![भारत ने 1947 के बाद आज़ादी से लेकर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Fourth Largest Economy) बनने तक एक लंबा और रोमांचक सफर तय किया है। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-28%2Fdfzvmede%2Fassetstask01k3rb4kcpf1f96memx8srybg31756384983img1.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारत ने 1947 के बाद आज़ादी से लेकर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Fourth Largest Economy) बनने तक एक लंबा और रोमांचक सफर तय किया (India's Economy 1947 to 2025) है। गाँवों में कोटा की दुकानों से दूरी अब केवल स्मृति बनकर रह गई है, आज यहाँ मंडी और बाज़ार हैं। नेहरू की तटस्थ विदेश नीति (Non-Alignment) ने भारत को प्रभावी और सम्मानित स्थान दिलाया, जबकि विकसित भारत के एक सपने ने और सामाजिक-आर्थिक नीतियों ने देश को आगे बढ़ाया। फिर भी क्या यह प्रगति आसान थी? आज हम आर्थिक विकास के सफर को कई हिस्सों में बांटकर देखेंगे की स्वतंत्रता के समय की हालत, नेहरू-काल की नीतियाँ, आर्थिक उदारीकरण, लोकतंत्र की चुनौतियाँ, और आज की आर्थिक उपलब्धियों के लिए क्या कुछ करना पड़ा।
स्वतंत्रता के बाद की स्थिति
1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तो वह झड़ता हुआ अर्थव्यवस्था और खंड-खंड पड़े समाज की स्थिति में था। गाँवों की दशा बहुत खराब थी, नमक, चीनी, मिट्टी के तेल जैसी ज़रूरी चीज़ों के लिए कोटा-परमिट चाहिए होते थे, जिन्हें पाने के लिए कई किलोमीटर चलना पड़ता था। ऐसे हालात में आधुनिक बुनियादी सुविधा का अभाव था। नेहरू (Jawahar Lal Nehru) ने इस कमी को दूर करने के लिए बड़े बांध भाखड़ा, नग़ल, जमरानी जैसे प्रकल्पों की शुरुआत की, जो खेतों को जल और बिजली दोनों उपलब्ध कराने का आधार बने। यह एक मजबूत आधार था, जो कृषि और उद्योग के विकास का नींव बना। हालांकि, नीति अनेक मुश्किलों से घिरी थी, ग्रामीण गरीबी, शिक्षा का अभाव, और सामाजिक असमानताएँ जो आगे के बदलाव की राह में बाधाएं बनी रहीं।
नेहरू के आर्थिक सुधार
नेहरू ने अपने समय में कई ऐसे प्रयास किए जिससे कि भारत की आर्थिक व्यवस्था को थोड़ी मजबूती प्रदान की जा सके। नेहरू ने भारी उद्योगों और पब्लिक सेक्टर की स्थापना पर ध्यान दिया। इस नीति से स्टील, कोयला, बिजली और मशीनरी के क्षेत्र में आधार तैयार हुआ, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े और देश आत्मनिर्भर बनने लगा। उन्होंने प्लानिंग कमीशन का गठन किया, ताकि योजनाबद्ध तरीके से विकास किया जा सके और संसाधनों का सही उपयोग हो। इसके अलावा, नेहरू ने शिक्षा और विज्ञान पर निवेश बढ़ाया। आईआईटी, आईआईएम और राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान स्थापित किए गए, जिससे तकनीकी और वैज्ञानिक क्षमता मजबूत हुई। उन्होंने कृषि और ग्रामीण विकास पर भी ध्यान दिया, ताकि खाद्यान्न सुरक्षा बनी रहे और ग्रामीण क्षेत्र पिछड़ें नहीं। इन सभी कदमों से भारत की अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत हुई और देश को लंबे समय के लिए विकास की दिशा मिली। हालांकि विकास धीमा था, पर यह आधार भविष्य की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ।
कैसा था इंदिरा गांधी का भारत?
नेहरू जी के बाद इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई बड़े और साहसी कदम उठाए। 1969 में उन्होंने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalization Of Banks) किया। इससे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए ऋण पाना आसान हुआ और औद्योगिक व कृषि क्षेत्र को नई ऊर्जा मिली। इसके अलावा इंदिरा जी ने हरित क्रांति (Green Revolution) को बढ़ावा दिया, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाले बीज, सिंचाई सुविधाओं और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ाया गया। इसके परिणामस्वरूप भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की और अनाज आयात करने वाले देश से आत्मनिर्भर बन गया। इस दौर में ‘गरीबी हटाओ’ (‘Remove poverty’) का नारा भी दिया गया, जिसने आम जनता में उम्मीद जगाई। हालांकि इस दौरान आपातकाल जैसी चुनौतियाँ भी सामने आईं, लेकिन आर्थिक दृष्टि से इंदिरा गांधी का काल भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
राजीव गांधी के समय पड़ी तकनीक और आधुनिक भारत की नींव
राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में भारत को नई तकनीक और आधुनिकता से जोड़ने की कोशिश की। उन्होंने कंप्यूटर और दूरसंचार (telecom) क्षेत्र में बड़े सुधार किए। उस समय यह कदम विवादास्पद माना गया, क्योंकि कई लोगों को लगता था कि कंप्यूटर आने से रोजगार खत्म हो जाएंगे। लेकिन राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) का विज़न अलग था। वे भारत को भविष्य की डिजिटल दुनिया के लिए तैयार करना चाहते थे। उनके कार्यकाल में सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश बढ़ा और विज्ञान व तकनीक (Science and Technology) को बढ़ावा मिला। डाक व्यवस्था से लेकर टेलीफोन नेटवर्क तक में सुधार हुए। उन्होंने युवा नेतृत्व को आगे लाने की भी कोशिश की और भारत को 21वीं सदी के लिए तैयार करने का सपना दिखाया। भले ही उनका कार्यकाल छोटा रहा, लेकिन उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को पारंपरिक ढाँचे से निकालकर आधुनिकता की ओर मोड़ दिया।
1991 का आर्थिक उदारीकरण पी. वी. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह
