![कुल जनसंख्या में 0.01% से भी कम है, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था में उनका योगदान अरबों डॉलर का है? [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-17%2Fkt85ora6%2Fassetstask01k2w0f6khfvpvkb0p4937x7mb1755434275img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
क्या आप जानते हैं कि भारत का एक ऐसा समुदाय है जो कुल जनसंख्या में 0.01% से भी कम है, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में उनका योगदान अरबों डॉलर का है? जी हाँ, संख्या में बेहद छोटे इस समुदाय ने भारत को ‘मेक इन इंडिया’ (Make In India) का असली अहसास कराया है। हम बात कर रहें है भारत के पारसी समुदाय (Parsi community) की, जिन्हें ‘ज़ोरोस्ट्रियन’ (Zoroastrian) भी कहा जाता है। 8वीं सदी में ईरान से भारत आए कुछ पारसी इस धरती के लिए इतने प्यारे हो जाएंगे किसी ने सोचा नहीं था।
धीरे-धीरे इस छोटे से समुदाय ने भारत के उद्योग, व्यापार, शिक्षा और सामाजिक विकास में इतना बड़ा योगदान दिया कि देश की आधुनिक तस्वीर उनके बिना अधूरी लगती है। टाटा, गोदरेज, वाडिया जैसे बिज़नेस हाउस और डॉक्टर होमी भाभा जैसे वैज्ञानिक पारसी समुदाय की ही देन हैं। एक ओर उन्होंने भारत को इंडस्ट्रियलाइजेशन (India's Industrialization) की राह दिखाई तो दूसरी ओर समाजसेवा, शिक्षा और रिसर्च में भी अग्रणी भूमिका निभाई। तो अगली बार जब आप भारत के विकास की कहानी पढ़ें, तो याद रखिएगा कि इसके पीछे एक बेहद छोटा लेकिन बेहद असरदार समुदाय है ‘पारसी’।
पारसी समुदाय कौन है और वे कहाँ से आए?
पारसी समुदाय (Parsi community) फारस (आज का ईरान) से आया एक धार्मिक समुदाय था, जो ज़रथुस्त्र धर्म यानी ज़ोरास्ट्रियन धर्म (Zoroastrian) को मानता था। लगभग 7वीं शताब्दी में जब ईरान में इस्लाम का विस्तार हुआ, तब धार्मिक स्वतंत्रता बचाने के लिए पारसी समुद्र मार्ग से भारत पहुँचे। ऐतिहासिक मान्यता है कि वे सबसे पहले गुजरात के संजान तट पर उतरे और यहीं से उन्होंने भारत में अपने नए जीवन की शुरुआत की।
धीरे-धीरे उन्होंने गुजरात और महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में बसना शुरू किया।भारत आने के बाद पारसी समुदाय (Parsi community) ने स्थानीय संस्कृति को अपनाया और साथ ही अपनी परंपराओं को भी सुरक्षित रखा। वे अपनी ईमानदारी, मेहनत और व्यापारिक कौशल के लिए प्रसिद्ध हुए। भारत में पारसियों ने सबसे पहले व्यापार और जहाजरानी के क्षेत्र में कदम रखा। 17वीं शताब्दी में लवजी नुसरवानजी वाडिया (Luvji Nusserwanji Wadia) नामक पारसी व्यापारी ने मुंबई में जहाज बनाने का कारोबार शुरू किया। यह भारत का पहला बड़ा पारसी बिज़नेस माना जाता है। वाडिया शिपयार्ड (Wadia Shipyard) ने ऐसे जहाज बनाए जिनका इस्तेमाल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी करती थी। यही से पारसी व्यापारिक शक्ति का सफर शुरू हुआ।
कावसजी नानाभाई दावर
फ़रवरी 1854 की बात है, जब भारत के उद्योग-धंधों पर अंग्रेज़ों का पूरा दबदबा था। उसी दौर में मुंबई शहर में पहली बार किसी भारतीय ने अपना खुद का सूत कारख़ाना (कॉटन मिल) शुरू किया। इस ऐतिहासिक कदम के पीछे नाम था कावसजी नानाभाई दावर (Kawasji Nanabhai Dawar) का, जो पारसी समुदाय से ताल्लुक़ रखते थे। उनका यह साहसिक कदम भारतीय उद्योगों के लिए नई राह खोलने वाला साबित हुआ। कावसजी दावर से शुरू हुआ यह सफर और जमशेतजी टाटा का यह सपना ही आगे चलकर भारत को “मेक इन इंडिया” की असली बुनियाद देने वाला बना।
जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा
सन 1868 में पारसी उद्यमी जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा (Jamsetji Nusserwanji Tata) ने महज़ 21,000 रुपये से अपनी पहली ट्रेडिंग कंपनी की नींव रखी। अगले साल उन्होंने बॉम्बे के चिंचपोकली स्थित एक दिवालिया ऑयल मिल खरीदी और उसे कॉटन मिल में बदलकर एलेक्ज़ेंड्रा मिल नाम दिया। हालांकि दो साल बाद इसे अधिक लाभ में बेच दिया। 1874 में उन्होंने नागपुर में सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग एंड मैन्युफ़ैक्चरिंग कंपनी की शुरुआत की, जो आधुनिक भारतीय उद्योग का अहम पड़ाव बनी। जमशेतजी टाटा के बाद उनके पुत्र दोराबजी टाटा ने विरासत को आगे बढ़ाया और 1907 में देश को पहला इस्पात कारख़ाना उपहार में दिया।इसके बाद तीसरी पीढ़ी में जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (जे.आर.डी. टाटा) ने 1932 में भारत को उसकी पहली एयरलाइंस, एयर इंडिया, देकर नया इतिहास रचा। इस तरह पारसी समुदाय ने भारतीय उद्योग और अर्थव्यवस्था को एक नई पहचान दी।
आर्देशिर ईरानी
पारसी समुदाय (Parsi community) ने केवल उद्योगों के छेत्र में ही नाम नहीं कमाया फिल्मी दुनिया में भी उसका योगदान देखने को मिलता है। भारत में 1909 से 1930 तक सिर्फ़ मूक फ़िल्में ही बनती थीं। लेकिन 1931 में पारसी समुदाय के आर्देशिर ईरानी (Ardeshir Irani) ने इतिहास रचते हुए भारत की पहली बोलती फ़िल्म ‘आलम-आरा’ बनाई। इसी फ़िल्म से देश में साउंड फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ। आर्देशिर ईरानी ने अपने निर्देशन की शुरुआत 1922 में बनी मूक फ़िल्म ‘वीर अभिमन्यु’ से की थी। उनकी कोशिशों ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी और फिल्मों की दुनिया में एक बड़ा बदलाव लाया। इस तरह आर्देशिर ईरानी को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला।
शापूरजी पालोनजी मिस्त्री
सन 1960 में हिंदी सिनेमा की ऐतिहासिक फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को परदे पर लाने का सपना भी एक पारसी ने ही साकार किया था. अगर उस वक़्त निर्देशक के. आसिफ़ के कांधे पर पारसी कारोबारी शापूरजी पालोनजी मिस्त्री (Shapoorji Pallonji Mistry) का हाथ नहीं होता तो हिंदी सिनेमा को ये बेहतरीन को फ़िल्म नहीं मिल पाती।
होमी जहांगीर भाभा
जिन्हें ‘भारत के परमाणु कार्यक्रम का जनक’ कहा जाता है, वह एक पारसी वैज्ञानिक थे। उन्होंने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) की स्थापना की और भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने की नींव रखी। उन्होंने मार्च 1944 में अपने कुछ वैज्ञानिक साथियों को साथ लेकर न्यूक्लियर एनर्जी पर रिसर्च की थी। सन 1945 में वो परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फ़ंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफ़आर) के संस्थापक निदेशक बने। इसके बाद सन 1948 में डॉ. भाभा (Dr Homi Jahangir Bhabha) ‘परमाणु शक्ति आयोग’ के चेयरमैन बने। सन 1954 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था।
सैम मानेकशॉ
भारतीय सेना के पहले फ़ील्ड मार्शल थे और 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायक बने। वे भी गर्व से पारसी समुदाय से जुड़े थे।सन 1971 के ‘भारत-पाकिस्तान युद्ध’ के हीरो रहे सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) भी एक पारसी परिवार से ताल्लुक़ रखते थे। उनका पूरा नाम ‘सैम होर्मसजी फ़्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ‘ था। वो ‘फ़ील्ड मार्शल’ की रैंक हासिल करने वाले भारतीय सेना के पहले सैनिक थे।
