क्या है वो द्विराष्ट्र सिद्धांत जिसने भारत और पाकिस्तान को अलग किया ?

“द्विराष्ट्र सिद्धांत” (Two Nation Theory) एक विचार था जिसके अनुसार भारत में रहने वाले हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, जिनकी संस्कृति, धर्म, जीवनशैली, परंपराएँ और राजनीतिक हित एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं।
इस तस्वीर में इंडिया का मैप है और साथ ही गाँधी जी भी दिख रहे है, और कुछ इंग्लिश में टेक्स्ट भी लिखा है
“द्विराष्ट्र सिद्धांत” (Two Nation Theory) एक विचार था जिसके अनुसार भारत में रहने वाले हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैंAi
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Summary
  • भारत का इतिहास (Indian History) अनेक विचारधाराओं, संघर्षों और आंदोलनों से भरा हुआ रहा है।

  • मोहम्मद इक़बाल (Mohammad Iqbal) (प्रसिद्ध कवि और विचारक) ने 1930 में इलाहाबाद में अपने भाषण में एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का विचार दिया।

  • द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) का सबसे बड़ा प्रभाव भारत के विभाजन के रूप में सामने आया।

भारत का इतिहास (Indian History) अनेक विचारधाराओं, संघर्षों और आंदोलनों से भरा हुआ रहा है। आज़ादी से पहले का दौर राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से बहुत संवेदनशील था। इन्हीं परिस्थितियों के बीच एक ऐसा विचार उभरा जिसने भारत के भविष्य की दिशा ही बदल दी थी जिसे “द्विराष्ट्र सिद्धांत” (Two Nation Theory) कहते है। इस सिद्धांत ने भारत को दो हिस्सों में बाँटने की नींव रखी थी भारत और पाकिस्तान। आज हम इसी द्विराष्ट्र सिद्धांत के बारे में विस्तार से जानेंगे।

क्या था द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory)?

“द्विराष्ट्र सिद्धांत” (Two Nation Theory) एक विचार था जिसके अनुसार भारत में रहने वाले हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, जिनकी संस्कृति, धर्म, जीवनशैली, परंपराएँ और राजनीतिक हित एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं। इसलिए, इन दोनों समुदायों को एक ही देश में रहना लम्बे समय के लिए संभव नहीं है। इस विचार के अनुसार, मुसलमानों को अपना अलग राष्ट्र चाहिए जहाँ वे इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार जीवन जी सकें।

किसने दिया द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory)?

द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) की जड़ें बहुत पुरानी हैं, लेकिन इसे औपचारिक रूप से मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) और मुस्लिम लीग (Muslim League) ने 1940 के दशक में सामने रखा था ।

हालाँकि, इस विचार की शुरुआत सर सैयद अहमद ख़ान ने 19वीं सदी में की थी। उन्होंने 1888 में कहा था कि “हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं” क्योंकि उनके धर्म और सामाजिक परंपराएँ एक जैसी नहीं हैं। और इसीलिए सर सैयद अहमद खान को इस सिद्धांत का जनक माना जाता है।

बाद में, मोहम्मद इक़बाल (Mohammad Iqbal) (प्रसिद्ध कवि और विचारक) ने 1930 में इलाहाबाद में अपने भाषण में एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का विचार दिया। लेकिन इस सिद्धांत को सबसे अधिक राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने का काम मोहम्मद अली जिन्ना ने किया था। 1940 में लाहौर अधिवेशन (जिसे “लाहौर प्रस्ताव” या “पाकिस्तान प्रस्ताव” कहा जाता है) में मुस्लिम लीग ने आधिकारिक रूप से इस सिद्धांत को अपनाया।

इस तस्वीर में एक हिन्दू और एक मुस्लिम खड़े है एक दूसरे के तरफ़ देखते हुए
विभाजन के समय हिंदू, सिख और मुसलमानों के बीच भयंकर दंगे हुए थे।Ai

क्यों लाया गया द्विराष्ट्र सिद्धांत ?

द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) को लाने के पीछे कई कारण रहे थे जैसे

हिंदू और मुसलमानों के बीच धार्मिक मान्यताएँ अलग थी, इनके पूजा-पद्धति, खानपान, और रीति-रिवाज अलग थे। और इसलिए मुस्लिम लीग ने इन भिन्नताओं को “अलग राष्ट्रीय पहचान” के रूप में प्रस्तुत किया था। ब्रिटिश शासन (British Rule) के दौरान जब लोकतंत्र और प्रतिनिधित्व की बातें उठीं, तो मुसलमानों को डर था कि स्वतंत्र भारत में हिंदू बहुमत का राज होगा और मुसलमानों की आवाज़ को दबा दी जाएगी।

इतना ही नहीं अंग्रेज़ों ने भी हिंदू-मुस्लिम (Hindu-Muslim) मतभेदों को बढ़ावा दिया था ताकि उनका शासन लंबे समय तक बना रहे। उन्होंने अलग निर्वाचन क्षेत्र (Separate Electorates) की व्यवस्था भी की थी, जिससे दोनों समुदायों के बीच दूरी और बढ़ गई थी। कांग्रेस एक अखिल भारतीय पार्टी थी जो धर्मनिरपेक्ष भारत की बात करती थी, लेकिन मुस्लिम लीग को लगता था कि कांग्रेस हिंदू बहुल पार्टी है और मुसलमानों के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है।

द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) का प्रभाव भारत पर क्या रहा ?

द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) का सबसे बड़ा प्रभाव भारत के विभाजन के रूप में सामने आया। 14-15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान को दो स्वतंत्र राष्ट्र बना दिए गए थे । और यह विभाजन हमारे भारतीय इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है।

विभाजन के समय हिंदू, सिख और मुसलमानों के बीच भयंकर दंगे हुए थे। लाखों लोग मारे गए और करोड़ों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े। लाखों लोग को भारत और पाकिस्तान के बीच विस्थापित किया गया था, जिससे उस समय भारी मानवीय त्रासदी देखने को मिली थी। इसके बाद राजनीतिक परिणाम कुछ यो रहा कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया, जबकि पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गया। इस विभाजन के घाव को आज भी भारत-पाक संबंधों और समाज में समय-समय पर महसूस किए जाते हैं।

द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) की आलोचना (Criticism)

ऐसा नहीं था कि जब ये सिद्धांत आए तब किसी ने इसका विरोध नहीं किया था, बल्कि कई भारतीय नेताओं ने इस सिद्धांत (Theory) का विरोध किया। जिस में महात्मा गांधी ने कहा भी था कि “भारत कभी दो भागों में बँट नहीं सकता, क्योंकि यह एक शरीर है, जिसे कोई धर्म नहीं बाँट सकता।” वहीं जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल का भी मानना था कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है, न कि विभाजन में। यहाँ तक कि कई मुसलमान नेता जैसे खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भी इस विचार को अस्वीकार किया और एक संयुक्त भारत की वकालत भी किया था।

निष्कर्ष (Conclusion)

द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास का एक ऐसा अध्याय रहा है जिसने लाखों ज़िंदगियाँ बदल दीं। यह सिद्धांत धार्मिक पहचान के आधार पर राष्ट्र निर्माण का प्रयास था, जिसका परिणाम भारत का विभाजन और पाकिस्तान का गठन हुआ। आज़ादी मिली, पर इसकी कीमत बहुत भारी थी, जान-माल का नुकसान हुआ, सामाजिक तनाव और दोनों देशों के बीच स्थायी अविश्वास भी पैदा हुई।

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