशेषज्ञ अब भी आईसीएलएस में उपयोग की गई परिभाषाओं के विचार से जूझ रहे हैं और एनएसओ सोच रहा है कि क्या नई परिभाषाओं को श्रम बल के आंकड़ों को इकट्ठा करने में उपयोग किया जा सकता है।

जबकि महिलाओं की वर्क फोर्स में हिस्सेदारी में कमी आ रही है। 2004-05 के एम्प्लॉयमेंट एंड अनएम्प्लॉयमेंट सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी 48 प्रतिशत थी जो 2017-18 के पेरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे में घटकर 23 फीसदी होगी। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी क्रमश: इन वर्षों में 23 फीसदी से घटकर 18 प्रतिशत हो गई।

वैसे हाल ही में सामने आए टाइम यूज सर्वे (टीयूएस), 2019 में उम्मीद की किरण नजर आती है। यह सर्वे 20 साल पहले 1999 में 6 राज्यों में किया गया था। वहीं इस बार 5 राज्यों में किया गया था।

यदि हम 19वीं आईसीएलएस के काम की 5 गतिविधियों वाली परिभाषा का उपयोग करते हैं, तो टीयूएस में हमें पहले बदलाव के अनुसार भुगतान और अवैतनिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी हुई नजर आती है।

भुगतान और अवैतनिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी हुई नजर आ रही है।(Pixabay)

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 5 गतिविधियों में भाग लेने वाली महिलाओं के प्रतिशत को देखें तो – 1. स्वयं के उपयोग के लिए काम करने वाली, 20 प्रतिशत, 2. वेतन या लाभ के लिए दूसरों के उपयोग के लिए काम करना 18.4 प्रतिशत, 3. दूसरों के उपयोग के लिए लेकिन बिना भुगतान के काम करना – इसमें अवैतनिक प्रशिक्षु काम और स्वयंसेवक की तरह काम करने वालों का 2 प्रतिशत और अन्य अवैतनिक काम करने वालों का प्रतिशत 81 प्रतिशत है।

दूसरे प्रमुख परिवर्तन के अनुसार, एक व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक गतिविधियों में शामिल हो सकता है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि टीयूएस का उपयोग करने वाले इन अनुमानों की तुलना पारंपरिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण पीएलएफएस में सामने आई दरों से नहीं की जा सकती है। इसके अलावा यह भी स्पष्ट है कि पारंपरिक तरीके से सर्वेक्षण करने की स्टैंडर्ड प्रश्नावली से एक ही समय में कई भुगतान और अवैतनिक कामों में लगीं महिलाओं के कार्य सहभागिता की गणना करना कठिन है।(आईएएनएस)

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