
कहते हैं फ़िल्में और किताबें समाज का आईना होते हैं यानी जो हमारे समाज में घटनाएं घटित होती हैं वही फ़िल्में और किताबें हम सभी के सामने मनोरंजन के माध्यम से पेश करते हैं। हालांकि कई बार सच्चाई काफी खतरनाक होती है लेकिन फिर भी फ़िल्में और किताब इन सच्चाइयों को दर्शकों के सामने पेश करते हैं। Bollywood में भी कई ऐसी फिल्में बनाई गई है जो खास कर राजनीति और राजनीतिक अपराधों से पर्दा उठाती है। कई बार सच्चाई को तोड़ मरोड़ कर बड़े ही पॉलिश्ड वे में भी सामने लाया जाता है क्योंकि राजनीति से जुड़े अपराध इतनी खतरनाक होते हैं कि यदि यह हू ब हू सबके सामने आ जाए तो लोगों का समाज से और लोगों से खासकर नेताओं से विश्वास उठ जाएगा। आज हम ऐसी 10 बेहतरीन और चर्चित फिल्मों के (10 Political Movies) बारे में बात करेंगे, जो भारतीय राजनीति के काले पन्नों को बड़े प्रभावशाली ढंग से पेश करती हैं।
साल 2025 में रिलीज़ हुई Raid 2 एक सशक्त राजनीतिक थ्रिलर (Political Thriler) है, जो 2018 की हिट फिल्म Raid का सीक्वल है। इस फिल्म की दोनों ही सीक्वल भ्रष्टाचार (Corruption) को आधार बनाकर दिखाया गया है और यह बताने की कोशिश करता है कि कैसे एक नेता भ्रष्ट हो सकता है और एक भोले और आज्ञाकारी नेता कैसे अपनी जनता को बेवकूफ़ बना सकता है। Raid 2 में कहानी और भी ज्यादा गहराई में जाती है, जहां सत्ता के गलियारों में छुपे हुए भ्रष्टाचार को सामने लाया गया है। फिल्म में एक बार फिर अजय देवगन इनकम टैक्स अधिकारी के रोल में नज़र आते हैं, जो अपनी ईमानदारी और हिम्मत के लिए जाने जाते हैं। उनके साथ वाणी कपूर पत्नी की भूमिका में हैं, जो मुश्किल हालात में भी अपने पति का साथ देती हैं।
वहीं रितेश देशमुख (Ritesh Deshmukh) ने एक बेहद ताकतवर और चालाक नेता का किरदार निभाया है, जो अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके कानून को अपने हिसाब से मोड़ने की कोशिश करता है। फिल्म की कहानी उस वक्त रोमांचक मोड़ लेती है जब अजय देवगन (Ajay Devgan) का किरदार एक ऐसे नेता के खिलाफ छापेमारी करता है। Raid 2 न केवल एक इन्वेस्टीगेशन ड्रामा है, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे राजनीति और आर्थिक अपराध आपस में जुड़े होते हैं। यह फिल्म भ्रष्ट तंत्र की परतों को उधेड़ती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि सच्चाई के रास्ते पर चलना आज भी कितना कठिन है, खासकर जब सामने सत्ता की दीवार खड़ी हो।
Gulaal 2009 में रिलीज़ हुई एक राजनीतिक ड्रामा फिल्म है, जिसे अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) ने निर्देशित किया है। यह फिल्म भारतीय राजनीति के एक ऐसे अंधेरे कोने की पड़ताल करती है, जिसे अक्सर नजरअंदाज़ कर दिया जाता है। फिल्म की कहानी राजस्थान की पृष्ठभूमि में सेट है, जहां एक आम छात्र कैसे राजनीति की साजिशों में फंसकर मोहरा बन जाता है, इसे बेहद तीखे और कड़वे अंदाज़ में दिखाया गया है। मुख्य भूमिका में के. के. मेनन (Kay Kay Menon) एक कट्टरपंथी राजशाही समर्थक बने हैं, जो एक बार फिर रजवाड़ों का शासन स्थापित करना चाहता है। उनके साथ दीपक डोबरियाल, राज सिंह चौधरी और अभिमन्यु सिंह जैसे दमदार कलाकारों ने फिल्म को और असरदार बनाया है।
