ओंकारनाथ जी का संगीत सुन कर भाग जाती थी अनिंद्रा, इनसे गांधी जी भी थे प्रभावित

मुसोलिनी अनिद्रा के रोग से ग्रस्त हैं। काफी इलाज के बाद भी अच्छी नींद नहीं आ रही है। उन्होंने मुसोलिनी से राग पेश करने की अनुमति मांगी। उसके बाद ऐसा जादू हुआ की सब हैरान हो गए।
Musician Omkarnath Thakur : ओंकारनाथ ठाकुर विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे(Wikimedia Commons)
Musician Omkarnath Thakur : ओंकारनाथ ठाकुर विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे(Wikimedia Commons)

Musician Omkarnath Thakur : ओंकारनाथ ठाकुर विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे। राग में माहिर थे वे अपने संगीत से लोगो को मदहोश कर देते थे। एक बार मुसोलिनी को आनिंद्रा की शिकायत थी और उस की कई प्रेमिकाओं में एक प्रेमिका बंगाली ने जिसे संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान था। उसने जब मुसोलिनी से कहा कि उसकी अनिद्रा का इलाज संगीत में है तो उसने इस बात मजाक समझा।

ये बात 30 के दशक की शुरुआत की है। वर्ष 1933 में भारतीय संगीतज्ञ ओंकारनाथ ठाकुर यूरोप की यात्रा पर थे। जब वो रोम पहुंचे तो मुसोलिनी की बंगाली प्रेमिका उनसे मिलने आई। वो उन्हें जानती थी, उसने उन्हें मुसोलिनी के आवास पर आमंत्रित किया। ओंकार ने आमंत्रण स्वीकार किया और वो मुसोलिनी से मिलने पहुंचे। उन्हें बताया जा चुका था कि मुसोलिनी इन दिनों अनिद्रा के रोग से ग्रस्त हैं। काफी इलाज के बाद भी अच्छी नींद नहीं आ रही है। उन्होंने मुसोलिनी से राग पेश करने की अनुमति मांगी। उसके बाद ऐसा जादू हुआ की सब हैरान हो गए।

 वर्ष 1950 में जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत एवं कला संकाय की स्थापना हुई, तो पंडित ओंकार नाथ ठाकुर विभाग के पहले डीन बने।(Wikimedia Commons)
वर्ष 1950 में जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत एवं कला संकाय की स्थापना हुई, तो पंडित ओंकार नाथ ठाकुर विभाग के पहले डीन बने।(Wikimedia Commons)

गाने द्वारा अनिंद्रा दूर कर दिए

ठाकुर जी ने विनम्रता से मुसोलिनी से अनुरोध किया कि वो रात के डिनर में आज केवल शाकाहारी भोजन लें। मुसोलिनी ने वैसा ही किया और खाने के बाद उन्होंने अपने हिंडोलाम के साथ आलाप लेनी शुरू की। वो राग पूरिया का आलाप ले रहे थे उस राग के नोट्स पहले तो हल्के थे फिर वो तेज होते गए। एक अजीब सी कशिश थी राग में हर कोई इससे बंधा हुआ था। इसके बाद सुनते ही सुनते 15 मिनट के भीतर ही मुसोलिनी सो गया। इस घटना के बाद मुसोलिनी को कहना पड़ा, उन्हें अपने जीवन में इतना अच्छा कभी महसूस नहीं सुना, जितना यह भारतीय संगीत सुन कर हुआ।

गांधी जी भी थे प्रभावित

महात्मा गांधी भी उनके संगीत की ताकत का लोहा मानते थे। ओंकारनाथ की प्रमुख शिष्या रही डा एन राजम बताती हैं कि गुरुजी के कंठ से निकलने वाले स्वरों के विभिन्न रूपों यथा फुसफुसाहट, गुंजन, गर्जन तथा रुदन के साथ श्रोता भी एकाकर हो जाते थे।

बन गए विश्वविद्यालय के डीन

जब पंडित मदन मोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की तो उन्होंने पंडितजी से संगीत-विभाग की बागडोर संभालने का अनुरोध किया। वर्ष 1950 में जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत एवं कला संकाय की स्थापना हुई, तो पंडित ओंकार नाथ ठाकुर विभाग के पहले डीन बने। एक कलाकार और शिक्षक के ही नहीं अपितु एक प्रशासक के रूप में भी उन्होंने अपार ख्याति अर्जित की।

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