Amrish Puri Birth Anniversary: अभिनय के लिए छोड़ दिया था सरकारी नौकरी

1971 में फिल्म 'रेशमा और शेरा' में Amrish Puri, सुनील दत्त और वहीदा रहमान के साथ नजर आए और यहीं से उनका फिल्मी करिअर शुरू हो गया।
Amrish Puri Birth Anniversary: जब अमरीश पुरी को करनी पड़ी थी एलआईसी में नौकरी
Amrish Puri Birth Anniversary: जब अमरीश पुरी को करनी पड़ी थी एलआईसी में नौकरी Wikimedia Commons
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Amrish Puri Birth Anniversary: प्रसिद्ध अमेरिकी फिल्म डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, "अमरीश पुरी दुनिया का अब तक का सबसे अच्छा खलनायक है!"। लगभग 3 दशक तक अपने अद्भुत अभिनय से अपने प्रशंसकों के होंठों पर छा जाने वाले अमरीश पुरी का किरदार कुछ ऐसा रहा जिसकी तारीफ देश के ही नहीं बल्कि विदेश के बड़े-बड़े डायरेक्टर्स प्रोड्यूसर्स ने भी खूब की। आज हम Amrish Puri Birth Anniversary पर बात करेंगे उनके ज़िंदगी के कुछ ऐसे किस्सों की जो बहुत कम लोगों को पता है।

'मोगैमबो खुश हुआ', 'जा सिमरन जा...' इत्यादि जैसे डायलॉग्स जैसे ही हमारे कानों में पड़ते हैं, एक ऐसा नायक का चेहरा सामने या जाता है जिसने अपने अभिनय के करिश्मा से सिनेमा की दुनिया में अपनी एक अमिट छवि छोड़ गए। उनकी फिल्मों की शृंखला में उनके नेगटिव किरदार आज भी उसी दिलचस्पी से पसंद किए जाते हैं, जैसे तब किए जाते थे। उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व कुछ इस कदर सिनेमा पर छाया कि मिस्टर इंडिया में मोगैम्बो, गदर में अशरफ अली: एक प्रेम कथा, डीडीएलजे में बलदेव सिंह चौधरी जैसी सत्तावादी भूमिकाएं अमर हो गईं। लगभग 300 फिल्मों में Amrish Puri के किरदार ने लोगों को अपना बना लिया।

1979 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीतकर Amrish Puri एक प्रसिद्ध मंच अभिनेता बन गए।
1979 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीतकर Amrish Puri एक प्रसिद्ध मंच अभिनेता बन गए। Wikimedia Commons

22 जून, 1932 को लाहौर में जन्में Amrish Puri को उनके अभिनव के प्रति समर्पण ने उन्हें मुंबई ले आया जहां उनके भाई मदन पुरी पहले से ही खलनायक की भूमिका निभाने के लिए एक स्थापित अभिनेता थे। पर भाग्य की विडंबना देखिए कि वो अपने पहले स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए। इसके बाद उन्हें खुद को सहारा देने के लिए एलआईसी में नौकरी करनी पड़ी थी। यहाँ उन्होंने 21 साल तक सरकारी नौकरी की और अच्छे थिएटर अभिनेता के रूप में पहचान हासिल करने के बाद अमरीश पुरी ने 'ए' ग्रेड अधिकारी के रूप में इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद उन्होंने सत्यदेव दुबे के नाटकों में काम करना शुरू कर दिया।

1971 में फिल्म 'रेशमा और शेरा' में Amrish Puri सुनील दत्त और वहीदा रहमान के साथ नजर आए और यहीं से उनका फिल्मी करिअर शुरू हो गया। 1979 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीतकर वह एक प्रसिद्ध मंच अभिनेता बन गए।

बताया जाता है कि अमरीश पुरी अपने समकालीन अभिनेताओं में सबसे अधिक भुगतान पाने वाले खलनायक थे। वह अपनी कीमत बखूबी समझते थे तभी उन्होंने एन.एन. सिप्पी की फिल्म से बाहर निकलने का फैसला किया था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि निर्देशक 80 लाख खर्च करने के लिए तैयार नहीं थे। इस बात के बारे में खुद अमरीश पुरी ने Rediff के साथ अपने एक साक्षात्कार में कहा था, "मुझे वह प्राप्त करना है जो मेरा बकाया है। मैं अपनी एक्टिंग से समझौता नहीं करता, है ना? तो मुझे कम क्यों स्वीकार करना चाहिए? जहां तक सिप्पी फिल्म की बात है, मुझे बहुत पहले इस वादे के साथ साइन किया गया था कि फिल्म पर एक साल में काम शुरू हो जाएगा। अब तीन साल हो गए हैं, और मेरी बाजार दर बढ़ गई है। अगर वह मुझे इतना भुगतान नहीं कर सकते, तो मैं उनकी फिल्म नहीं कर सकता, है ना?"

Amrish Puri के अभिनय से जुड़े वैसे तो कई किस्से हैं पर उनका एक दिलचस्प किस्सा मिस्टर इंडिया में मोगैम्बो की भूमिका निभाने से जुड़ा हुआ है। दरअसल अमरीश पुरी को यह किरदार निभाने में संदेह था। इसके लिए उन्होंने फिल्म के निर्देशक शेखर कपूर से संपर्क किया। जब उन्होंने शेखर कपूर से पूछा कि वह अपने चरित्र को आसानी से कैसे निभाएंगे? इसपर शेखर ने जवाब दिया, "आपको 10 साल के बच्चों के लिए शेक्सपियर की भूमिका निभानी होगी।" इसके बाद जो हुआ, वो एक इतिहास है।

अपने खलनायक के अभिनय के संबंध में Amrish Puri अपनी पुस्तक, 'द एक्ट ऑफ लाइफ' में खुलासा किया कि कैसे एक भारतीय कन्नड़ फिल्म 'काडू' ने उनके जीवन को बदल दिया और निर्देशक गिरीश कर्नाड ने कितने ही शानदार तरीके से उनके व्यक्तित्व पर एक खलनायक का ठप्पा लगा दिया।

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Amrish Puri अपने जीवन के हर एक छोटे से छोटे चीजों को लेकर काफी जागरूक थे। अनुपम खेर ने अमरीश पुरी के बारे में कहते हैं, "वह अपने जूते के फीते, अपनी मूंछों की लंबाई और अन्य छोटे विवरणों के बारे में बहुत खास थे।"

ऐसा नहीं है कि अमरीश पुरी केवल अपने खलनायक वाले अवतार में ही बेहतरीन थे बल्कि कई फिल्मों में उन्होंने सकारात्मक किरदार भी निभाए हैं। पर फिर भी उन्हें खलनायक के रूप में ही सबसे ज्यादा प्यार मिला है। इसी संदर्भ में महेश भट्ट ने अमरीश पुरी को "खलनायक लोगों को पसंद किया" के रूप में बताते हैं।

बॉलीवुड के इस चमकते सितारे ने 22 जनवरी, 2005 को इस दुनिया से विदा ले लिया और लोगों के होंठों पर अपने बेहतरीन डायलॉग्स के माध्यम से अमर हो गए।

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