
शुरुआती जीवन और फिल्मी सफ़र की शुरुआत
राज खोसला (Raj khosla) का जन्म 31 मई 1925 को पंजाब में हुआ था। बचपन से ही उन्हें संगीत से गहरा लगाव था और वो गायक बनना चाहते थे। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में भी काम किया, लेकिन किस्मत ने उन्हें फिल्म निर्देशन की ओर मोड़ दिया।
उनका पहला कदम फिल्मों की दुनिया में बतौर सहायक निर्देशक था। इस दौरान उन्होंने गुरुदत्त जैसे महान निर्देशक के साथ काम किया। यहीं से उन्हें सिनेमा की बारीकियों की समझ मिली और फिर उन्होंने खुद निर्देशन की कमान संभाली।
पहली पहचान: 'सीआईडी'(CID) और वहीदा रहमान का डेब्यू ( Debut)
राज खोसला (Raj khosla) की पहचान सबसे पहले 1956 में आई फ़िल्म 'सीआईडी' (CID) से बनी। इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता देव आनंद को लीड रोल में लिया और वहीदा रहमान को पहली बार पर्दे पर लाया — वो भी एक वैंप (खलनायिका) के रूप में।
फिल्म की शुरुआत में जब वहीदा रहमान बिना चेहरा दिखाए सिर्फ अपनी आवाज़ में कहती हैं, "मैं हूँ, उसे किसी तरह रास्ते से हटा दो…", तभी से दर्शकों को फिल्म की रहस्यमयी दुनिया में खींचे चले आये।
महिला की कहानियों को नया मंच
राज खोसला (Raj khosla) उन निर्देशकों में से थे, जिन्होंने महिला पात्रों को सिर्फ सजावटी चीज़ की तरह नहीं दिखाया, बल्कि उन्हें मजबूत, भावुक और निर्णायक भूमिकाएं दीं।
'मेरा साया'(Mera Saya) और 'वो कौन थी' (Wo Kaun thi) जैसी फिल्मों में साधना का अभिनय आज भी याद किया जाता है।
'दो बदन' में आशा पारेख को उनकी एक्टिंग का असली मौका मिला।
'मैं तुलसी तेरे आंगन की' (Mai Tulsi Tere Aangan Ki ) (1978) में उन्होंने दो महिलाओं के आत्मसंघर्ष और सम्मान की कहानी दिखाई — एक पत्नी (नूतन) और एक प्रेमिका (आशा पारेख)। इस फिल्म में नूतन को 42 साल की उम्र में फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला।
वो कौन थी',(Wo Kaun thi) 'मेरा साया' (Mera Saya) और म्यूज़िकल जादू
राज खोसला (Raj khosla) की फिल्मों का संगीत हमेशा खास रहा। उन्होंने मदन मोहन, ओ.पी. नैय्यर और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया।
वो कौन थी’ (Wo Kaun thi) का गाना ‘लग जा गले’ आज भी अमर है। मज़े की बात यह है कि जब राज खोसला (Raj khosla) ने पहली बार यह गाना सुना था, तो उन्हें पसंद नहीं आया! लेकिन बाद में जब उन्होंने दोबारा सुना, तो खुद को कोसते हुए कहा, "मैं इतना शानदार गाना छोड़ देता ?" और फिर वो गाना इतिहास बन गया।
‘झुमका गिरा रे’ जैसा लोकप्रिय गाना भी राज खोसला (Raj khosla) की फिल्म 'मेरा साया'(Mera Saya) से ही था, जिसे हाल ही में 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' ( Rocky Aur Rani kii Prem Kahani) में फिर से इस्तेमाल किया गया।
थ्रिलर और सस्पेंस का उस्ताद
राज खोसला (Raj khosla) को 'सस्पेंस किंग' भी कहा गया। उन्होंने साधना को लेकर बनाई गई थ्रिलर फिल्मों की एक तिकड़ी बनाई — 'वो कौन थी'(Wo Kaun thi) (1964), 'मेरा साया'(Mera Saya) (1966) और 'अनिता'(Anita) (1967)।
इन फिल्मों में उन्होंने रहस्य, संगीत और भावनाओं का ऐसा ताना-बाना बुना कि दर्शक आख़िरी सीन तक सस्पेंस में डूबे रहते थे।
मेरा गांव मेरा देश (Mera Gaon Mera Desh) : शोले की राह तैयार करती फिल्म
1971 में आई राज खोसला (Raj khosla) की फिल्म 'मेरा गांव मेरा देश' (Mera Gaon Mera Desh) ने डाकू-एक्शन शैली में कमाल कर दिया। धर्मेंद्र इस फिल्म में एक चोर के किरदार में हैं, जो बाद में गांव को डाकुओं से बचाता है।
