बॉलीवुड के संगीतकार किशोर कुमार को या फिर जिन्हें किशोर दादा के नाम से भी जाना जाता है उन्हें कौन नहीं जानता? 90 के दशक के सभी बच्चे किशोर दादा के गाने सुनकर ही तो बड़े हुए हैं। आज भी किशोर दादा के गाने उतने ही प्रचलित हैं उतने ही शौक से और आनंदित होकर लोग सुनते हैं जितना कि पहले सुना करते थे। किशोर दादा ने अपनी आवाज के जादू से फिल्म निर्माण और निर्देशक से भी सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया है। लेकिन क्या आपको पता है कि एक वक्त था जब आकाशवाणी और दूरदर्शन ने किशोर दादा के गानों पर बैन लगा दिया था। जी हां तो चलिए जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ?
किशोर कुमार गांगुली का रुझान बचपन से ही संगीत पर था महान अभिनेता एवं गायक के एल सहगल के गानों से प्रभावित किशोर कुमार की इच्छा थी कि वह भी गायक बने। के एल सहगल से मिलने की चाह में किशोर कुमार 18 वर्ष की उम्र में मुंबई पहुंचे लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बन चुके थेअशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप में अपनी पहचान बनाएं लेकिन खुद किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय पार्श्व गायक बनने की चाहते।
आपको जानकर हैरानी होगी कि किशोर कुमार की प्रारंभिक शिक्षा संगीत में कभी हुई नहीं। बॉलीवुड में अशोक कुमार की पहचान के कारण उन्हें पता और अभिनेता काम मिल रहा था अपनी इच्छा के विपरीत किशोर कुमार ने अभिनय करना जारी रखा जिन फिल्मों में वह कलाकार काम किया करते थे उन्हें उसे फिल्म में गाने का भी मौका मिल जाया करता था। किशोर कुमार की आवाज सहगल से काफी हद तक मेल खाते थे बतौर गायक सबसे पहले उन्हें साल 1948 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म जिद्दी में सहगल के अंदाज में ही अभिनेता देवानंद के लिए करने की दुआएं क्यों मांगू गाने का मौका मिला। और इस प्रकार अपनी संगीत से उन्होंने सबका दिल जीत लिया और एक गायक के रूप में उनका सफर शुरू हो गया। किशोर कुमार को अपने जीवन में वह दौर भी देखना पड़ा था जब उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिला तब वह स्टेज पर कार्यक्रम पेश करके अपना जीवन यापन करते थे। धीरे-धीरे उनकी पापुलैरिटी बढ़ती गई और उन्होंने सबका दिल जीत लिया।
जहां किशोर कुमार ने बॉलीवुड में अपनी पहचान एक गायक और एक अभिनेता के रूप में बनाई थी वहीं कई बार कई तरह के विवादों के शिकार भी हुआ करते थे।
सन 1975 में देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्योता मिला था। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गाने को प्रतिबद्ध कर दिया गया। आपातकाल हटाने के बाद 5 जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा “दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहां नहीं चैन वहां नहीं रहना”। और इन कणों के लिए किशोर कुमार को आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।