न्यूज़ग्राम हिंदी: अडानी समूह(Adani Group) पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट(Hindenburg Report) की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की विपक्ष की मांग के बीच ऐसे कई उदाहरण हैं, जब एक निश्चित मामले की जांच के लिए जेपीसी का गठन किया गया था। जेपीसी में दोनों सदनों के चुनिंदा सदस्यों को शामिल किया जाता है। लोकसभा सदस्यों की संख्या राज्यसभा सदस्यों की संख्या से दोगुनी है, इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी के पास जेपीसी में बहुमत होगा। इसके पास मौखिक साक्ष्य देने के लिए किसी सरकारी या गैर-सरकारी व्यक्ति या समूह को बुलाने का अधिकार है। जेपीसी विशेषज्ञों, सार्वजनिक निकायों, संघों, व्यक्तियों से स्वप्रेरणा से या दूसरों द्वारा किए गए अनुरोध पर साक्ष्य प्राप्त कर सकता है। अगर गवाह के लिए बुलाया गया कोई व्यक्ति समन के जवाब में जेपीसी के सामने पेश होने में विफल रहता है, तो ऐसे आचरण को सदन की अवमानना माना जाता है। जेपीसी मौखिक और लिखित साक्ष्य ले सकती है और अपने विचाराधीन मामले के संबंध में दस्तावेजों की मांग कर सकती है।
संसदीय समितियों की कार्यवाही गोपनीय होती है और मंत्रियों को आम तौर पर साक्ष्य देने के लिए समितियों द्वारा नहीं बुलाया जाता है। हालांकि, अध्यक्ष की अनुमति से वह उन्हें बुला सकती है।
सरकार कोई दस्तावेज पेश करने से मना कर सकती है, यदि उसे सुरक्षा और राज्य के हित के लिए प्रतिकूल माना जाता है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि जेपीसी की मांग जायज है और इसे राहुल गांधी से नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा, "विपक्ष पीएम से जुड़े अडानी घोटाले पर जेपीसी की मांग कर रहा है। लेकिन इसे पूरी तरह से निराधार आरोपों पर राहुल गांधी से माफी मांगने की भाजपा की मांग से कैसे जोड़ा जा सकता है। जेपीसी एक वास्तविक, प्रलेखित घोटाले की जांच के लिए गठित करने की मांग है। माफी की मांग एक धोखा है। अडानी घोटाले से ध्यान हटाने के लिए उठाया गया कदम है।"
सत्तापक्ष राहुल से माफी की मांग कर रहा है और उच्च सदन में सभापति और निचले सदन में अध्यक्ष ने इस मुद्दे को हल करने की कोशिश की, लेकिन आगे कोई मूवमेंट नहीं हुआ। पीयूष गोयल ने विपक्ष पर बैठक का बहिष्कार करने का आरोप लगाया।
--आईएएनएस/VS