Gulaal में न सिर्फ सत्ता की भूख दिखाई गई है, बल्कि यह भी दिखाया गया है कि कैसे युवा सोच को भड़काकर उन्हें हिंसा और नफ़रत की राजनीति में धकेल दिया जाता है। यह फिल्म राजनीतिक अपराधों को किसी हाई लेवल घोटाले की तरह नहीं दिखाती, बल्कि नीचे के स्तर पर चल रही वैचारिक और जातिगत लड़ाइयों को उजागर करती है, जो असल में समाज की जड़ों को खोखला कर रही हैं। Gulaal अपने कड़वे संवादों, सटीक लेखन और दमदार अभिनय के ज़रिए राजनीति के उस चेहरे को सामने लाती है, जो मुखौटे के पीछे छिपा होता है क्रूर, स्वार्थी और खून से रंगा हुआ।
Gabbar Is Back 2015 में रिलीज़ हुई एक जबरदस्त एक्शन-थ्रिलर (Action Thriller) है, जिसमें भ्रष्ट व्यवस्था (Corrupt System) के खिलाफ एक आम आदमी की बगावत को बेहद जोशीले और सिनेमाई अंदाज़ में दिखाया गया है। फिल्म के निर्देशक कृष हैं और मुख्य भूमिका में अक्षय कुमार (Akshay Kumar) हैं, जो “गब्बर” नाम का एक ऐसा किरदार निभा रहे हैं जो खुद को सिस्टम से ऊपर मानता है लेकिन किसी अपराधी की तरह नहीं, बल्कि एक मसीहा की तरह, जो भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने का नया तरीका अपनाता है।
Gabbar Is Back राजनीति को सीधे तौर पर निशाना नहीं बनाती, लेकिन फिल्म में दिखाया गया भ्रष्टाचार, घूसखोरी और सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता साफ तौर पर यह बताती है कि किस तरह सत्ता और प्रशासन मिलकर आम जनता का शोषण करते हैं। यह फिल्म दर्शकों के मन में गुस्सा और जागरूकता दोनों जगाती है क्योंकि यहां विलेन कोई गैंगस्टर नहीं, बल्कि वो नेता, अफसर और डॉक्टर हैं जो अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हैं। अक्षय कुमार का गब्बर इस फिल्म में सिर्फ एक किरदार नहीं, बल्कि एक विचार बनकर उभरता है कि जब कानून जवाब ना दे, तो जनता को अपनी आवाज़ बनानी ही पड़ती है।
“Nayak: The Real Hero” साल 2001 में रिलीज़ हुई एक सामाजिक-राजनीतिक एक्शन ड्रामा (Socio Political Action Drama) फिल्म है, जिसे शंकर ने निर्देशित किया था। इस फिल्म में अनिल कपूर (Anil Kapoor) ने शिवाजी राव नामक एक पत्रकार की भूमिका निभाई है, जो अपने सिद्धांतों, हिम्मत और सच्चाई की वजह से एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनने का चैलेंज स्वीकार करता है। यहीं से शुरू होती है कहानी राजनीति की गंदगी को साफ करने की, लेकिन सिस्टम इतना आसान नहीं होता जितना बाहर से दिखता है। फिल्म में अमरीश पुरी एक भ्रष्ट और चालाक मुख्यमंत्री बालराज चौहान के रोल में हैं, जो अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके कानून और व्यवस्था को अपनी जेब में रखने की कोशिश करता है।
Nayak उस दौर की फिल्मों में से है जिसने सबसे पहले “अगर एक आम आदमी सत्ता में आ जाए, तो क्या बदलेगा?” जैसे सवाल को बड़े स्तर पर उठाया। यह फिल्म भ्रष्टाचार, राजनीति में नैतिकता की कमी, और जनता की बेबसी जैसे मुद्दों को बहुत ही असरदार ढंग से पेश करती है। खास बात यह है कि फिल्म की कहानी भले ही सिनेमाई हो, लेकिन इससे जुड़े सवाल आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं क्या सही इंसान को सत्ता कभी मिलती है? और अगर मिल जाए, तो क्या वो टिक पाता है? शिवाजी राव का किरदार एक तरह से आम आदमी की उम्मीद और गुस्से दोनों का प्रतीक बन जाता है, जो दिखाता है कि बदलाव लाना नामुमकिन नहीं है बस इरादा पक्का होना चाहिए।
