
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की मिट्टी से निकलीं, गरीबी और तिरस्कार का सामना करते हुए अपनी कला को दुनिया भर में पहचान दिलाने वालीं, यही है तीजन बाई (Teejan Bai) की कहानी। पंडवानी गायन की शिखर कलाकार बनने तक का उनका सफ़र उतना ही रोमांचक है, जितना महाभारत (Mahabharata) की वो कहानियाँ जो वह गाती हैं। तीजन बाई का जन्म 8 अगस्त 1956 को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के पाटन अटारी गांव में हुआ। इनका जन्म तीज के पर्व पर हुआ, इसलिए इनका नाम “तीजन” रखा गया। उनका बचपन बेहद ग़रीबी में बीता। मां सुखवती देवी लोकगीत गाती थीं और पिता हुनुकलाल पारधी बांसुरी बजाते थे। घर के माहौल में संगीत का रस तो था, लेकिन पेट भरने के लिए साधन नहीं था।
एक दिन उन्होंने अपने नाना को पंडवानी (Pandavani) गाते हुए सुना। पांडवों की महागाथा, गीत, अभिनय और ताल की लय ने छोटी सी तीजन को भीतर तक छू लिया। उसी क्षण उन्होंने ठान लिया कि पंडवानी जरूर गाएंगे। भले ही समाज माने या न माने। लेकिन उस समय पंडवानी गायन लगभग सिर्फ़ पुरुषों का क्षेत्र था, महिलाओं का मंच पर आना अच्छा नहीं माना जाता था। तीजन बाई 'पारधी' जाति से आती हैं, जिसे अंग्रेजों ने कभी आपराधिक जनजाति घोषित कर दिया था। 1952 में ये कानून खत्म तो हुआ, लेकिन 1972 के वन्यजीव संरक्षण कानून के आने के बाद उनकी बिरादरी का पारंपरिक शिकार का पेशा भी बंद हो गया। परिवार दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हो गया। ऐसे माहौल में कला को अपनाना और भी कठिन था।
9 साल की उम्र में उन्होंने अपने चचेरे नाना बृजलाल पारधी से पंडवानी (Pandavani) सीखना शुरू किया। लेकिन समाज ने विरोध किया। यहां तक कि घर से निकाल दिया गया। उनकी पहली शादी भी इसी वजह से टूट गई। दूसरी शादी में भी पंडवानी को लेकर दरारें आईं। लेकिन तीजन ने अपनी कला से रिश्ता कभी नहीं तोड़ा।
उन्होंने पंडवानी (Teejan Bai) की "कापालिक शैली" को अपनाया, जिसमें कलाकार खड़े होकर, मंच पर घूमते हुए अभिनय के साथ कथा सुनाता है। इससे पहले महिलाओं ने इस शैली में कदम नहीं रखा था। वो पहली महिला बनीं जिसने कापालिक शैली में पंडवानी को नया रूप दिया। उनका पहला मंचन मात्र 13 साल की उम्र में चंदखुरी गांव के सतीचौरा चौक में हुआ। वहां से उनके हुनर की चर्चा गांव-गांव फैलने लगी। धीरे-धीरे उन्हें शहरों, भिलाई, भोपाल, रायपुर से बुलावे आने लगे।
भोपाल में उनकी मुलाक़ात मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर से हुई। उन्होंने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने गाने का मौका दिलाया। इंदिरा गांधी ने कहा, “आप बहुत अच्छा महाभारत (Mahabharata) करती हैं।” इस पर तीजन ने गर्व से कहा, “महाभारत नहीं करती, महाभारत की कथा सुनाती हूँ।”
निर्देशक श्याम बेनेगल ने उन्हें अपने धारावाहिक भारत एक खोज में जगह दी, जिससे उनकी पहचान देशभर में फैल गई। 1986 में भिलाई स्टील प्लांट ने उन्हें नौकरी दी ताकि वो बेफिक्र होकर कला साधना कर सकें। इसके बाद सम्मान की बरसात हुई, 1988 में पद्मश्री, 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2003 में पद्मभूषण, 2018 में फुकुओका पुरस्कार और 2019 में पद्म विभूषण। वो छत्तीसगढ़ की पहली महिला कलाकार हैं जिन्हें यह सम्मान मिला।
तीजन बाई (Teejan Bai) सिर्फ़ कला में ही नहीं, सामाजिक कामों में भी आगे रहीं। भले ही वो पढ़-लिख नहीं पाईं, लेकिन साक्षरता और महिला अधिकार कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 'मनमोहना' जैसी संस्थाओं में भी योगदान दिया जो लोककलाओं के संरक्षण के लिए काम करती हैं। उनकी ज़िंदगी आसान नहीं रही, उनके तीन पतियों ने उनका साथ छोड़ा, दो बेटों और एक दत्तक बेटी को खो दिया, समाज के तानों का सामना किया। फिर भी पंडवानी के प्रति उनका लगाव अटूट रहा। वो कहती हैं, “जैसे बच्चा मां को पकड़ता है, वैसे ही मैंने पंडवानी को पकड़ रखा है। यही मेरा बेड़ा पार लगाएगी।” उनके दर्शकों में कवि शमशेर, रंगकर्मी हबीब तनवीर, इंदिरा गांधी, अभिनेता शशि कपूर और रणबीर कपूर तक शामिल हैं। वह अमिताभ बच्चन की बड़ी प्रशंसक हैं और अक्सर उनका मशहूर गीत “मेरे अंगने में…” गुनगुनाती हैं।
Also Read
वरिष्ठ कला समीक्षक अशोक वाजपेयी कहते हैं, “तीजन बाई का गायन सिर्फ़ कथा नहीं, बल्कि अभिनय और भावनाओं का समुंदर है। उसमें कोमलता भी है और प्रहार की ताक़त भी। साथ ही वो महाभारत (Mahabharata) के बहाने आज के समाज और राजनीति पर भी टिप्पणी कर देती हैं, जिससे उनकी कला और भी प्रासंगिक हो जाती है।” आज भले ही उनकी उम्र और सेहत कमजोर हो गयी हो, लेकिन पंडवानी के लिए उनका जोश वैसा ही है। भिलाई के पास गनियारी गांव में साधारण घर में रहकर भी वो इस कला को आगे बढ़ाने का सपना देखती हैं। सितंबर 2022 में एक बातचीत में, पान चबाते हुए उन्होंने कहा था, “पंडवानी ही मेरा जीवन है, यही मुझे दुनिया में जिंदा रखेगी।”
निष्कर्ष
तीजन बाई (Teejan Bai) का जीवन सिखाता है कि अगर दिल में जुनून और कला के प्रति सच्चा प्रेम हो, तो समाज के ताने, ग़रीबी, असफल रिश्ते और कठिनाइयाँ भी रास्ता नहीं रोक पातीं। उनकी आवाज़ में महाभारत (Mahabharata) के पांडव ही नहीं, उनके अपने संघर्षों की गूँज भी सुनाई देती है। और यही उन्हें पंडवानी (Pandavani) की रानी बनाता है। [Rh/PS]