

रविवार को ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों का खास उत्सव हनुक्का मनाया जा रहा था और इस दौरान बोंडी बीच पर कुछ आतंकवादियों ने फायरिंग कर दी। इस दौरान 12 लोगों की मौत हो गई और कम से कम 29 लोग घायल हो गए। न्यू वेल्स की पुलिस ने इस घटना को आतंकवादी घटना घोषित किया है। इस आतंकवादी हमले को दो लोगों ने मिलकर अंजाम दिया था जिसमें से एक को पुलिस ने मार गिराया तो वहीं दूसरे आतंकवादी का अस्पताल में इलाज चल रहा है।
यह हमला हनुक्का की पहले मोमबत्ती जलाने के उत्सव के दौरान हुआ जिसमें हजारों लोग शामिल थे। पिछले कुछ दशकों में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मुसलमान और यहूदियों के बीच तनाव हिंसा और नफरत की घटनाएं देखने को मिली हैं। इन घटनाओं को देखकर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या मुसलमान यहूदियों से नफरत करते हैं लेकिन जब सवाल को गहराई से देखा जाता है तो इसकी जड़े धर्म से ज्यादा राजनीतिक इतिहास और सत्ता संघर्ष में दिखाई देती है, पर कैसे आईये जानते हैं।
बीबीसी के एक संवाददाता ज़ुबैर अहमद ने अपने एक ब्लॉग में बताया कि उन्हें बचपन से यह सिखाया जाता है कि यहूदियों पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए और ना ही उनसे दोस्ती करनी या रखनी चाहिए। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में रह रहे एक डॉक्टर जो की कन्वर्टेड मुस्लिम हैं, उन्होंने भी अपने संवाद में यह बताया कि पाकिस्तान में भी यहूदियों के खिलाफ लोगों को भड़काया जाता है और लोगों में यहूदियों के खिलाफ नफरत भरी जाती है। यह बात सुनने में थोड़ी अजीब है कि एक धर्म दूसरे धर्म के प्रति नफरत की भावना पैदा करता है लेकिन कई हद तक सच है।
इतिहास के पन्नों को उठाकर देखें तो कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं जब आतंकवादियों के द्वारा यहूदियों पर अत्याचार या अलग-अलग तरह के हमले हुए हैं। जब इज़राइल एक अलग देश बना तो उसके बनते ही अरब मुस्लिम बहुल देशों जैसे कि इराक, मिस्र, लीबिया, मोरक्को में यहूदियों के ऊपर धमकियां हमले और संपत्तियों की छीना झपटी होने की घटनाएं मिली। वही 1960 से 2000 के दशकों में कई बार फिलिस्तीन सशस्त्र समूहों ने यहूदी आबादी पर बम विस्फोट आत्मघाती हमले और रॉकेट हमले किए जिसमें कई नागरिकों की मौत हुई।
सबसे खतरनाक हमला तो 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में देखने को मिला, जब फिलिस्तीन उग्रवादी संगठन ने इज़राइल की ओलंपिक टीम को निशाना बनाया और इस आतंकी हमले में 11 इज़राइल के यहूदी खिलाड़ियों की हत्या कर दी गई। यह घटना विश्व खेल इतिहास की सबसे भयानक आतंकवादी घटनाओं में गिनी जाती है। इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं देखने को मिली, जो यह बताती हैं कि यहूदियों को मुस्लिम समुदाय के लोग कुछ खास पसंद नहीं करते हैं, पर इसका क्या कारण है, आईए जानते हैं।
इज़राइल के अलग देश बनने और यरुशलम को लेकर हुए विवाद का इतिहास यह समझने में मदद करता है कि कैसे समय के साथ कुछ हिस्सों में मुसलमान और यहूदियों के बीच नफरत बढ़ने लगी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद फिलिस्तीन ब्रिटिश शासन के अधीन आया, 1917 की बालफोर घोषणा में ब्रिटेन ने यहूदियों के लिए राष्ट्रीय घर का समर्थन किया जिससे अरब आबादी में असंतोष पैदा हुआ। 1947 में संयुक्त राष्ट्र की विभाजन के तहत फिलीस्तीन को यहूदी और अरब देशों में विभाजित किया गया। अरब पक्ष ने इसे न्याय पूर्ण माना क्योंकि जमीन और जनसंख्या के अनुपात को लेकर उनमें असहमति थी।
1948 में इजरायल की स्थापना हुई और इस दौरान बड़े पैमाने पर फिलिस्तीनियों का पलायन भी हुआ जिसे वह नकबा कहते हैं और यहीं से राजनीतिक विरोध और गुस्सा काफी ज्यादा गहरा होने लगा। 1967 के युद्ध में इज़राइल ने पूर्वी यरुशलम पर नियंत्रण कर लिया। यरुशलम मुसलमान, यहूदी और ईसाइयों, तीनों के लिए एक पवित्र शहर है। अल-अक्सा मस्जिद और टेंपल माउंट को लेकर धार्मिक भावनाएं सीधे जुड़ने लगीं, जिसने इस विवाद को और भड़का दिया। लगातार युद्ध, नागरिक हताहत और न्याय की कमी ने गुस्से को और भी ज्यादा गहरा कर दिया और नफरत में बदल दिया जिसे चरमपंथी समूहों ने और भड़काया । इस तरह राजनीति और संघर्ष ने धार्मिक रिश्तों को जहरीला किया। यह एक बहुत बड़ी वजह बना है जिसके कारण इज़राइल के यहूदी लोगों को पूरा इस्लाम समाज ही अपना दुश्मन समझ बैठा है। [Rh]