रतन टाटा
आज ‘टाटा फ़ैमिली’ की विरासत को दुनियाभर में फैलाने का श्रेय रतन टाटा (Ratan Tata) को जाता है। भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति, निवेशक, परोपकारी और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा देश के सबसे बड़े पारसी कारोबारी परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य थे। उन्हें भारत के सबसे शक्तिशाली सीईओ के रूप में भी स्थान दिया गया था। देश में उद्यमिता, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास के हिमायती रतन टाटा को साल 2008 में ‘पद्म विभूषण’ और साल 2000 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया जा चुका है।
सायरस पूनावाला
साल 2020-21 में जब कोरोना महामारी ने दुनियाभर में कहर बरपाया था उस वक़्त पारसी समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाले सायरस एस पूनावाला (Cyrus S. Poonawalla) ने मेक इन इंडिया ‘वैक्सीन’ बनाकर देश के हज़ारों लोगों की जान बचाई थी। दुनियाभर में सबसे पहले ‘कोरोना वैक्सीन’ बनाने वालों में देश का ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया’ भी एक था। ये संस्थान देश के प्रमुख टीका उत्पादक के तौर पर जाना जाता है। उद्योगपति, फ़ा र्माकोलॉजिस्ट और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के संस्थापक डॉ. सायरस पूनावाला को भारत सरकार ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित कर चुकी है।
अर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज
19वीं सदी में ‘टाटा फ़ैमिली’ के अलावा भारत को जिस पारसी परिवार ने ‘मेक इन इंडिया’ का अहसास कराया वो ‘गोदरेज फ़ैमिली’ ही थी। सन 1897 में संस्थापक अर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज (Ardeshir Burjorji Sorabji Godrej) के नेतृत्व में ‘गोदरेज समूह’ की कंपनियों ने देश को पहली बार ‘मेक इन इंडिया’ उपभोक्ता वस्तुओं (Consumer Goods) से लेकर रसायनों (Chemicals) तक से रू-ब-रू कराया। आज ‘गोदरेज समूह’ केवल व्यवसाय ही नहीं, बल्कि ‘परोपकारी कार्य’, ‘स्वयं सहायता समूह’, ‘सामाजिक विकास कार्य’ और ‘शिक्षा व साक्षरता’ के कार्य भी कर रहा है।
भारत की GDP में बड़ा हिस्सा है पारसी समुदाय का
भारत की अर्थव्यवस्था में पारसी समुदाय का योगदान असाधारण रहा है। जनसंख्या में बेहद कम होने के बावजूद इस समुदाय ने उद्योग, व्यापार और तकनीकी विकास के जरिए पूरे देश की तस्वीर बदल दी।सबसे पहले बात करें जमशेदजी टाटा की, जिन्हें भारत का “आधुनिक उद्योग का जनक” कहा जाता है। उन्होंने न सिर्फ़ टाटा समूह की नींव रखी बल्कि इस्पात, ऊर्जा, ऑटोमोबाइल और आईटी जैसे क्षेत्रों में भारत को आत्मनिर्भर बनाया। आज टाटा समूह देश की GDP में बड़ा हिस्सा जोड़ता है और लाखों लोगों को रोजगार देता है।
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गोदरेज परिवार ने घरेलू उद्योग से लेकर रियल एस्टेट, कंज़्यूमर प्रोडक्ट्स और एग्री बिज़नेस में देश को नई ऊँचाइयाँ दीं। वहीं वाडिया समूह ने वस्त्र उद्योग और एविएशन सेक्टर में भारत की पहचान बनाई। सिर्फ बिज़नेस ही नहीं, पारसी समुदाय ने सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्र में भी बड़े योगदान दिए। टाटा ट्रस्ट, बाईजी नसरवानजी ट्रस्ट और अन्य संस्थाओं ने स्वास्थ्य, शिक्षा और रिसर्च में करोड़ों रुपए लगाए, जिससे देश की सामाजिक संरचना मजबूत हुई। [Rh/SP]