प्रभा अत्रे: भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान

नई दिल्ली, अगर आपको शास्त्रीय संगीत सुनना है और इस पर काम करना है तो आपको अभ्यास करना होता है। शास्त्र को जानेंगे, तभी आप समझ पाएंगे कि काम क्या करना है। संगीत की अपनी भाषा है, जिसे सीखना पड़ता है। तभी आप उसका आनंद ले सकते हैं। यह कहना था भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने वाली प्रख्यात गायिका डॉ. प्रभा अत्रे का, जिन्होंने संगीत को न सिर्फ महसूस किया, बल्कि उसे आजीवन जिया।
प्रभा अत्रे संगीत गाते हुए
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डॉ. प्रभा अत्रे (Dr. Prabha Atre) का संगीत से इतना अधिक लगाव था कि उन्हें सुनने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में भारी संख्या में दर्शक पहुंचते थे। उन्होंने एक बार कहा था, “सुरों की साधना पानी पर खिंची लकीर जैसी उठते ही मिट जाने वाली है।“

डॉ. प्रभा अत्रे किराना घराने की प्रसिद्ध गायिका थीं। उनका जन्म पुणे में 13 सितंबर 1932 को हुआ था। पुणे के आईएलएस लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

हालांकि, शुरू से ही संगीत में रुचि होने की वजह से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। इस दौरान उन्होंने गायन के साथ ही नृत्य का भी प्रशिक्षण लिया। संगीत की बारीकियों को सीखने के लिए उन्होंने सुरेशबाबू माने समेत कई संगीत के दिग्गजों से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल की। डॉ. प्रभा अत्रे ने एक बार कहा था कि मैं अपने बचपन के दिनों से उन्हें सुना करती थीं।

प्रसिद्ध गायिका की एक खासियत थी कि वे अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं भूलती थीं। उनका मानना था कि आज वह जो कुछ भी हैं, उसके पीछे उनके गुरुओं का योगदान है।

शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने स्वरमयी गुरुकुल संस्था की स्थापना की। उन्होंने कुछ वर्षों तक आकाशवाणी में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने मुंबई के एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफेसर भी काम किया। बाद में वह विश्वविद्यालय में संगीत विभाग की प्रमुख भी बनीं।

शास्त्रीय संगीत में योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। अत्रे को पद्मश्री (1990), पद्म भूषण (2002) और 2022 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए गए। उनके नाम एक चरण से 11 पुस्तकें जारी करने का विश्व रिकॉर्ड भी दर्ज है।

मंच पर मधुर आवाज और नियंत्रण के साथ उन्होंने सुरों की आवाज का ऐसा जादू बिखेरा कि शायद ही कोई ऐसा संगीत प्रेमी होगा, जो उन्हें भुला पाए। उनकी खासियत ही ऐसी थी कि वह कठिन बोलों को भी सरलता से दर्शकों के दिलों तक आसानी से पहुंचा देती थीं। इसी प्रतिभा ने प्रभा अत्रे को अपने दौर की सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया।

[SS]

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