इस फिल्म में:
धर्मेंद्र के साथ विनोद खन्ना ने डाकू जब्बर सिंह का यादगार रोल निभाया। जयंत (अमजद ख़ान के पिता) एक रिटायर्ड फौजी बने हैं, जो धर्मेंद्र को सही रास्ते पर लाते हैं। फिल्म का गाना 'हाय शर्माऊं किस-किस को बताऊं' एक मेला सीन में फिल्माया गया है, जिसमें लक्ष्मी छाया अपने डांस के जरिए डाकुओं के छिपने की जगह बताती हैं। यह गाना फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है, न कि सिर्फ मनोरंजन करता है। यह फिल्म बाद में 1975 में आई 'शोले' के लिए एक तरह से आधार बन गई, जिसे आज हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्मों में गिना जाता है।
मुमताज़ और बाकी कलाकारों को चमकाने वाले राज खोसला (Raj khosla) ने कई ऐसे सितारों को नया जीवन दिया जो या तो बी-ग्रेड फिल्मों में काम कर रहे थे या उन्हें मुख्यधारा में जगह नहीं मिल रही थी I मुमताज़: जब वह कम बजट की फिल्मों में काम कर रही थीं, तब 'दो रास्ते' (1969) से उन्हें राज खोसला ने एक मुख्यधारा अभिनेत्री बना दिया। सिमी ग्रेवाल: 'दो बदन' के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला।
आशा पारेख: जिन्हें सिर्फ गानों और डांस के लिए जाना जाता था, उन्हें राज खोसला (Raj khosla) ने गंभीर अभिनय के मौके दिए।
संगीत से प्यार
राज खोसला (Raj khosla) खुद संगीत में प्रशिक्षित थे। इसलिए उनकी फिल्मों के गानों में न केवल मधुरता होती थी, बल्कि उन्हें फिल्माने का तरीका भी बहुत खास होता था। हर गाना कहानी को आगे बढ़ाता था, पात्रों की मनोस्थिति दिखाता था और दर्शकों को भावनाओं से जोड़ता था।
निजी जीवन: अनुशासन और प्यार का मेल
राज खोसला ( Raj khosla) एक पारंपरिक सोच वाले पिता थे। उनकी बेटियों अनीता और उमा ने बताया कि उन्हें पसंद नहीं था कि लड़कियां पैंट पहनें या बिना दुपट्टे के घर से निकलें।बेटियों को थिएटर जाने की भी अनुमति नहीं थी। लेकिन वो अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे और भावनात्मक रूप से उनसे गहराई से जुड़े हुए थे। उनकी बेटी अनीता खोसला ने लेखक अम्बरिश रॉय चौधरी के साथ मिलकर उनके जीवन पर किताब लिखी — 'राज खोसला – द ऑथराइज़्ड बायोग्राफ़ी'। इसमें राज खोसला (Raj khosla) के करियर, निजी ज़िंदगी और सिनेमा के प्रति जुनून को विस्तार से बताया गया है।
मतभेद भी लेकिन फ़िल्मों पर नहीं पड़ा असर
राज खोसला (Raj khosla) एक मूडी और टेंपरामेंटल इंसान माने जाते थे। लेकिन चाहे कलाकारों से मतभेद हो जाए, उन्होंने कभी भी उसे अपने काम पर हावी नहीं होने दिया। उनकी फ़िल्में हमेशा उच्च गुणवत्ता की होती थीं।
अंत और विरासत
राज खोसला (Raj khosla) का निधन 1991 में हुआ, लेकिन उनकी फ़िल्में आज भी ज़िंदा हैं। 'लग जा गले', 'वो कौन थी', 'मेरा गांव मेरा देश', 'सीआईडी', 'मेरा साया' जैसी फिल्मों और गानों के जरिए वे सिनेमा प्रेमियों के दिलों में अमर हैं।
उनका सिनेमा हमें सिखाता है कि कहानी कहने का अंदाज़, भावनाओं की गहराई और संगीत की ताकत किसी भी फिल्म को अमर बना सकती है।
निष्कर्ष:
राज खोसला (Raj khosla) सिर्फ एक निर्देशक नहीं थे, वो एक कलाकार थे जो सिनेमा के हर पहलू में जान डाल देते थे। उनके बनाए गाने, सस्पेंस, महिला पात्रों की गहराई और बेहतरीन कहानी कहने की कला आज भी सिखाई जाती है। उनके बिना हिंदी सिनेमा का इतिहास अधूरा लगता है।
अगर आप कभी राज खोसला (Raj khosla) की कोई फिल्म न देखी हो, तो 'मेरा गांव मेरा देश', 'वो कौन थी' या 'मेरा साया' से शुरुआत कीजिए, आपको महसूस होगा कि सिनेमा सिर्फ आँखों से नहीं, दिल से भी देखा जाता है।