The Sabarmati Report एक राजनीतिक थ्रिलर (Political Thriller) फिल्म है, जो 2024 में रिलीज़ हुई और आते ही चर्चा का विषय बन गई। इस फिल्म की कहानी 2002 के गोधरा कांड (Godhra incident) और उसके बाद भड़की साम्प्रदायिक हिंसा के इर्द-गिर्द बुनी गई है। निर्देशक रानदेव रंजन ने इस फिल्म के ज़रिए उस घटना के एक बेहद संवेदनशील और विवादित पहलू को उजागर करने की कोशिश की, जिसे लेकर आज तक देश में बहस होती रही है, आख़िरकार उस ट्रेन में क्या हुआ था? फिल्म में मुख्य भूमिका में विक्रांत मैसी (Vikrant Massey) हैं, जो एक पत्रकार का किरदार निभा रहे हैं। वो पत्रकार जो अपने निजी और पेशेवर जीवन के बीच फंसा हुआ है, लेकिन जब एक फाइल उसके हाथ लगती है "Sabarmati Report" तो उसके सामने देश की राजनीति का वो चेहरा आता है जो सिर्फ सत्ता की कुर्सी के लिए सैकड़ों मासूम जानों की कीमत चुकाने को तैयार है।
फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह मीडिया, पुलिस, और नेता सभी मिलकर एक घटना को अपने-अपने फायदे के लिए मोड़ते हैं, और असली सच्चाई कहीं पीछे छूट जाती है। The Sabarmati Report सीधा-सीधा आरोप नहीं लगाती, लेकिन सवाल ज़रूर उठाती है क्या हम कभी सच तक पहुँच पाएंगे जब हर सच पर राजनीति की मोटी परत चढ़ी हो? फिल्म दिखाती है कि एक ईमानदार रिपोर्टर जब सत्ता के खिलाफ खड़ा होता है, तो उसे डराने, दबाने और मिटाने की हर कोशिश होती है। लेकिन जो लोग सच के लिए लड़ते हैं, उन्हें न डराया जा सकता है, न खरीदा जा सकता है। यह फिल्म बताती है कि राजनीति सिर्फ संसद और रैलियों तक सीमित नहीं होती, बल्कि वो हर उस जगह मौजूद होती है जहां सच और झूठ की लड़ाई लड़ी जाती है। और कई बार, सच को ज़िंदा रखने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
Gangaajal साल 2003 में रिलीज़ हुई एक बेहद असरदार और सशक्त राजनीतिक-क्राइम ड्रामा (Political-crime drama) फिल्म है, जिसे प्रकाश झा (Prakash Jha) ने निर्देशित किया है। फिल्म की कहानी एक ऐसे पुलिस अफसर के इर्द-गिर्द घूमती है जिसे बिहार के एक काल्पनिक जिले में कानून-व्यवस्था सुधारने के लिए भेजा जाता है लेकिन वहां का सिस्टम इतना सड़ा हुआ है कि सच बोलने और कानून निभाने वालों की ज़िंदगी ही खतरे में पड़ जाती है। अजय देवगन (Ajay Devgan) ने एसपी अमित कुमार का किरदार निभाया है, जो ईमानदार, शांत लेकिन बेहद सख्त अफसर है। जब वो जिले में आता है, तो पाता है कि पुलिस, नेता, और गुंडों की मिलीभगत ने कानून को सिर्फ एक मज़ाक बना दिया है। यहां अपराधी खुलेआम जुर्म करते हैं और सत्ता की शह पर बचते रहते हैं। फिल्म में खासतौर पर "तेज बहादुर" (Tej Bahadur) नाम का किरदार और उसकी बर्बरता राजनीति और अपराध के खतरनाक गठजोड़ का चेहरा है।
