विद्या बालन ने बताया कि उन्हें शादी में कभी दिलचस्पी नहीं थी।
सिद्धार्थ रॉय कपूर से मिलने के बाद उनका नज़रिया पूरी तरह बदल गया।
उनका रिश्ता आज भी इस बात की मिसाल है कि प्यार और स्वतंत्रता साथ चल सकते हैं।
“मैं कभी शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन सिद्धार्थ ने मेरा नज़रिया बदल दिया”
विद्या बालन (Vidya Balan) का मानना था कि शादी का मतलब होता है अपनी आज़ादी खो देना। वो कहती हैं कि उन्हें हमेशा लगता था कि शादी के बाद एक औरत को अपने सपनों और फैसलों से समझौता करना पड़ता है। इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि वो कभी शादी नहीं करेंगी। लेकिन जब सिद्धार्थ रॉय कपूर (Siddharth Roy Kapoor) उनकी ज़िंदगी में आए, तो सब कुछ बदल गया। उन्होंने महसूस किया कि हर रिश्ता समझौते पर नहीं, बल्कि समझ पर भी टिका होता है। सिद्धार्थ के साथ रहते हुए उन्होंने सीखा कि सच्चा प्यार किसी को बाँधता नहीं, बल्कि और आज़ाद करता है।
विद्या (Vidya Balan) ने एक इंटरव्यू (Interview) में बताया कि एक बार वो ट्रिप से लौट रही थीं। सिद्धार्थ (Siddharth) रात देर तक एयरपोर्ट पर उन्हें लेने आए थे। बारिश हो रही थी, और दोनों बिना छतरी के कॉफी पीने चले गए। जब वो लौटने लगीं, तो सिद्धार्थ ने बस इतना कहा, “अब मैं घर जा रहा हूँ।” उस पल विद्या को महसूस हुआ कि यही तो घर है, यही मेरा अपना इंसान है। उसी पल उन्हें एहसास हुआ कि यही रिश्ता उनकी ज़िंदगी का सबसे सही फैसला है।
विद्या बालन हमेशा से सशक्त महिला की छवि के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने फिल्मों में भी ऐसी भूमिकाएँ निभाई हैं जो औरतों की असली ताकत दिखाती हैं। उनका यह बयान बताता है कि उन्होंने शादी किसी दबाव में नहीं, बल्कि अपनी मर्ज़ी से की। उन्होंने साबित किया कि शादी तभी खूबसूरत होती है जब वो बराबरी, भरोसे और सम्मान पर टिके। विद्या की कहानी आज की पीढ़ी की औरतों के लिए प्रेरणा है, कि शादी कोई मजबूरी नहीं, बल्कि एक चुनाव होना चाहिए।
विद्या ने यह भी बताया कि वो और सिद्धार्थ कभी-कभी बेवजह झगड़ लेते हैं। एक बार वो सिर्फ इसलिए नाराज़ हो गईं क्योंकि सिद्धार्थ ने सूरज ढलने की तस्वीर खींची लेकिन उनकी नहीं। यह बात छोटी थी, लेकिन इससे पता चलता है कि हर रिश्ता इंसानी है, हर प्यार में नखरे और भावनाएँ होती हैं। विद्या का मानना है कि ऐसे झगड़े भी ज़रूरी होते हैं, क्योंकि वो रिश्ते में सच्चाई और अपनापन लाते हैं।
आज की पीढ़ी के लिए विद्या बालन की कहानी बहुत मायने रखती है। पहले जहाँ शादी को समाज की ज़रूरत माना जाता था, अब वो आत्मनिर्णय का प्रतीक बन गई है। विद्या ने यह दिखाया कि शादी में भी स्वतंत्रता (independence) और आत्म-सम्मान (self-respect) को बरकरार रखा जा सकता है। उनके लिए शादी का मतलब था, दो बराबर लोगों का साथ आना, न कि किसी एक का झुकना।
निष्कर्ष
विद्या बालन (Vidya Balan) और सिद्धार्थ रॉय कपूर (Siddharth Roy Kapoor) की कहानी हमें यह सिखाती है कि शादी किसी “फरज़” या “समझौते” का नाम नहीं है, बल्कि एक “चॉइस” है, जहाँ प्यार और आज़ादी दोनों साथ चलते हैं। विद्या ने साबित किया कि जब रिश्ता सच्चा हो, तो शादी डर नहीं, बल्कि आत्मविश्वास बन जाती है। उनकी ज़िंदगी से यही सीख मिलती है कि सही इंसान से मिलने पर ज़िंदगी की सोच भी बदल सकती है। विद्या बालन की शादी की कहानी सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि आत्मनिर्णय और सशक्तिकरण की मिसाल है।
(RH/BA)