सिविल सेवा के टॉपर से आज़ाद हिंद फौज के सेनानी तक : सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose),पढ़ाई में टॉपर और आज़ादी के लिए अदम्य योद्धा थे। सिविल सेवा (Civil Services Examination) छोड़कर आज़ाद हिंद फौज बनाई (Azad Hind Fauj), आज़ाद हिंद रेडियो शुरू किया और अमर नारे दिए। उनका जीवन साहस, त्याग और देशभक्ति की मिसाल है।
इस फोटो में सुभाष चंद्र बोस की दो तस्वीरें हैं। एक तस्वीर में वो अपने हाथ में एक किताब पकड़े हुए हैं।
दूसरी तस्वीर में उन्होंने टोपी पहन रखी है और वो सामने की ओर देख रहे हैं।
सुभाष चंद्र बोस ने 1919 में सिविल सेवा परीक्षा में चौथी रैंक हासिल की, लेकिन 1921 में पद छोड़ दिया। (Sora AI)
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भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बिना सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के नाम के अधूरी है। यह वही शख्स हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अंग्रेज़ी शासन को न केवल ललकारा बल्कि भारत के युवाओं के दिलों में आज़ादी की लौ प्रज्वलित कर दी। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में एक संपन्न और प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस शहर के जाने-माने वकील थे, जबकि मां प्रभावती देवी एक धार्मिक और संवेदनशील स्वभाव की महिला थीं। कहा जाता है कि उनकी मां ने ही बचपन से उनके मन में देश के प्रति प्रेम और सेवा का भाव बोया। नेताजी बचपन से ही तेजस्वी, अनुशासित और आत्मसम्मान से भरे हुए थे। उनकी पढ़ाई के प्रति गहरी रुचि और उच्च नैतिक मूल्यों ने उन्हें अपने साथियों से अलग बना दिया।

पढ़ाई में अव्वल और सिविल सेवा में टॉपर (Civil Services Examination)

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) न सिर्फ साहसी योद्धा थे, बल्कि पढ़ाई में भी बेहद होशियार थे। स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक उन्होंने हमेशा टॉप रैंक हासिल की। साल 1918 में उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के साथ-साथ उनके मन में देश की हालत और अंग्रेज़ों के अत्याचारों को लेकर गहरी बेचैनी रहती थी। 1919 में उन्होंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (Civil Services Examination) पास की और चौथी रैंक हासिल की। उस समय यह भारत के युवाओं के लिए सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा मानी जाती थी। हालांकि, 1921 में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी। उनका कहना था - "मैं ऐसी सरकार की सेवा नहीं कर सकता, जो मेरे देशवासियों को गुलाम बनाए और उन पर अत्याचार करे।" उनके इस निर्णय ने देश के युवाओं में एक संदेश दिया कि देशभक्ति, करियर और आराम से बड़ी होती है।

इस तस्वीर में सुभाष चंद्र बोस और गांधी जी आमने-सामने खड़े हैं। ऐसा लग रहा है जैसे वो दोनों  किसी मुद्दे पर आपस में चर्चा कर रहे हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी और नेताजी दोनों के ही योगदान को देश याद करता है, लेकिन उनकी रणनीतियां अलग थीं। (Sora AI)

नेताजी और महात्मा गांधी: विचारों में मतभेद

स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और नेताजी दोनों के ही योगदान को देश याद करता है, लेकिन उनकी रणनीतियां अलग थीं। गांधीजी (Mahatma Gandhi) अहिंसा के मार्ग पर विश्वास रखते थे, जबकि सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि आज़ादी केवल संघर्ष और सशस्त्र क्रांति से ही मिल सकती है। यही कारण था कि कांग्रेस के भीतर भी उनके विचारों को लेकर बहस होती रहती थी।

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इस फोटो में सुभाष चंद्र बोस की दो तस्वीरें हैं। एक तस्वीर में वो अपने हाथ में एक किताब पकड़े हुए हैं।
दूसरी तस्वीर में उन्होंने टोपी पहन रखी है और वो सामने की ओर देख रहे हैं।
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सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का संघर्ष सिर्फ भारत तक सीमित नहीं था। वो विदेश में रहकर भी भारत की आज़ादी के लिए निरंतर प्रयास करते रहे। जर्मनी में उन्होंने ‘आज़ाद हिंद रेडियो’ की स्थापना की, ताकि भारतीयों तक स्वतंत्रता का महत्व और उनके विचार पहुंच सकें। यहीं से उन्होंने कई अमर नारे दिए, जो आज भी देशवासियों की जुबान पर हैं - "जय हिंद", "दिल्ली चलो", "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" इन नारों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नई ऊर्जा भर दी और युवाओं को बलिदान के लिए प्रेरित किया।

इस तस्वीर में सुभाष चंद्र बोस के साथ कई सैनिक एक पंक्ति में खड़े हैं।
नेताजी ने दक्षिण-पूर्व एशिया में जाकर आज़ाद हिंद फौज (INA) का गठन किया। उनका उद्देश्य था कि भारतीय सैनिकों की एक सेना तैयार की जाए, जो ब्रिटिश शासन को चुनौती दे सके। (Sora AI)

आज़ाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) और पराक्रम की मिसाल

नेताजी ने दक्षिण-पूर्व एशिया में जाकर आज़ाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) का गठन किया। उनका उद्देश्य था कि भारतीय सैनिकों की एक सेना तैयार की जाए, जो ब्रिटिश शासन को चुनौती दे सके। उन्होंने महिलाओं को भी फौज में शामिल किया और ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ का गठन किया, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी कदम था। साल 2021 से केंद्र सरकार ने उनके जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की, ताकि नई पीढ़ी उनकी वीरता, त्याग और नेतृत्व को याद रख सके। यह दिन केवल उनके जीवन का सम्मान नहीं, बल्कि हर भारतीय को यह संदेश देता है कि देश के लिए साहस और समर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाते।

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा पराक्रम केवल रणभूमि में नहीं, बल्कि अपने सिद्धांतों और आत्मसम्मान पर अडिग रहने में है। उन्होंने अपने करियर, आराम और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर देश की सेवा को चुना। उनका सपना केवल आज़ादी तक सीमित नहीं था, बल्कि एक मजबूत, आत्मनिर्भर और गर्वित भारत का निर्माण करना था।

इस फोटो में सुभाष चंद्र बोस की दो तस्वीरें हैं। एक तस्वीर में वो अपने हाथ में एक किताब पकड़े हुए हैं।
दूसरी तस्वीर में उन्होंने टोपी पहन रखी है और वो सामने की ओर देख रहे हैं।
नेताजी ने आज़ाद हिंद फौज और रानी झांसी रेजिमेंट बनाकर सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व किया। (Sora AI)

निष्कर्ष

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) सिर्फ एक नेता या योद्धा नहीं थे, बल्कि वो एक विचार थे, एक प्रेरणा थे और रहेंगे। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, अटूट साहस और राष्ट्र के प्रति समर्पण आज भी हर भारतीय के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है। चाहे हम छात्र हों, पेशेवर हों या आम नागरिक नेताजी की कहानी हमें याद दिलाती है कि सच्चा पराक्रम अपने देश और अपने लोगों के लिए हर परिस्थिति में खड़े होने में है। [Rh/PS]

इस फोटो में सुभाष चंद्र बोस की दो तस्वीरें हैं। एक तस्वीर में वो अपने हाथ में एक किताब पकड़े हुए हैं।
दूसरी तस्वीर में उन्होंने टोपी पहन रखी है और वो सामने की ओर देख रहे हैं।
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