Gangaajal में एक ऐसी घटना को केंद्र में रखा गया है, जहां पुलिस वालों द्वारा अपराधियों की आंखों में तेज़ाब डाला जाता है एक तरह का “तुरंत न्याय”, जो कानून की सीमाओं को पार कर जाता है। यह फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि जब सिस्टम ही अपराध को बढ़ावा दे, तो क्या आम आदमी और ईमानदार अफसरों के पास कोई रास्ता बचता है? इस फिल्म में राजनीति सीधे तौर पर थाने और प्रशासन के अंदर घुसी हुई दिखाई देती है। विधायक और बाहुबली मिलकर न केवल कानून को खरीदते हैं, बल्कि उसे अपने फायदे के लिए मोड़ते भी हैं। Gangaajal की सबसे बड़ी ताकत इसकी कड़वी सच्चाई है एक ऐसी सच्चाई जो सिर्फ बड़े नेता नहीं, गांव-कस्बों की उस छोटी राजनीति को उजागर करती है, जहां सत्ता और भय का खेल चलता है।
Madras Cafe, साल 2013 में रिलीज़ हुई एक जबरदस्त राजनीतिक थ्रिलर (Political Thriller) है, जिसका निर्देशन किया है शूजित सरकार (Sujeet Sarkar) ने और मुख्य भूमिका में हैं जॉन अब्राहम (John Abraham)। ये फिल्म भारतीय सिनेमा के उन कुछ चुनिंदा प्रोजेक्ट्स में से है जो वास्तविक घटनाओं से प्रेरित होकर एक साहसी और संवेदनशील कहानी कहती है। फिल्म की पृष्ठभूमि है श्रीलंका में तमिल विद्रोह (Tamil rebellion in Sri Lanka) और भारत की राजनीतिक भूमिका खासकर एक बड़े राजनेता की हत्या, जो असल ज़िंदगी में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की असली घटना से मेल खाती है। जॉन अब्राहम (John Abraham) ने फिल्म में एक रॉ एजेंट विक्रम का किरदार निभाया है, जिसे श्रीलंका में एक सीक्रेट मिशन के तहत भेजा जाता है। वहां वो न केवल युद्धग्रस्त इलाकों की सच्चाई से रूबरू होता है, बल्कि एक ऐसी साजिश का हिस्सा बन जाता है जो राजनीति, आतंकवाद और वैश्विक हितों के बीच झूलती है। फिल्म की खास बात ये है कि इसमें न कोई क्लियर हीरो है, न विलेन हर किरदार परिस्थितियों का शिकार है और हर निर्णय के पीछे एक बड़ी राजनीतिक चाल छिपी हुई है।
Madras Cafe राजनीति के उस पहलू को छूती है जिसे आमतौर पर फिल्मों में दिखाना न तो आसान होता है और न ही सुरक्षित यानि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, गुप्तचर एजेंसियों की भूमिका और सत्ता के लिए मानव जीवन की बलि। फिल्म न तो नारेबाज़ी करती है और न ही ड्रामा रचती है; यह बेहद यथार्थवादी तरीके से दिखाती है कि युद्ध और आतंकवाद के पीछे असली खेल क्या होता है और उसमें सबसे ज़्यादा नुकसान किसका होता है? आम इंसान का। यह फिल्म भारतीय राजनीति की उस चुपचाप चलने वाली चालबाजियों की पोल खोलती है, जहां फैसले बंद दरवाज़ों के पीछे लिए जाते हैं और उसका असर हज़ारों ज़िंदगियों पर होता है। Madras Cafe आपको सोचने पर मजबूर कर देती है कि सच्चाई जानना भी कभी-कभी सबसे खतरनाक काम हो सकता है।
Raajneeti 2010 में रिलीज़ हुई एक बड़ी स्टारकास्ट और भारी-भरकम राजनीतिक ड्रामा (Political Drama) फिल्म है, जिसका निर्देशन किया है प्रकाश झा (Prakash Jha) ने। यह फिल्म भारतीय राजनीति की उस अंदरूनी दुनिया को सामने लाती है, जहां रिश्ते, नैतिकता और भावनाएं, सत्ता की भूख के सामने बेमानी हो जाते हैं। फिल्म की कहानी एक राजनीतिक परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां एक के बाद एक षड्यंत्र, हत्याएं और सत्ता की उठा-पटक होती है और हर किरदार अपने फायदे के लिए सच और झूठ का इस्तेमाल करता है। इस फिल्म में रणबीर कपूर (Ranbeer Kapoor), अजय देवगन (Ajay Devgan), अर्जुन रामपाल (Arjun Rampal) , कैटरीना कैफ, नाना पाटेकर (Nana Patekar) और मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) जैसे दमदार कलाकारों ने अहम भूमिकाएं निभाई हैं। फिल्म की कहानी आंशिक रूप से महाभारत और गॉडफादर से प्रेरित लगती है, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि पूरी तरह से भारतीय राजनीति पर आधारित है। यह दिखाती है कि राजनीति सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक ऐसा युद्ध है जिसमें जीतने के लिए कोई भी हद पार की जा सकती है।
Raajneeti में साफ तौर पर दिखाया गया है कि कैसे चुनावों के पीछे खून-खराबा, धोखा, और भावनात्मक शोषण छुपा होता है। सत्ता के लिए परिवार टूट जाते हैं, दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है, और सच्चाई हमेशा किसी न किसी रणनीति में कुचल दी जाती है। फिल्म में सत्ता, जातिवाद, मीडिया की भूमिका और युवा राजनीति जैसे तमाम गंभीर मुद्दों को उठाया गया है। इस फिल्म के ज़रिए दर्शकों को एक झलक मिलती है उस "लोकतंत्र के अंधेरे हिस्से" की, जहां जनता की आवाज़ सिर्फ वोट बैंक बनकर रह जाती है, और असली फैसले सत्ता के गलियारों में बंद दरवाज़ों के पीछे लिए जाते हैं। Raajneeti दिखाती है कि राजनीति में सब कुछ वैध है अगर आप जीत सकते हैं।
The Accidental Prime Minister 2019 में रिलीज़ हुई एक राजनीतिक बायोपिक (Political Biopic) है, जो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Former Prime Minister Dr. Manmohan Singh) के कार्यकाल की अंदरूनी राजनीतिक जटिलताओं पर आधारित है। इस फिल्म का निर्देशन विजय गुप्ता ने किया है और अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) इसके निर्माता हैं। अनुपम खेर (Anupam Kher) ने इस फिल्म में डॉ. मनमोहन सिंह का किरदार निभाया है, जबकि जितेंद्र कुमार सीनियर कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम (P Chidambaram) की भूमिका में हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह एक प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह को अपने ही राजनीतिक दल के अंदर से कई चुनौतियों और दबावों का सामना करना पड़ा। यह कहानी उस समय की राजनीति की जटिलता को उजागर करती है, जहां सत्ता के असली फैसले प्रधानमंत्री के बजाय पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिए जाते थे। फिल्म यह सवाल भी उठाती है कि सत्ता के पीछे छिपी राजनीति में व्यक्तिगत इच्छा और नैतिकता कितनी महत्वपूर्ण होती है।
The Accidental Prime Minister सत्ता के अंदरूनी खेलों, राजनीतिक दबावों, और निर्णय प्रक्रिया के पर्दे के पीछे की झलक दिखाती है। यह फिल्म बताती है कि लोकतंत्र में भी कभी-कभी नेतृत्व इतना कमजोर पड़ जाता है कि वह अपने फैसलों को खुद तय नहीं कर पाता, बल्कि बाहरी ताकतों का नियंत्रण स्वीकार करना पड़ता है। यह फिल्म राजनीतिक अपराधों या हिंसा की बजाय सत्ता और प्रभाव की उन सूक्ष्म जद्दोजहदों को दिखाती है, जो लोकतंत्र के लिए एक चुनौती हैं। The Accidental Prime Minister दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि राजनीति में वास्तविक सत्ता कौन रखता है और लोकतंत्र की सबसे बड़ी कसौटी क्या होती है। [Rh/SP]