कोरोना काल में भी फतेहपुर के स्कूल में जलती रही जागरुकता की मशाल- शिक्षक दिवस विशेष

कोरोना काल में भी फतेहपुर के स्कूल में जलती रही जागरुकता की मशाल (सांकेतिक तस्वीर, Pixabay)
कोरोना काल में भी फतेहपुर के स्कूल में जलती रही जागरुकता की मशाल (सांकेतिक तस्वीर, Pixabay)

By: विवेक त्रिपाठी

कोरोना संक्रमण ने बहुत सारे तौर-तरीके बदले हैं, इसमें शिक्षा भी शामिल है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर का अर्जुनपुर गढ़ा प्राथमिक विद्यालय अपने जिले के लिए प्रेरणा बनकर उभरा है। यहां कोरोना संकट के दौरान भी जागरुकता की पाठशाला चलती रही है। ऐसा करने वाले इसी प्राथमिक विद्यालय के पूर्व छात्र और प्रधानाचार्य देवब्रत त्रिपाठी हैं, जिन्होंने पूरा जीवन इस स्कूल को सजाने और संवारने में लगा दिया है।

त्रिपाठी की 38 साल की कड़ी मेहनत के चलते ही कभी जर्जर भवन रहा ये स्कूल एक खूबसूरत बिल्डिंग के रूप में चमचमा रहा है। इसके परिसर में फ लदार और खूबसूरत पेड़ों की बगिया लहलहा रही है। मैदान में लगी मखमली घास स्कूल की खूबसूरती में चार चांद लगा रही है।

वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान प्रधानाचार्य देवब्रत ने विद्यालय की दहलीज के बाहर जाकर अगल-बगल के गांवों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए पाठशाला चलाई। इतना ही नहीं लोगों को संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी का पाठ पढ़ाया, मास्क सैनिटाइजर बांटे।

शैक्षणिक वतावरण को दुरूस्त रखने में विद्यालय के शिक्षकों का भरपूर सहयोग मिला। उनकी शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना ने उन्हें इस बार का राज्य पुरस्कार का हकदार भी बना दिया है। यह पुरस्कार उन्हें राज्यपाल और मुख्यमंत्री के हाथों दिया जाना है।

यमुना के कछार के प्राथमिक विद्यालय में बतौर प्रधानाध्यापक तैनात देवब्रत इसी विद्यालय के पूर्व छात्र हैं। स्कूल के प्रति लगाव के चलते वे 1982 से ही इसे सजाने और संवारने में लगे हैं।

कोरोना काल में जहां सभी स्कूल-कॉलेज बंद चल रहे हैं। संक्रमण के डर से बच्चे नहीं आ रहे हैं। वहीं अर्जुनपुर के विद्यालय में जागरूकता की पाठशाला चल रही है। कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए न केवल लोगों को जागरूक किया जा रहा था, बल्कि यहां के अध्यापक आस-पास के व्यक्तियों को बुलाकर उन्हें हाथ धोने और स्वच्छता का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है।

फतेहपुर के प्राथमिक विद्यालय में कोरोना संकट के दौरान भी जागरुकता की पाठशाला चलती रही है। (सांकेतिक तस्वीर, Pixabay)

इसके अलावा जब बाहरी राज्यों से प्रवासी कामगारों के लौटने का क्रम चल रहा था, उस समय इस विद्यालय में उन्हें क्वारंटीन भी किया गया था। उस समय भी यह प्राथमिक विद्यालय एक आदर्श क्वारंटीन सेंटर के रूप में जाना जाने लगा था।

प्रधानाचार्य देवब्रत त्रिपाठी बताते हैं कि आज जब सारी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है, ऐसे में हम सिर्फ जागरूकता से ही इसे मात दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि यह विद्यालय इसी उद्देश्य को पूरा करने में लगा हुआ है।

प्राथमिक विद्यालय अर्जुनपुर गढ़ा के प्रधानाध्यापक देवब्रत की यहां नियुक्ति बतौर सहायक अध्यापक 10 सितम्बर 1982 को हुई थी। वह बताते हैं कि उस समय इस विद्यालय का भवन बहुत ही जर्जर था और उसमें भी गांव के कुछ लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा था। फिर उन्होंने अधिकारियों के सहयोग से स्कूल की चहारदीवारी बनवाई, इससे लोगों का अवैध कब्जा खत्म हो सका।

इसके बाद विद्यालय परिसर को सुन्दर व कौतूहलपूर्ण बनाने के लिये फुलवारी तैयार की गयी। चारों तरफ फ लदार वृक्ष लगाये गये। त्रिपाठी स्वयं इसकी देखभाल करते हैं। विद्यालय के बच्चों को भी बागवानी से जोड़कर इस बगीचे में कई चीजें भी उगायी जाती हैं। विकास की दौड़ में बहुत पिछड़े बुंदेलखण्ड से सटे फ तेहपुर के गांव अर्जुनपुर गढ़ा में स्थित इस प्राथमिक पाठशाला में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ बच्चों को दोपहर का भोजन कराने के लिये एक विशाल डाइनिंग हॉल भी बनवाया गया है, जिसमें करीब 200 बच्चे साथ बैठकर खाना खा सकते हैं।

विद्यालय का विशाल बगीचा, स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने वाला माहौल और ऐसी कई चीजें हैं जिसके कारण यह प्रदेश के अन्य स्कूलों के लिये उदाहरण बन गया है।(आईएएनएस)

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