1999 के वर्ल्ड कप ने बदल दी 60 साल के इस हीरो की तकदीर

1995 की फिल्म ‘ओह डार्लिंग यह है इंडिया’ से अपने करियर की शुरुआत की थी, और बाद में राजकुमार, सत्य जैसी उल्लेखनीय फिल्मों में दिखाई दिए थे।
Bollywood:  इन्होंने तीन दशक के लंबे करियर में डेढ़ सौ से ज्यादा फिल्में की हैं।[Wikimedia Commons]
Bollywood: इन्होंने तीन दशक के लंबे करियर में डेढ़ सौ से ज्यादा फिल्में की हैं।[Wikimedia Commons]
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जब भी किसी सुपरस्टार या किसी एक्टर से उनकी जर्नी के बारे में या उनके स्ट्रगल के बारे में पूछा जाता है तब उनकी स्ट्रगल भरी जिंदगी को सुनकर बाकियों को भी काफी मोटिवेशनल मिलता है। एक छोटे शहर से आए किसी एक्टर या एक्ट्रेस के लिए बॉलीवुड में अपनी जगह बनाना पहाड़ तोड़ने के बराबर है। तो चलिए आज हम आपको एक ऐसे एक्टर की स्ट्रगल भरी कहानी बताएंगे जिन्होंने 60 साल की उम्र में बॉलीवुड में कदम रखा।

कौन है यह एक्टर

दरअसल हम बात कर रहे हैं संजय मिश्रा जी के बारे में। इन्होंने तीन दशक के लंबे करियर में डेढ़ सौ से ज्यादा फिल्में की हैं। 6 अक्टूबर 1963 को जन्मे संजय मिश्रा प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक है, जिन्हें निश्चित रूप से किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कई अन्य प्रशंसाओ के अलावा “आंखों देखी” और ‘वध’ में अपनी भूमिकाओं के लिए दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रुप मे फिल्म फेयर क्रिटिक्स अवार्ड जीता है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ग्रेजुएट होने के बाद संजय मिश्रा ने 1995 की फिल्म ‘ओह डार्लिंग यह है इंडिया’ से अपने करियर की शुरुआत की थी, और बाद में राजकुमार, सत्य जैसी उल्लेखनीय फिल्मों में दिखाई दिए थे। उन्हें ड्रामा और कॉमेडी दोनों कैरेक्टर्स में फिट माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका सफर आसान नहीं रहा लोकप्रिय होने से पहले उन्होंने खूब कड़ी मेहनत की है।

कैसी रही स्ट्रगल भरी जिंदगी

अपनी सफलता से पहले संजय मिश्रा विभिन्न विज्ञापनों और छोटी फिल्म भूमिका में दिखाई दिए। उन्हें पहचान तब मिली जब उन्होंने मिरिंडा के एक विज्ञापन में अमिताभ बच्चन के साथ दिखाई दिए थें। 1991 में टेलिविजन सीरीज चाणक्य की शूटिंग के दौरान उन्हें पहले दिन 28 टेक लेने में कठिनाई हुई जिसके कारण निर्देशक को उन्हें रिहर्सल के लिए एक सहायक निदेशक के पास छोड़ना पड़ा।

अपनी सफलता से पहले संजय मिश्रा विभिन्न विज्ञापनों और छोटी फिल्म भूमिका में दिखाई दिए। [Wikimedia Commons]
अपनी सफलता से पहले संजय मिश्रा विभिन्न विज्ञापनों और छोटी फिल्म भूमिका में दिखाई दिए। [Wikimedia Commons]

मिश्रा जी की पहली फिल्म भूमिका और ‘ओह डार्लिंग यह है इंडिया’ थीं जहां उन्होंने हारमोनियम वादक के रूप में एक छोटी सी भूमिका निभाई थी। इसके बाद संजय मिश्रा यूपी के वाराणसी में केंद्रीय विद्यालय गए और नई दिल्ली में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा से नाटक की उपाधि प्राप्त की। दिलचस्प बात यह है कि उन्हें शैक्षणिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा और वे दसवीं कक्षा में दो बार असफल हुए हालांकि फिल्मों के प्रति उनके जुनून ने उन्हें उस क्षेत्र में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित किया था।

वर्ल्ड कप ने बदली जिंदगी

संजय मिश्रा 1991 में मुंबई चले गए थें। लेकिन महत्वपूर्ण अभिनय भूमिकाएं पाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा था। 1991 से 1999 तक उन्होंने फल उद्योग के विभिन्न पहलुओं जैसे प्रकाश व्यवस्था, कला निर्देशन, और कैमरा वर्क का पता लगाया इस दौरान उन्हें कई बार पेट भरने के लिए वडा पाव पर भी निर्भर रहना पड़ा। वह कभी-कभी सोने के लिए रेलवे स्टेशन पर जाते थे और अपने होम टाउन वापस जाने के बारे में सोचते थे। 1991 में संजय को टेलिविजन सीरीज चाणक्य में रोल मिला था हालांकि शूटिंग के पहले दिन उन्हें एक सीन के साथ संघर्ष करना पड़ा और इसे सही करने के लिए उन्हें 28 बार टेक लेना पड़ा।

महत्वपूर्ण अभिनय भूमिकाएं पाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा था।[Wikimedia Commons]
महत्वपूर्ण अभिनय भूमिकाएं पाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा था।[Wikimedia Commons]

1999 वर्ल्ड कप सीरीज ने विज्ञापनों में एप्पल सिंह की भूमिका के कारण संजय मिश्रा को जबरदस्त प्रसिद्धि दिलाई इसके बाद वह काफी लोकप्रिय हो गए और बाद में उन्हें चैनल के चेहरे के रूप में अपनाया गया। बताया जाता है कि ऑफिस ऑफिस की शूटिंग के दौरान संजय मिश्रा गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और उनके पेट में गंभीर संक्रमण हो गया था। जिसके कारण उन्हे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। कथित तौर पर डॉक्टर को उनके पेट से लगभग 15 मी मवाद निकलना पड़ा था। इसके बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई, और वे वापस अपने घर लौट गए। संजय मिश्रा ने शुरू में मुंबई नहीं लौटने का फैसला किया था और तब वह ऋषिकेश चले गए और एक ढाबे पर आमलेट बनाने का काम करने लगे थे। हालांकि कुछ ग्राहक उन्हें उनकी पिछली फिल्मों से पहचानते थे फिर भी वह अपने निर्णय पर दृढ़ रहे। आखिरकार वह रोहित शेट्टी ही थे जिन्होंने उन्हें मुंबई लौटने और फिल्म ‘ऑल द बेस्ट’ में अभिनय करने के लिए मना लिया।

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