एक ऐसी फिल्म जिसे देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल के बाहर ही चप्पल उतार देते थे

साल 1975 में बॉलीवुड में एक ऐसी फिल्म बनी जिसे देखने लोग सिनेमा हॉल के बाहर चप्पल उतार कर गए थे। यहां बात हो रही है 1975 में आई फिल्म "जय संतोषी मां" की।
फिल्म "जय संतोषी मां"  जिसे  देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल के बाहर ही चप्पल उतार देते थे(Wikimedia Commons)

फिल्म "जय संतोषी मां"  जिसे देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल के बाहर ही चप्पल उतार देते थे(Wikimedia Commons)

"जय संतोषी मां"

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न्यूज़ग्राम हिंदी: भारत देश संस्कृति को मानने वाला देश है। यहां लोग धर्म और संस्कृति को लेकर बहुत संवेदनशील होते हैं। भारतीय लोगों की आस्था का पता इस बात से भी चलता है कि वे भगवान पर बनी फिल्में भी उसी सम्मान और श्रद्धा के साथ देखते हैं। रामानंद सागर की रामायण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हालांकि इस प्रेम और श्रद्धा की झलक इससे पहले भी देखने को मिली है।

साल 1975 में बॉलीवुड में एक ऐसी फिल्म बनी जिसे देखने लोग सिनेमा हॉल के बाहर चप्पल उतार कर गए थे। श्रद्धा और भक्ति का यह असर था कि फिल्म के एक सीन में दर्शक आरती की थाली से आरती तक करने लगते थे। यहां बात हो रही है 1975 में आई फिल्म "जय संतोषी मां" की। "द कश्मीर फाइल्स" के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली यह फिल्म जिसके कारण आगे चलकर माता संतोषी के कई मंदिर भी बनें।

इस फिल्म को लेकर लोगों में इतनी आस्था थी कि लोग दूर गांव से लंबा सफर करके शहर आते और सिनेमा हॉल में यह फिल्म देखते थे। फिल्म में एक सीन ऐसा भी है जिसके आने पर दर्शक आरती की थाली में दिया जलाकर आरती तक करने लगते थें। इससे पहले बहुत कम लोगों को माता संतोषी के बारे में पता था। जब तक यह फिल्म चलती थी सिनेमा हॉल के बाहर माता संतोषी के फ्रेम वाले फोटो की भी बिक्री होती थी।

<div class="paragraphs"><p>फिल्म&nbsp;"जय संतोषी मां"&nbsp; जिसे  देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल के बाहर ही चप्पल उतार देते थे</p></div>

फिल्म "जय संतोषी मां"  जिसे देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल के बाहर ही चप्पल उतार देते थे

(Wikimedia Commons)

इस फिल्म की शुरुआत के पीछे डायरेक्टर आशीष की एक दिलचस्प कहानी भी है। आशीष और उनकी पत्नी को लंबे समय तक कोई संतान न थी, फिर किसी से सुनकर उनकी पत्नी ने माता संतोषी का व्रत रखना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनके घर बेटी हुई, इससे प्रभावित होकर उन्होंने यह कहानी अपने फाइनेंसर सरस्वती गंगाराम को सुनाई। फिल्म के लिए 12 लाख रुपए इकट्ठा कर के इसे बनाया गया।

<div class="paragraphs"><p>फिल्म&nbsp;"जय संतोषी मां"&nbsp; जिसे  देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल के बाहर ही चप्पल उतार देते थे(Wikimedia Commons)</p></div>
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परदे पर आते ही फिल्म ने धूम मचा दी। देखते ही देखते 12 लाख में बनी फिल्म ने 25 करोड़ की कमाई की। उस समय शोले जैसी बड़े कलाकारों की फिल्म को मात देते हुए इस फिल्म ने इतिहास रच दिया। इस फिल्म में काम करने वाली हीरोइन अनिता गुहा का भी आगे चलकर बहुत नाम हुआ। लोग तो उन्हें माता संतोषी समझकर उनके आशीर्वाद तक लेने लगते थे।

फिल्म ने कमाई तो खूब की लेकिन इसके बाद इस फिल्म में काम करने वाले लोगों ने बुरे दिन देखें। फिल्म की हीरोइन अनिता गुहा को आगे चलकर सफेद दाग की बीमारी हो गई। इसके बाद फिल्मी दुनिया को छोड़ वह गुमनामी में चली गई। फिल्म के हीरो कानन कौशल का करियर भी इसके बाद ज़्यादा नहीं चला। फिल्म के प्रोड्यूसर ने इस फिल्म के तुरंत बाद खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर ने अपने भाइयों पर पैसे की धांधली का आरोप लगाया। इस फिल्म ने जितना भी पैसा कमाया यह इन लोगों तक नहीं पहुंचा। कई लोगों का मानना था कि ऐसा इस कारण हुआ है क्योंकि लोग धर्म के नाम पर व्यापार कर रहे थे।

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