कोविड की दूसरी लहर ने 'शीसेशन' को बदतर बना दिया है, क्योंकि भारत में कई कामकाजी महिलाएं नौकरी की उपलब्धता के बारे में चिंतित हैं। कामकाजी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को नौकरी तलाशने में कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। लिंक्डइन वर्कफोर्स कॉन्फिडेंस इंडेक्स की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। 'शीसेशन' का मतलब एक प्रकार की आर्थिक मंदी से है, जहां नौकरी और आय का नुकसान पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित कर रहा है। यह शब्द एक थिंकटैंक, महिला नीति अनुसंधान संस्थान (आईडब्ल्यूपीआर) अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी सी. निकोल मेसन द्वारा गढ़ा गया है।
8 मई से 4 जून तक 1,891 पेशेवरों की सर्वेक्षण प्रतिक्रियाओं के आधार पर रिपोर्ट से पता चला है कि कैसे महामारी की दूसरी लहर के बाद भारतीय पेशेवरों को संघर्षों का सामना करना पड़ा। इसका प्रभाव विशेष रूप से जेनरेशन जेड और कामकाजी महिलाओं में अधिक देखने को मिला। महिलाओं को आर्थिक अनिश्चितता के बीच रोजगार को लेकर चिंताजनक स्थिति में पाया गया।
अध्ययन में पाया गया कि कामकाजी पुरुषों की तुलना में कामकाजी महिलाओं का आत्मविश्वास चार गुना कम हो गया। इस असमान प्रभाव ने कामकाजी महिलाओं की वित्तीय स्थिरता को भी प्रभावित किया है, क्योंकि चार में से एक (23 प्रतिशत) महिला पेशेवर बढ़ते खर्च या कर्ज के बारे में चिंतित हैं। दूसरी ओर, 10 काम करने वाले पुरुषों में से केवल एक (13 प्रतिशत) इस संबंध में चिंतित दिखाई दिए। भारत में महामारी के हालिया चरम ने कार्य अनुभव और पेशेवर कनेक्शन के महत्व को भी बढ़ा दिया है, क्योंकि युवा भारतीय अपने पुराने समकक्षों की तुलना में उनके करियर पर कोविड-19 के प्रभाव के बारे में दोगुने से अधिक चिंतित हैं। 18 प्रतिशत बेबी बूमर्स की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत जेन जेड पेशेवर नौकरियों की कमी के कारण परेशान पाए गए।
लिंक्डइन के इंडिया कंट्री मैनेजर आशुतोष गुप्ता ने एक बयान में कहा, " जैसे कि भारत धीरे-धीरे कोविड-19 मामलों की दूसरी लहर से बाहर निकलना शुरू करता है, हम देखते हैं कि साल-दर-साल भर्ती दर अप्रैल में 10 प्रतिशत के निचले स्तर से मई के अंत में 35 प्रतिशत तक ठीक हो जाती है। इस मामूली पुनरुद्धार के बावजूद, कामकाजी महिलाओं और युवा पेशेवरों का आत्मविश्वास स्तर आज वर्कफोर्स (कार्यबल) में सबसे कम है।"
कामकाजी पुरुषों की तुलना में दोगुनी कामकाजी महिलाएं नौकरी की उपलब्धता से चिंतित हैं।(Unsplash)
गुप्ता ने कहा, " कामकाजी पुरुषों की तुलना में दोगुनी कामकाजी महिलाएं नौकरी की उपलब्धता से चिंतित हैं और 30 प्रतिशत जेन जेड पेशेवर नौकरियों की कमी के कारण चिंतित हैं। दूरस्थ नौकरियां (वर्क फ्रॉम होम) आशा की किरण हो सकती हैं, जिससे उन्हें कार्यबल में वापस उछाल में मदद करने के लिए बहुत आवश्यक लचीलापन और अवसरों में वृद्धि प्रदान की जा सकती है।"
इसके अलावा, रिपोर्ट से पता चला है कि मार्च की शुरूआत में भारत के समग्र कार्यबल आत्मविश्वास में गिरावट आई है, जिसमें आज का समग्र स्कोर 54 से अधिक है (मार्च में 58 प्लस से 4 अंक नीचे)। आत्मविश्वास में यह गिरावट मनोरंजन, डिजाइन और मीडिया एवं संचार जैसे रचनात्मक उद्योगों के पेशेवरों में दृढ़ता से परिलक्षित होती है, जिन्होंने अपने नियोक्ताओं के भविष्य के बारे में अनिश्चित होने की बात कही है। लेकिन जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था के कई हिस्से धीरे-धीरे फिर से खुलते जा रहे हैं, सॉफ्टवेयर और आईटी तथा हार्डवेयर एवं नेटवकिर्ंग के पेशेवर अपने संगठनों के भविष्य के बारे में आश्वस्त हो रहे हैं। इसके अलावा, लचीलापन और कार्य जीवन संतुलन अब वेतन और लाभ जितना ही महत्वपूर्ण हो गया है।
लचीलेपन की यह बढ़ती मांग ऐसे समय में आई है, जब घर से ही काम करने की प्रणाली या दूरस्थ अवसर लगातार बढ़ रहे हैं। हाल ही में लेबर मार्केट अपडेट के अनुसार, 2020 में दूरस्थ नौकरी पोस्टिंग में 35 गुना की वृद्धि हुई है और यह मई 2021 तक साल-दर-साल लगभग तीन गुना बढ़ गई है।(आईएएनएस-SHM)