भारत और ऑस्कर: इतनी फ़िल्में बनने के बावजूद क्यों नहीं जीत पाते हम?

भारत मे हर साल हज़ारों फिल्में बनती है, पर फिर भी हम ऑस्कर जीतने में पीछे रह जाते है।
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भारत (India) की फिल्म इंडस्ट्री मनोरंजन की दुनिया में सबसे बड़ी इंडस्ट्री मानी जाती है। बॉलीवुड (Bollywood) से लेकर क्षेत्रीय सिनेमा तक, हर साल हज़ारों फिल्में बनती हैं। इसके बावजूद भारत ने ऑस्कर (Oscar) में अब तक बहुत कम इनाम जीते है। इस साल भी एक नई फिल्म होमबाउंड (Homebound) भारत की तरफ से ऑस्कर 2026 के लिए नॉमिनेशन में भेजी गई है। सवाल यह है कि आखिर भारत और ऑस्कर का रिश्ता इतना कमजोर क्यों है और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।

ऑस्कर नामांकन कैसे होता है

ऑस्कर का आयोजन हॉलीवुड (Hollywood) की संस्था एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज़ (AMPAS) करती है। इसमें लगभग दस हज़ार सदस्य होते हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं, जैसे अभिनेता, निर्देशक, लेखक और तकनीकी टीम।

अगर किसी फिल्म को ऑस्कर में जाना है तो उसके लिए कुछ नियम होते हैं। सबसे ज़रूरी यह है कि फिल्म की लंबाई कम से कम 40 मिनट होनी चाहिए। वहीं, बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म (Best International Feature Film) कैटेगरी के लिए फिल्म अंग्रेज़ी के अलावा किसी अन्य भाषा में होनी चाहिए और उसका कम से कम 7 दिन का थिएटर रिलीज़ होना ज़रूरी है। फिल्म के प्रोड्यूसर उसे आधिकारिक पोर्टल पर जमा करते है। इसके बाद ऑस्कर के सदस्य फिल्म देखते हैं, वोट करते हैं और फिर शॉर्टलिस्ट से नामांकन तय होता है।

भारत में यह जिम्मेदारी फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) की होती है। हर साल डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स अपनी फिल्में भेजते हैं। उसके बाद एक जूरी बैठती है, फिल्में देखती है और तय करती है कि कौन-सी फिल्म भारत की तरफ से ऑस्कर में जाएगी।

जूरी जब फैसला करती है तो वह देखती है कि फिल्म की कहानी कितनी मज़बूत है, उसमें कलात्मकता है या नहीं, और क्या वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दर्शकों को प्रभावित कर सकती है। मतलब यह की सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उस फिल्म को देखे और उससे पसंद करे उस स्तर की पिक्चर को ऑस्कर मे भेजा जाता है।

भारत और ऑस्कर: अब तक का सफर

इतनी बड़ी इंडस्ट्री होने के बावजूद भारत ने अकाडेमी अवार्ड्स (Academy Awards) में बहुत कम फिल्में दर्ज हो पाई है जिनमें भानु अथैया (1983), गांधी फिल्म के लिए बेस्ट कॉस्ट्यूम डिज़ाइन। इसके अलावा: 

  • सत्यजीत रे (1992), आजीवन योगदान के लिए मानद ऑस्कर। 

  • रेसुल पुकुट्टी (2009), स्लमडॉग मिलियनेयर के लिए बेस्ट साउंड मिक्सिंग। ए. आर. रहमान (2009), उसी फिल्म के लिए बेस्ट म्यूज़िक और बेस्ट सॉन्ग। 

  • गुलज़ार (2009), गाने “जय हो” के बोल लिखने के लिए। 

  • कार्तिकी गोंसाल्विस और गुनीत मोंगा (2023), द एलिफेंट व्हिस्परर्स के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट। 

  • एम. एम. कीरवानी और चंद्रबोस (2023), आरआरआर के गाने “नाटू नाटू” के लिए बेस्ट सॉन्ग।

अब तक का सफर
अब तक का सफरPexels

भारत और ऑस्कर: सफलता इतनी कम क्यों?

कई एक्टर्स और डायरेक्टर्स ने का कहना है कि ऑस्कर जीतने के लिए सिर्फ अच्छी फिल्म बनाना काफी नहीं है। हॉलीवुड में फिल्मों के प्रमोशन और पब्लिसिटी पर करोड़ों खर्च किए जाते हैं। भारत में यह बजट अक्सर बहुत कम होता है। आरआरआर ने करीब आठ करोड़ रुपये केवल प्रचार पर खर्च किए, तभी वह ऑस्कर (Oscar) में चर्चा में रही।

दूसरी समस्या यह है कि कभी-कभी भारत से चुनी गई फिल्में बहुत देर से तय की जाती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि उनके पास विदेशों में स्क्रीनिंग और प्रचार करने का समय कम रह जाता है।

तीसरी कमी यह है कि फिल्म फेडरेशन (Film Federation) कई बार बोल्ड या क्षेत्रीय फिल्मों को नज़रअंदाज़ कर देता है। जबकि दक्षिण भारत या मराठी सिनेमा की कई कहानियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज़्यादा अच्छा परफॉर्म कर सकती हैं।

इस साल भारत की तरफ से कौन सी फिल्म जा रही है

साल 2026 के ऑस्कर के लिए भारत ने “होमबाउंड” फिल्म को चुना है। इसका निर्देशन नीरज घेवन ने किया है और इसमें जान्हवी कपूर, ईशान खट्टर और विशाल जेठवा ने काम किया है। फिल्म को करण जौहर ने प्रोड्यूस किया है।

यह फिल्म पहले ही कान्स, टोरंटो और मेलबर्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है और इन फिल्मों को खूब सराहना मिली है। इसकी कहानी और प्रस्तुति ऐसी है कि यह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों के दर्शकों को भी पसंद आ सकती है। 

अगर भारत चाहता है कि हर साल उसकी फिल्मों को ऑस्कर में ज्यादा मौका मिले तो कई कदम उठाने होंगे।

सबसे पहले, फिल्मों के लिए प्रमोशन (Promotion) और प्रचार (Marketing) पर सही बजट खर्च करना होगा। फिर, चयन प्रक्रिया पारदर्शी और समय पर होनी चाहिए ताकि फिल्मों को प्रचार का पूरा मौका मिल सके। सिर्फ बॉलीवुड नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सिनेमा को भी आगे बढ़ाना होगा। कई बार दक्षिण भारत या अन्य भाषाओं की फिल्मों में ऐसी कहानियाँ होती हैं जो पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती हैं। भारत को अपनी फिल्मों को दुनिया तक पहुँचाने के लिए नेटवर्किंग और रिश्ते भी मजबूत करने होंगे। ऑस्कर जीतने का मतलब सिर्फ अच्छा कंटेंट नहीं बल्कि उन कहानियाँ को दुनिया तक पहुँचाना भी है।

(Rh/BA)

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