भारतीय अर्थवयवस्था और शिक्षा

शिक्षा भारत को चीन जैसी आर्थिक प्रगति करने से रोक सकती है
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट मुख्यालय
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट मुख्यालयWikimedia
Published on
3 min read

दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट (South China Morning Post) के लिए एक लेख में एक निजी निवेशक विंस्टन मोक ने लिखा है कि शिक्षा भारत को चीन जैसी आर्थिक प्रगति करने से रोक सकती है। भारत चीन की तुलना में बहुत कम कुशल श्रमिकों का उत्पादन करता है। मोक ने कहा कि 112 गैर-अंग्रेजी भाषी देशों में, भारत और चीन अंग्रेजी दक्षता सूचकांक में क्रमश: 48 और 49 स्थान पर हैं।

अंग्रेजी भारत (India) की आधिकारिक भाषा बनी हुई है और इसे अक्सर नियोक्ताओं के बीच एक लाभ के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से वैश्विक वाणिज्य (global commerce) में। हालांकि, इसका उपयोग बड़े पैमाने पर अभिजात वर्ग करता है। मात्र 10.6 प्रतिशत भारतीय अंग्रेजी बोलते हैं, और केवल 0.02 प्रतिशत की गिनती उनकी पहली भाषा के रूप में होती है, मोक ने कहा।

मोक ने तर्क दिया कि जहां भारत शिक्षा (education) के क्षेत्र में चीन की सफलता से सीख सकता है, वहीं चीन (China) को अभी भी महत्वपूर्ण सोच और विचारों की विविधता की अनुमति देने के लिए प्रयास करना है।

जबकि चीन की कामकाजी उम्र की आबादी एक दशक से घट रही है, भारत (India) की बढ़ती आबादी - जो अगले साल चीन से आगे निकल जाएगी - युवा है। आधे से ज्यादा भारतीय 30 से कम उम्र के हैं। इस बीच, अटलांटिक (Atlantic) के दोनों किनारों पर हाई-प्रोफाइल बिजनेस और भारतीय मूल के राजनीतिक नेता हैं। विशेष रूप से, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) ने सिलिकॉन वैली के लिए प्रतिभा की एक मजबूत पाइपलाइन तैयार की है। लेख में ऐसा कहा गया है।

भारतीय अर्थवयवस्था और शिक्षा को लेकर रिपोर्ट
भारतीय अर्थवयवस्था और शिक्षा को लेकर रिपोर्टIANS

फिर भी पिरामिड पर टॉप में भारतीय अच्छा कर रहे हैं, लेकिन ऐसा चारों तरफ नहीं है। अगस्त में, भारत की शहरी बेरोजगारी दर (Urban unemployment rate) 9.6 प्रतिशत थी। युवा लोगों (2021 की दूसरी तिमाही में 25 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार के रूप में दर्ज किए गए) और स्नातक (इस वर्ष की शुरूआत में लगभग 18 प्रतिशत) के बीच स्थिति काफ़ी खराब है, और विशेष रूप से महिलाओं में ज्यादा।

हडसन इंस्टीट्यूट (Hudson Institute) के हुसैन हक्कानी और अपर्णा पांडे ने द हिल के लिए एक लेख में लिखा, कुल मिलाकर, जिस गति से आधुनिक, समृद्ध और बाजार-उन्मुख भारत की पश्चिमी देशों ने उम्मीद की थी, वो पूरी नहीं हुई है। भारत की आर्थिक विकास की वर्तमान दर चीन के लिए एक गंभीर प्रतिद्वंद्वी बनने के उद्देश्य के लिए अपर्याप्त है, जो कि एक चिंता का विषय है।

हुसैन हक्कानी हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण और मध्य एशिया के निदेशक हैं। उन्होंने 2008 से 2011 तक अमेरिका में पाकिस्तान (Pakistan) के राजदूत के रूप में कार्य किया।

अमेरिका (America) और भारत के पश्चिमी भागीदारों के दृष्टिकोण से, यह अवास्तविक अपेक्षाओं की बात है। भारत अपनी अर्थव्यवस्थाओं के सापेक्ष आकार में बड़े अंतर को पार किए बिना चीन के साथ आगे नहीं बढ़ सकता। वर्तमान में चीन की जीडीपी (GDP) 17.7 ट्रिलियन डॉलर है जबकि भारत की जीडीपी केवल 3.1 ट्रिलियन डॉलर है। दूसरी ओर, भारत के 2023 में दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन से आगे निकलने की उम्मीद है, जो बढ़ती युवा आबादी के लिए भोजन, शिक्षा और रोजगार प्रदान करने की घरेलू चुनौतियों को बढ़ा रहा है, लेख में ऐसा कहा गया है।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट मुख्यालय
साल में 4 बार अंग्रेजी समेत 12 भारतीय भाषाओं में होंगी जेईई परीक्षाएं

रिपोर्ट में कहा गया है कि देशी भाषाओं में उच्च शिक्षा के पक्ष में तर्क इस बात की भी अनदेखी करता है कि अंग्रेजी को व्यापक रूप से अपनाने के बिना, भारत पिछले दो दशकों में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हो पाता।

एक सॉफ्टवेयर निर्यातक (Software Exporter) के रूप में भारत की सफलता और 2000 के दशक में देश के आईटी उद्योग (IT industry) के उदय को व्यापक रूप से अंग्रेजी लाभ के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, जिसने 190 बिलियन डॉलर से अधिक का आउटसोसिर्ंग (outsourcing) उद्योग बनाया। अंग्रेजी-आधारित शिक्षा के इन कथित लाभों के कारण, कई विशिष्ट उच्च शिक्षा संस्थानों ने क्षेत्रीय भाषाओं में डिग्री की शुरूआत का जोरदार विरोध किया है। इसके बदले वो कहते हैं कि अंग्रेजी भाषा की बाधा को नेविगेट करने में वो छात्रों को अधिक सहायता प्रदान करें तो ज्यादा अच्छा होगा।

आईएएनएस/RS

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com