इतिहास दोबारा लिखा गया: जब दुनिया ने भुला दिया यूनिट 731 का खौफ

जब भी हम युद्ध अपराधों की बात करते हैं, सबसे पहले याद आता है हिटलर और नाज़ी जर्मनी। यह सच है कि लाखों यहूदियों को गैस चेंबर में रखा गया और उनकी मौत हो गई। लेकिन क्या आपने कभी यूनिट 731 (Unit 731) का नाम सुना है? यह जापान की एक गुप्त बायोलॉजिकल यूनिट थी, जिसने इंसानों पर इतने क्रूर प्रयोग किए कि कई बार यह नाज़ियों से भी ज़्यादा डरावने और खतरनाक साबित हुए। दुख की बात है कि यह कहानी इतिहास में दबा दी गई और जिन लोगों पर यह एक्सपेरिमेंट किए गए उनमे से कोई भी ज़िंदा नहीं बच पाया।
यूनिट 731 की बिल्डिंग
यूनिट 731 AI Generated
Published on
Updated on
4 min read

मानव इतिहास की सबसे खौफनाक प्रयोगशाला

यूनिट 731 (Unit 731) को 1936 में चीन (China) के हार्बिन शहर (मंचूरिया) में जापानी (Japan) जनरल शिरो इशीई (General Shirō Ishii) के नेतृत्व और निगरानी में बनाया गया। इसे आधिकारिक तौर पर “एपिडेमिक प्रिवेंशन एंड वॉटर प्यूरिफिकेशन डिपार्टमेंट” (Epidemic Prevention and Water Purification Department) कहा जाता था। लेकिन असलियत में यह जगह इंसानो के लिए नरक समान थी। यहाँ लोगों को इंसान नहीं माना जाता था, बल्कि केवल प्रयोग की वस्तु समझा जाता था। अनुमान है कि इन प्रयोगों में 3,000 से 10,000 कैदी मारे गए, जबकि चीन के गाँवों और शहरों में बायोलॉजिकल हथियार (Biological Weapons) या बीमारी फैलाने वाले रोगों की वजह से दो से चार लाख लोग मारे गए।

  • यूनिट 731 में हुए खौफनाक प्रयोग

जमाने वाली ठंड के प्रयोग

कैदियों को कड़कड़ाती सर्दियों में बाहर खड़ा कर दिया जाता था, जब तक उनके हाथ-पैर पूरी तरह जम न जाएँ। फिर उनके अंगों को डंडे से पीटा जाता, जिससे जमी हुई त्वचा लकड़ी की तरह चटकती और आवाज़ करती। बाद में उन्हें उबलते पानी, आग या बिना किसी इलाज के छोड़कर देखा जाता कि शरीर कैसे प्रतिक्रिया करता है।

जिंदा इंसानों पर प्रयोग

हज़ारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का बिना बेहोशी की दवा दिए पेट चीरकर प्रयोग किया गया। उनके फेफड़े (Lungs), लीवर (Liver), गुर्दे (Kidney) और पेट निकालकर देखा जाता कि कितनी देर तक वे ज़िंदा रह सकते हैं। गर्भवती महिलाओं (Pregnant Women) पर भी ऑपरेशन किए गए और उनके गर्भजात शिशु (fetus) पर रिसर्च कर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया।

जैविक युद्ध

यूनिट 731(Unit 731) ने प्लेग (Plague), एंथ्रेक्स (anthrax), हैजा (Cholera) और टायफाइड (typhoid) जैसे घातक बैक्टीरिया बड़ी मात्रा में तैयार किए। पिस्सुओं (खुजली फैलाने वाला कीड़ा) में प्लेग के कीटाणु डालकर चीनी शहरों जैसे निंगबो और चांगदे में हवाई जहाज़ से गिराया गया। संक्रमित खाना, कपड़े और कुएँ का पानी भी फैलाया गया, जिससे पूरे के पुरे गाँव बीमारियों से खत्म हो गए।

हथियारों की जाँच

कैदियों को बाँधकर उन पर ग्रेनेड (grenades), मशीन गन और फ्लेमथ्रोवर (आग उगलने वाली बंदूक) से प्रयोग किया गया। कुछ को प्रेशर चैंबर में डाल दिया जाता, जहाँ दबाव से उनकी आँखें बाहर निकल जातीं। कुछ को इतनी तेज़ी से घुमाया जाता कि उनकी मौत हो जाए।

यौन हिंसा और यौन रोगों के प्रयोग

पुरुषों और महिलाओं को ज़बरदस्ती सिफलिस (syphilis) जैसी बीमारियाँ दी जातीं। कई बार कैदियों को आदेश पर सेक्स करने के लिए मजबूर किया जाता, ताकि देखा जा सके कि बीमारी कैसे फैलती है। गर्भवती महिलाओं पर प्रयोग किए गए ताकि पता चल सके कि क्या रोग गर्भजात शिशु तक जाता है या नहीं।

