क्या ‘इस्लाम संविधान को नहीं मानता है?’

(NewsGram Hindi)
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'इस्लाम संविधान नहीं मानता है' यह कहना डासना शिव-शक्ति धाम के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती का, जिन्होंने कट्टरपंथियों के खिलाफ एक संघर्ष को जन-जन तक पहुँचाने का काम किया है। आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले #sorryasif ट्रेंड हुआ था और इस ट्रेंड के बाद ही यति नरसिंहानंद एवं डासना में स्थित शिव मंदिर सुर्खियों में आए थे। साथ ही इस सोशल मीडिया ट्रेंड ने महंत नरसिंहानंद को इस तरह आगे बढ़ने में मदद किया कि लिब्रलधारियों और कट्टरपंथियों के लिए यह नई चुनौती के रूप में वह सामने आए। आपको बता दें कि नरसिंहानंद सरस्वती के खिलाफ इन्हीं कट्टरपंथियों ने 'सर तन से जुदा' जैसे नारों को बुलंद किया था और कई बार डासना मंदिर में ऐसे संदिग्धों को पकड़ा गया है जो मंदिर में प्रवेश कर महंत को मारने आए थे। किन्तु इसमें भी सफलता महंत नरसिंहानंद सरस्वती को ही मिलती हुई दिख रही है।

अब बात करते हैं मुद्दे पर, कि क्या 'इस्लाम' भारत का सर्वोपरि संविधान नहीं मानता है? इस प्रश्न के दो तार जोड़े जाते हैं, एक तरफ तो मौलाना/ मौलवी इस्लाम को शांतिप्रिय धर्म का तमगा देते हैं वहीं दूसरी ओर यही मौलाना/मौलवी सर काटने का 'फतवा' जारी करते हैं। इनके मौलवी सरेआम मस्जिदों में बैठकर हिन्दुओं को काटने की धमकी देते हैं और यह बात छुपी नहीं है। ऐसे कई वीडियो सोशल मीडिया और यूट्यूब पर मौजूद हैं जिनमें एक मौलवी मुस्लिम युवाओं से काफिरों को यानि गैर मुस्लिमों को काटने और जिहाद करने के लिए कह रहा है। इसके लिए उन्हें 'जन्नत और हूरों' का सपना दिखाया जाता है।

यति नरसिंहानंद अपने कई वीडियो में यह कहते दिखाई देते हैं कि महंत बनने से पहले उन्होंने इस्लाम को क्यों समझा? इस्लाम को समझने के बाद ही आज वह इतने बड़े स्तर पर इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ बोल रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि इस्लाम के कट्टरवाद को समझने के लिए सभी राष्ट्रवादियों को कुरान पढ़ना चाहिए, यह मोहम्मद या अल्लाह को जानने के लिए नहीं उनका मानना है कि उनमें लिखीं आयतों से यह जरूर समझ में आजाएगा की जिहाद को किस तरह इस्लाम के ठेकेदारों ने हिंसा से जोड़ दिया है।

यति नरसिंहानंद ने एक प्रेस-कॉन्फ्रेंस में यहाँ तक कहा था कि 'यदि एक मुसलमान को पैगम्बर मोहम्मद के सच्चाई का पता चल जाएगा तो यह निश्चित है कि वह इस्लाम धर्म त्याग देगा।' इसी वक्तव्य के बाद उनके खिलाफ देश के कट्टरपंथियों द्वारा 'सर तन से जुदा' नारा लगवाया गया था। उन्होंने अपने एक वीडियो में यह भी कहा है कि मुस्लिमों द्वारा कहे जाने वाला वक्तव्य "तुम्हारा मजहब तुम्हारे लिए, हमारा मजहब हमारे लिए" के पीछे एक हिंसक षड्यंत्र को छुपाया जाता है। उनके अनुसार मुसलमान 'गुस्ताख-ए-रसूल' को पूरी तरह अमल लाना चाहते हैं जिसका मतलब है अल्लाह को न मानने वाले की 'सजा', सर तन से जुदा।

यति नरसिंहानंद सरस्वती(भगवा वस्त्र में) (NewsGram Hindi)

अब सवाल यह उठता है कि जिन लिब्रलवादियों को 'मंदिर में मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है' यह बोर्ड संविधान के खिलाफ लगता है, वह उस समय मदारी से झमूरे का भेस क्यों धर लेते हैं जब फतवाबाजी और सर को काटने जैसे फरमान मौलवी या मौलाना द्वारा जारी किया जाता है? तब यह गैंग क्यों बहरा बन जाता है जब यह आरोप लगते हैं कि मुस्लिम बहुल इलाके होते हुए डासना मंदिर में दर्शन के लिए आई बहन-बेटियों पर मुस्लिम युवाओं द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणियां की जाती हैं, मंदिर में लगी भगवान मूर्तियों पर इसी समुदाय के तथाकथित बच्चों द्वारा अभद्र कार्य किए जाते हैं? तब न तो लिबरल गैंग सामने आता है और न ही कोई बुद्धिजीवी इस पर अपनी आपत्ति जताता है।

ऐसा ही कुछ हुआ शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिज़वी के साथ, जब उन्होंने कुरान की उन 26 आयतों को हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर की जो हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। उनके खिलाफ भी देश में कट्टरपंथी मौलानाओं द्वारा 'सर तन से जुदा' जैसे फतवों को जारी किया गया। क्या यह संविधान के खिलाफ नहीं है?

वसीम रिज़वी से पहले हिंदुत्व को निकट से जानने वाले लेखक एवं इतिहासकार सीता राम गोयल ने ऐसी कई आयतों के विषय में कहा था जो हिंसा और कट्टरता को बढ़ावा देतें हैं। सीता राम गोयल ने अपने पुस्तकों के द्वारा यह विषय किसी न किसी रूप में उठाने का प्रयास किया था। उनकी पुस्तकों को आज भी आसानी से ऑनलाइन खरीदा जा सकता है। उन्होने अपने किताब में मिशनरियों से लेकर मौलवियों तक, पैगंबर से लेकर गिरजा घरों तक, सभी पर विस्तार में चर्चा की है। उनकी किताब 'Hindu Temples What Happened to Them Volume II- The Islamic Evidence' में कुछ 80 मंदिरों के विषय में विस्तारपूर्वक चर्चा की है जिनकी जगह आज मुगल ढांचा खड़ा है। उन्होंने अपने पुस्तकों में तथाकथित सेक्युलरधारियों पर भी कटाक्ष किए हैं, जिसे पढ़ना आज के राष्ट्रवादी युवाओं के लिए अत्यंत आवश्यक है। इन सभी लोगों को जब पढ़ा नहीं जाएगा या इनके विचारों और तर्कों को सुना नहीं जाएगा, तब तक भ्रम और सेकुलरिज्म का दोहरा चरित्र युवाओं में उत्पन्न होता रहेगा। जबकि हमारी कोशिश यह रहनी चाहिए इन कि तथ्यों को पढ़कर उन कट्टरपंथी विचारधाराओं पर प्रश्न उठाएं जो सरकारी हित के लिए संविधान का हवाला देते हैं और स्वयं के हित के लिए फतवा और सर काटने की धमकी देते हैं।

(यह लेख किसी धर्म या समुदाय के लिए द्वेष पैदा करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है, बल्कि कट्टरपंथियों द्वारा किए जा रहे फतवेबाजी और सर काटने की धमकियों पर सवाल उठाने के लिए लिखा गया है।)

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