जब फिल्म 'गली बॉय'(Gully Boy) भारत में हिट हुई, तो पूरा देश रातों-रात बैटल रैप से जुड़ गया। हालांकि, इस तथ्य को बहुत कम लोग जानते है कि युद्ध के इस नाटकीय रूप की जड़ें अमेरिकी पॉप संस्कृति का हिस्सा बनने से पहले भारत में थीं।
रैप संगीत की उन लोकप्रिय शैलियों में से एक है जो अमेरिकी गृहयुद्ध से पहले गुलामी की पीड़ादायक स्थिति ने l दुनिया के सामने पेश की। रैपिंग लयबद्ध कविता,गली या स्थानीय भाषा के माध्यम से कहानी कहने का एक रूप है। कहानियां वो जिनमें व्यक्तिगत त्रासदी के साथ सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों तक की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होती है। 60 के दशक में रैपिंग में एक प्रमुख नाम मोहम्मद अली का था।20वीं सदी में संयुक्त राज्य अमेरिका में रैप संगीत में परिवर्तन आया था, रैपिंग के अंत में अग्रणी राजनीतिक कविताएं।जिसे बैटल रैप कहा गया।
यह एक भयंकर अहिंसक लड़ाई है,जिसमे दो रैपर एक दूसरे का उपहास कर एक दूसरे के सामने होते है। वे ऐसा तब तक करते है जब तक उनमें से एक को जवाब नहीं मिल जाता।
जिस कविता का विषय या सरंचना बिना किसी नियम के तुरंत बनाए जाते है उसे 'फ्रीस्टाइल'(Freestyle Rap) रैप कहा जाता हैं।
एमिनेम,जे-जेड से लेकर स्नूप डॉग तक, फ्रीस्टाइल रैपिंग का अमेरिकी पॉप संस्कृति में बहुत बड़ा योगदान है।
भारत ने इसी काव्य संस्कृति ने दूर देशों में पहले ही जगह बना ली थी।एक तरफ रैप अमेरिकी पॉप संस्कृति के माध्यम से भारत में लोकप्रिय हो रहा था तो वही दूसरी और रैप का भारतीय रूप, 'कविगण' अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा था।
17वीं सदी के बंगाल से कविगण के इतिहास का पता लगाना आसान है।हालाँकि, यह केवल 18वीं सदी के मध्य से 19वीं शताब्दी के मध्य तक चरम पर था।एक ओर बंगाली कविता से धार्मिक सामग्री समाप्त होती गई और दूसरी ओर कविगण सर्वोच्च शासन करता गया और बंगाली साहित्य में बाकी सब लगभग समाप्त होता गया।
बंगाल में इतने उल्लेखनीय कवियाल (कविगण गायक) थे कि उनमें से प्रत्येक पूरी तरह से एक अलग कहानी के योग्य है।
कवियाल भोलानाथ नायक 'तोरजा' (कविगण का युद्ध रैप) को अगले स्तर पर ले गए।उनकी प्रशंसा स्वयं ईश्वर चंद्र विद्यासागर(Ishwar Chandra Vidyasagar) ने यह बोलकर की है कि बंगाल की भावना को जगाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक भोलानाथ नायक हैं ।
एक और उल्लेखनीय कवियाल, एंथनी फ़िरिंगी(Antony Firingee) जो एक पुर्तगाली थे। उनके साथ उनकी प्रसिद्ध लड़ाई को 1967 में एक लोकप्रिय जीवनी फिल्म के रूप में जनता के सामने पेश किया गया था। जिसमें प्रतिष्ठित बंगाली अभिनेता उत्तम कुमार(Uttam Kumar) ने एंथनी फ़िरिंगी का किरदार निभाया था।
यदि 19वीं सदी की बात की जाए तो भोलानाथ नायक(Bholanath Nayak) बंगाल में दिखावटीपन और मनोरंजन के चेहरे के रूप में जाने जाते थे। नायक शो समाप्त होने के लंबे समय बाद तक अपनी विशिष्ट वितरण शैली से सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थे। वही बाकी के सभी कवियाल अपने मूल्य पर केंद्रित रहने वाले थे।
उनके अनुयायी उन्हें 'भोला मोइरा' के नाम से जानते थे।'मोइरा' मिठाई की दुकान पर काम करने वालों को आम बोलचाल की भाषा में बोला जाता है। नायक को इस नाम से इसलिए जाना जाता था क्योंकि वे अपने पिता के साथ उनकी मिठाई की दुकान पर काम करते थे,साथ ही वह मिठाई अच्छी बनाते थे।
नायक की पोती खिरोदमोनी देवी का विवाह "रसगुल्ला के पिता" नोबिन चंद्र दास(Nobin Chandra Das) से हुआ था।
ऐसा बहुत कम होता है जब दो जुड़वां दो अलग अलग जगह पर अलग अलग समय पैदा होते है।इसे साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि ये दोनों एक दूसरे से प्रभावित है।इन दोनों ने ही अपनी संस्कृतियों को समान तरीकों से प्रभावित किया है।
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