
जैसा की हम जानते है कि हिंदी दिवस बस आने ही वाला है, तो आइये हम बताये वो दस महान लेखक जिन्होंने अपनी लेखनी से पुरे देश को गौरवान्वित किया।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850-1885)
भारतेन्दु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक कहा जाता है। उन्होंने एक ऐसे दौर में लिखना शुरू किया जब देश लाचार था और लोग अंग्रेज़ी की ओर झुक रहे थे। उनकी रचनाओं में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। उन्होंने 'अंधेर नगरी' जैसा प्रसिद्ध नाटक को लिखा था।
मुंशी प्रेमचंद (1880-1936)
हम सभी जानते है की यह कितने प्रशिद्ध राइटर है। मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में गाँव और समाज की सच्चाई को बहुत ही सरल तरीके से दिखाया है। उनकी कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने 'गोदान', 'गबन', 'नमक का दरोगा' जैसी काफी फेमस रचनाएँ दीं है। हालाँकि उनका जीवन आर्थिक संघर्षों से भरा रहा, लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।
जयशंकर प्रसाद (1889-1937)
जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) जी को छायावाद के स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है , यह कवि, नाटककार और उपन्यासकार भी थे। उनकी रचनाएँ भारतीय संस्कृति और इतिहास से भरा हुआ हैं। उन्होंने 'कामायनी' जैसा महाकाव्य लिखा, जो हिंदी साहित्य का एक बहुत बड़ा गहना माना जाता है। उनके नाटक 'स्कंदगुप्त' और 'चंद्रगुप्त' भी बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने जीवन में बहुत दुख देखे, लेकिन उनकी कविताओं में एक अद्भुत गहराई और सौंदर्य दिखती है।
मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964)
बता दें की मैथिलीशरण गुप्त जी (Maithilisharan Gupt Ji) के समय में उन्हें 'दद्दा' कहकर पुकारा जाता था। उनकी कविताओं को अगर हम देखे तो उन में राष्ट्रप्रेम की भावना साफ झलकती है। जब उन्होंने अपना लेखन 'भारत-भारती' को लिखा था, तब सरे लोग जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थे, उनके दिलों में जोश भर आया था। अगर उनके अन्य प्रमुख रचनाओं को हम देखे तो उस में 'साकेत' और 'यशोधरा' जैसी काफी फेमस रचनाये शामिल है। मैथिलीशरण गुप्त जी को भारत सरकार द्वारा 'पद्मभूषण' से भी सम्मानित किया था।
सुमित्रानंदन पंत (1900-1977)
सुमित्रानंदन पंत जी (Sumitranandan Pant) की ज़्यादा तर कविताएँ प्रकृति की सुंदरता से भरी हुई हैं। अगर हम उनकी लेखनी को पढ़े तब ये महसूस होगा की उनकी भाषा में एक मधुर संगीत है। उन्होंने 'छायावाद' युग को एक नई दिशा दी है। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में 'युगांत', 'ग्राम्या' और 'चिदंबरा' जैसी प्रसिद्ध किताबे शामिल हैं। उन्हें अपनी महान रचना 'चिदंबरा' के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' भी मिला था।
महादेवी वर्मा (1907-1987)
महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) ने हिंदी साहित्य में महिलाओं की आवाज़ को मजबूती दी है। वह एक कवयित्री और समाजसुधारक थीं। उनकी कविताएँ 'नीरजा' और 'दीपशिखा' जैसे लेखनी को आज भी जमा करके रखा हुआ है। उनके स्मरण 'अतीत के चलचित्र' बहुत मशहूर हैं। उन्हें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' और 'पद्म विभूषण' जैसे बड़े सम्मान भी मिल चुके है।
रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974)
रामधारी सिंह 'दिनकर' (Ramdhari Singh Dinkar) को वीर रस के अमर कवि के नाम से भी जाना जाता है। उनके कविताओं में जोश और देशभक्ति की धारा बहती है। उनकी आवाज़ में एक जबरदस्त ताकत थी जो उनकी लेखनी को और मज़बूत बनाती है। 'रश्मिरथी' और 'कुरुक्षेत्र' जैसे उनके महाकाव्य आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। उनकी रचना 'उर्वशी' के लिए उन्हें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से नवाजा गया था और वह 'पद्म विभूषण' से भी सम्मानित किये गए थे।
हरिवंश राय बच्चन (1907-2003)
'मधुशाला'... यह नाम सुनते ही एक मधुर तरंग सी दिल में दौड़ जाती है। हरिवंश राय बच्चन जी (Harivanshrai Bachchan Ji) की यह रचना इतनी लोकप्रिय हुई है की वह इसी के नाम से जाने जाते है। उनकी कविताएँ 'हालावाद' की शैली में लिखी गईं, जो जीवन के दुख-सुख को एक नए अंदाज में पेश करती हैं। उन्हें 'पद्म भूषण' और 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' दोनों से ही सम्मानित किया गया था।
जैनेन्द्र कुमार (1905-1988)
जैनेन्द्र कुमार (Jainendra Kumar) ने हिंदी उपन्यासों को एक मनोवैज्ञानिक गहराई (Psychological Depth) दी थी। उनकी सभी रचनाएँ मनुष्य के मन के भीतर झांकती हैं। उनके उपन्यास 'सुनीता', 'त्यागपत्र' और 'कल्याणी' देश भर में बहुत चर्चित है। उन्हें भी 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' और 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया।
अमर गोस्वामी (1933-2012)
अमर गोस्वामी जी (Amar Goswami Ji) को अपनी रोचक और रहस्यमयी कहानियों के लिए जाना जाता है। साहित्य प्रेमियों के बीच यह इसके लिए काफी चर्चित है। उनकी कहानियाँ 'परख' और 'देवदासी' लोगो के बीच काफी प्रसिद्ध है। अपनी लेखनी कला के ज़रिये उन्होंने साहित्य को, लोगो के बीच एक नया मनोरंजन पक्ष बना कर भी दिया था।
निष्कर्ष
ये सभी महान हस्तियाँ हिंदी साहित्य की धरोहर हैं। इन्होंने न सिर्फ़ सुंदर रचनाएँ लिखीं, बल्कि समाज को बदलने का काम भी किया। हिंदी दिवस सिर्फ़ एक दिन नहीं, बल्कि इनकी विरासत को याद करने और आगे बढ़ाने का दिन है। आज के समय मे बदलाव की परिभाषा कुछ ऐसी हो गई है की लोग हिंदी लिखना और बोलना सही से भूल रहे है। इसलिए हमारे देश की इस अनमोल धरोहर को जल्द-से-जल्द बचाना होगा, ताकि हमारे आगे आने बाली पीढ़ी को इसका महत्त्व समझ आए और इसे उसी प्रकार देखे जैसी ये है और देखी जानी चाहिए। तो आइए, हम सब प्रण ले कि हिंदी को और भी अधिक पढ़ेंगे, समझेंगे और इसके गौरव को बढ़ाएंगे।
(Rh/SS)