उत्तम कुमार : मुश्किलों भरा था 'फ्लॉप मास्टर जनरल' से 'महानायक' बनने तक का सफर, मेहनत से बदली थी किस्मत

मुंबई, 2 सितंबर को बंगाली सिनेमा का जब भी जिक्र होता है, तो दिवंगत अभिनेता उत्तम कुमार का नाम जरूर लिया जाता है। उन्हें बंगाली फिल्मों का 'महानायक' (Superhero) कहा जाता है, लेकिन इससे पहले उन्हें 'फ्लॉप मास्टर जनरल' का टैग दिया गया था। करियर की शुरुआत में उनकी लगातार सात फिल्में फ्लॉप रहीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पूरी मेहनत और लगन से काम जारी रखा और लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।
उत्तम कुमार : मुश्किलों भरा था 'फ्लॉप मास्टर जनरल' से 'महानायक' बनने तक का सफर
उत्तम कुमार : मुश्किलों भरा था 'फ्लॉप मास्टर जनरल' से 'महानायक' बनने तक का सफरIANS
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उत्तम कुमार (Uttam Kumar) का असली नाम अरुण कुमार चटर्जी था। उनका जन्म 3 सितंबर 1926 को कोलकाता के अहिरीटोला इलाके में हुआ था। बचपन से ही उन्हें कला और अभिनय का शौक था, लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट में नौकरी की। साथ ही धीरे-धीरे थिएटर में भी काम करना शुरू किया और 1948 में फिल्म 'दृष्टिदान' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। यह फिल्म खास सफलता हासिल नहीं कर पाई और उसके बाद भी उनकी अगली कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं।

उत्तम कुमार का वह समय काफी मुश्किल भरा था। सात फिल्में लगातार फ्लॉप होने की वजह से लोग उन्हें 'फ्लॉप मास्टर जनरल' कहने लगे थे। यह उनकी लोकप्रियता और आत्मविश्वास के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन उत्तम कुमार ने हार नहीं मानी। उन्होंने ठान लिया था कि वह एक दिन जरूर अपनी किस्मत बदलेंगे।

1952 में उनकी जिंदगी का बड़ा बदलाव तब आया, जब उन्होंने फिल्म 'बासु परिवार' की। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही और इस सफलता ने उनके करियर को नई दिशा दी। इस फिल्म के बाद उन्होंने लगातार कई सफल फिल्में दी और बंगाली सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में शुमार हो गए। उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि लोग उन्हें 'महानायक' कहने लगे।

उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी बंगाली सिनेमा (Bengali Cinema) की सबसे प्रसिद्ध जोड़ियों में से एक थी। उन्होंने साथ में लगभग 30 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 29 फिल्में सुपरहिट रहीं। उत्तम कुमार खुद भी कई बार स्वीकार कर चुके हैं कि अगर सुचित्रा सेन नहीं होती, तो वह महानायक नहीं बन पाते। दोनों की जोड़ी को दर्शक बेहद पसंद करते थे और उनकी फिल्मों में दोनों की केमिस्ट्री को आज भी याद किया जाता है।

1966 में सत्यजीत रे की फिल्म 'नायक' ने उनके करियर को और भी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इस फिल्म में उन्होंने एक सुपरस्टार की भूमिका निभाई, जो अपने जीवन और पहचान के सवालों से जूझ रहा होता है। इस फिल्म की लोगों ने काफी सराहना की। वहीं सत्यजीत रे ने भी एक इंटरव्यू में कहा था कि उत्तम कुमार सच्चे मायनों में महानायक हैं, जिसके बाद यह नाम उनके लिए एक पहचान बन गया।

उत्तम कुमार ने हिंदी फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी। उनकी हिंदी फिल्म 'अमानुष' को खूब पसंद किया गया। इसके अलावा उन्होंने 'आनंद आश्रम', 'छोटी सी मुलाकात', और 'दूरियां' जैसी फिल्मों में भी काम किया।

दमदार अभिनय के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। 1967 में उन्हें 'एंटनी फिरंगी' और 'चिड़ियाखाना' के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। 2009 में उनकी याद में भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट भी जारी किया। कोलकाता मेट्रो स्टेशन का नाम बदलकर 'महानायक उत्तम कुमार मेट्रो स्टेशन' रखा गया।

उत्तम कुमार का निधन 24 जुलाई 1980 को हुआ। वे अपनी फिल्म 'ओगो बोधु शुंडोरी' की शूटिंग के दौरान अचानक सीने में दर्द महसूस करने लगे थे। इलाज के दौरान ही उन्होंने दम तोड़ दिया था। उनकी मौत से बंगाली सिनेमा और उनके प्रशंसकों को बहुत बड़ा सदमा लगा।

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