भूख और प्यास से मौत

कई कैदियों को भूखा-प्यासा रखकर मरते हुए देखा गया। कुछ को घोड़े का मूत्र, समुद्र का पानी और जानवरों का खून इंजेक्शन के रूप में दिया गया ताकि देखा जा सके क्या यह इंसान को ज़िंदा रख सकता है।

मौत का पैमाना

हालांकि हज़ारों लोग लैब के अंदर मारे गए, लेकिन असली मौतें तब हुईं जब जापानी सेना ने पूरे चीन में बीमारियाँ फैलाईं। 1940 में प्लेग बमों ने क्यूज़हौ और यीवू जैसे शहरों में हज़ारों को मार डाला। एंथ्रेक्स से खेत बर्बाद हुए और हैजा की महामारी ने कई शहरों को तबाह कर दिया इतिहासकार मानते हैं कि लगभग 5.8 लाख लोग इन जैविक हमलों और प्रयोगों का शिकार बने।

लैब जहाँ पर साइंटिस्ट किसी विषय पर रिसर्च कर रहे है
हालांकि हज़ारों लोग लैब के अंदर मारे गएAI Generated

युद्ध ख़तम होने के बाद सच क्यों दबा दिया गया?

द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) खत्म होने के बाद सबको उम्मीद थी कि जैसे नाज़ी (Nazi) अपराधियों पर न्यूरमबर्ग ट्रायल हुआ, वैसे ही जापान (Japan) के अपराधियों पर भी सज़ा होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अमेरिका ने यूनिट 731 (Unit 731) के वैज्ञानिकों पर कोई मुकदमा नहीं चलाया उनको माफ़ कर दिया और बदले में उनसे उनके रिसर्च का डेटा ले लिया। यह जानकारी अमेरिका (America) को “भविष्य के बायोलॉजिकल हथियारों” के लिए काम आ सकती थी। नतीजा यह हुआ कि इन अपराधियों को सज़ा नहीं मिली। बल्कि वे जापान में डॉक्टर, प्रोफेसर और बिज़नेसमैन बन गए। उनके अपराधों को इतिहास की किताबों से मिटा दिया गया।

इतिहास की दूसरी छुपी कहानियाँ

यूनिट 731 (Unit 731) अकेली घटना नहीं है जिसे दुनिया ने भुला दिया।

1937 में नानकिंग नरसंहार हुआ, जहाँ जापानी सैनिकों ने 2 से 3 लाख चीनी नागरिकों को मार डाला और हज़ारों महिलाओं का बलात्कार किया। 1943 में बंगाल (Bengal) का अकाल आया, जहाँ ब्रिटिश (British) नीतियों के कारण 30 लाख भारतीय भूख से मर गए। 1904 से 1908 के बीच जर्मन उपनिवेशवादियों ने नामीबिया में हरैरो और नामाक्वा जनजातियों का कत्लेआम कर डाला। इसे 20वीं सदी का पहला जनसंहार कहा जाता है, लेकिन किताबों में यह नाम मुश्किल से मिलता है।

इतिहास क्यों पक्षपाती है?

होलोकॉस्ट (Holocaust) को सही तौर पर इतिहास में दर्ज किया गया है, लेकिन सवाल है कि क्यों यूनिट 731 (Unit 731) का नाम उतना नहीं लिया जाता? इसका जवाब है राजनीति और ताकत। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने जापानी अपराधियों को बचा लिया क्योंकि उनके पास “कीमती रिसर्च डेटा” था। वहीं जापान ने अपने आप को हिरोशिमा और नागासाकी का पीड़ित दिखाया, न कि अपराधी। यही कारण है कि इतिहास अधूरा और झूठा बन गया। हिटलर का नाम हमेशा होलोकॉस्ट के साथ लिया जाएगा, लेकिन जापान का यूनिट 731 (Unit 731) एक भूली हुई कहानी बनकर रह गया।

लैब जहाँ पर साइंटिस्ट किसी विषय पर रिसर्च कर रहे है
जो घटनाएँ ताकतवर देशों के हित में होती हैं, उन्हें याद रखा जाता है। और जो सच उनके खिलाफ जाता है, उसे दफना दिया जाता है।AI Generated

निष्कर्ष

यूनिट 731 (Unit 731) की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि इतिहास हमेशा निष्पक्ष नहीं होता। जो घटनाएँ ताकतवर देशों के हित में होती हैं, उन्हें याद रखा जाता है। और जो सच उनके खिलाफ जाता है, उसे दफना दिया जाता है। सच्चा इतिहास तभी लिखा जाएगा जब हम हर अपराध को बराबरी से याद करेंगे, चाहे वह नाज़ी जर्मनी (Nazi Germany) का हो, जापान (Japan) का हो, ब्रिटेन (Britain) का या किसी और देश का।

(Rh/BA)

यूनिट 731 की बिल्डिंग
POK की लड़ाई : यह अधूरी कहानी कब होगी पूरी?

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com