1991 का दौर भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ। उस समय भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था, विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था और सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ा। ऐसे में प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव (Prime Minister P. V. Narasimha Rao) और उनके वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Dr Manmohan Singh) ने साहसिक निर्णय लिए। उन्होंने आर्थिक उदारीकरण (Liberalization), निजीकरण (Privatization) और वैश्वीकरण (Globalization) की नीतियों की शुरुआत की। लाइसेंस-राज, जिसने दशकों तक उद्योगों को बांधे रखा था, उसे खत्म किया गया। विदेशी निवेशकों के लिए भारत के दरवाजे खोले गए, जिससे रोजगार और उत्पादन बढ़ा। इस सुधार के बाद भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गया और आईटी, मैन्युफैक्चरिंग व सर्विस सेक्टर को नई दिशा मिली। यही वह सुधार था जिसने आने वाले दशकों में भारत की जीडीपी वृद्धि को तेज़ी से आगे बढ़ाया और आज की मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव रखी।
अटल बिहारी वाजपेयी का भारत
अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का कार्यकाल भारत के बुनियादी ढाँचे (Infrastructure) के लिए ऐतिहासिक माना जाता है। उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (Golden Quadrilateral Project) शुरू की, जिसके तहत देश के बड़े शहरों को चौड़ी और आधुनिक सड़कों से जोड़ा गया। यह योजना भारत में आर्थिक गतिविधियों को तेज़ करने और औद्योगिक विकास को गति देने में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुई। इसके साथ ही दूरसंचार क्षेत्र में बड़े सुधार किए गए, जिससे मोबाइल फोन आम लोगों की पहुंच में आने लगे। वाजपेयी सरकार ने ग्रामीण विकास और शिक्षा पर भी ध्यान दिया, जिससे गांवों और कस्बों की आर्थिक स्थिति सुधरी। पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया। उनके नेतृत्व में भारत ने दिखाया कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदृष्टि के साथ आर्थिक प्रगति संभव है।
मनमोहन सिंह की तेज़ रफ्तार विकास और आईटी क्रांति
डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने एक दशक तक तेज़ी से आर्थिक विकास देखा। इस दौर में जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) दर लगातार ऊँचाई पर रही और भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ। सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सेवा क्षेत्र में भारत ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई। आईटी कंपनियों और बीपीओ उद्योग ने लाखों युवाओं को रोजगार दिया और विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत किया। साथ ही मनरेगा जैसी योजनाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा दिया। इस दौर में विदेशी निवेश भी बढ़ा और भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने लगा। हालांकि भ्रष्टाचार और नीतिगत रुकावटों की आलोचना भी हुई, लेकिन आर्थिक दृष्टि से मनमोहन सिंह का कार्यकाल भारत के लिए ‘गोल्डन पीरियड’ (Golden Period) माना जाता है।
नरेंद्र मोदी सरकार की नई रफ्तार और वैश्विक पहचान
2014 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उनकी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ (‘Make in India’), ‘डिजिटल इंडिया’ (‘Digital India’), ‘स्टार्टअप इंडिया’ (Startup India) और ‘आत्मनिर्भर भारत’ (‘Self-reliant India’) जैसी योजनाएँ शुरू कीं। इससे घरेलू उत्पादन और उद्यमिता को प्रोत्साहन मिला। 2017 में लागू हुआ जीएसटी (Goods and Services Tax) भारत की सबसे बड़ी कर सुधार योजना रही, जिसने पूरे देश को एकीकृत बाज़ार में बदल दिया। बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, हाईवे, मेट्रो और स्मार्ट सिटी मिशन ने विकास को नई ऊंचाई दी। कोविड-19 महामारी जैसी चुनौतियों के बावजूद भारत ने तेज़ी से आर्थिक सुधार किया। आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी जीडीपी करीब 4 ट्रिलियन डॉलर के आसपास पहुँच चुकी है। मोदी सरकार की नीतियों ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है।
आज की आर्थिक उपलब्धियाँ और भारत की वैश्विक स्थिति
2025 में IMF और NITI Aayog ने घोषणा की कि भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, GDP लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर। इस उपलब्धि में MSME, डिजिटल-डेवलपमेंट, बुनियादी ढांचे, सामाजिक कल्याण जैसी पहलों का असर है। हालांकि, विकास सभी क्षेत्रों में संतुलित नहीं है, कुछ जिलों में पिछड़ापन जारी है, और प्रति व्यक्ति आय अभी सीमित है।
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भारत की यात्रा 1947 से अब तक एक संघर्ष और सफलता की कहानी है। सामाजिक असमानता, धार्मिक तनाव, धीमी आर्थिक नीतियाँ इन सबने विकास की रफ़्तार को कम किया, लेकिन लोकतंत्र, जनाधिकार, और तटस्थ विदेश नीति ने भारत को निरंतर आगे बढ़ने का रास्ता दिया। आज, चौथी अर्थव्यवस्था बनना गर्व की बात है, पर असली चुनौती है समान नागरिक संहिता, सार्वभौमिक विकास, अंतर-धार्मिक सौहार्द, और संस्थागत क्षमता का मजबूत होना। जब तक ये मुकाम हासिल नहीं होंगे, असली प्रगति अधूरी रहेगी। [Rh/SP]