कैसे शुरू हुई लट्ठमार होली? जानिए बरसाना और नंदगांव में किस दिन मनाई जाएगी

होली सबके जीवन में उल्लास, खुशी, मस्ती, और प्रेम लेकर आती है। ब्रज क्षेत्र की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। इसे राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक मानकर खेला जाता है।
Lathmar Holi : ब्रज क्षेत्र की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। (Wikimedia Commons)
Lathmar Holi : ब्रज क्षेत्र की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। (Wikimedia Commons)
Published on
2 min read

Lathmar Holi : होली पर पूरा देश रंगीला हो जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। होली सबके जीवन में उल्लास, खुशी, मस्ती, और प्रेम लेकर आती है। ब्रज क्षेत्र की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। इसे राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक मानकर खेला जाता है। यहां लट्ठमार के अलावा लड्डू मार होली भी खेली जाती है। वहीं राजस्थान में कोड़ामार होली की पंरपरा वर्षों से है। इन सभी जगह होली के दिन महिलाएं ही पुरुषों को अलग-अलग तरह से पीटती हैं। उत्तर प्रदेश के बरसाना जिला में इस साल 18 मार्च और नंदगांव में 19 मार्च को हुरियारनें हुरियारों यानी महिलाएं पुरुषों को लट्ठ से पीटकर होली मनाएंगी।

कैसे हुई लट्ठमार होली की शुरुआत

इस होली की शुरुआत श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ मिलकर शुरू थी। इस होली में शामिल होने के लिए नंदगांव के पुरुष और बरसाना की महिलाएं आज भी जुटती हैं। वहीं बरसाना की लड्डू मार होली लट्ठमार होली के ठीक एक दिन पहले लाडिली जी के मंदिर में होती है।

इस दिन महिलाएं राजस्थानी वेशभूषा में सजकर फाग गाती है(Wikimedia Commons)
इस दिन महिलाएं राजस्थानी वेशभूषा में सजकर फाग गाती है(Wikimedia Commons)

लट्ठमार होली को लेकर बताया जाता है कि जब नंदगांव के पुरोहित बरसाना आए तब उन्हें खाने के लिए लड्डू दिए गए तो कुछ गोपियों ने उनको गुलाल भी लगा दिया। उस समय पुरोहित के पास गुलाल नहीं था तो उन्होंने लड्डू ही फेंकने शुरू कर दिए। उसी समय से लड्डू मार होली शुरू हो गई। इसके बाद में इन लड्डुओं का प्रसाद श्रद्धालुओं के लिए बरसाना पहुंचाया जाता है।

राजस्थान में होता है कोड़ामार होली

लट्ठमार होली के तरह ही राजस्थान में भी होली के दिन महिलाओं के पुरुषों को पीटने का रिवाज है। यहां की महिलाएं पुरुषों को पीटने के लिए कोड़े का इस्तेमाल करती हैं इसलिए इस होली का नाम कोड़ामार होली पड़ गया। इस कोड़ा मार होली में केवल भाभी- देवर ही हिस्सा लेते हैं। कोड़ा मार होली रंग के अगले दिन खेली जाती है। इस दिन महिलाएं राजस्थानी वेशभूषा में सजकर फाग गाती है और सड़क पर बड़े-बड़े टबों में रंग भरा जाता है। फिर भाभियां कोड़ों को रंग में भिगोकर देवरों की पीठ पर मारती हैं। यह होली हंसी-ठिठोली के प्रतीक के तौर पर 200 साल से मनाई जा रही है।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com