
उन्होंने कहा कि ईरान लगातार कूटनीति और तकनीकी सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी इरना (News Agency Irna) की रिपोर्ट के अनुसार, अराघची ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी के साथ फोन पर बातचीत में यह बात कही। यह बातचीत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से 2015 के परमाणु समझौते के तहत प्रतिबंधों में छूट बढ़ाने वाले प्रस्ताव को पारित करने में विफल रहने के बाद हुई।
ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराघची ने आईएईए बोर्ड की बैठक में 'राजनीतिक कार्रवाई' की आलोचना करते हुए कहा कि ईरान का निगरानी संस्था के साथ सहयोग अंतरराष्ट्रीय नियमों के दायरे में है। ईरान के विदेश मंत्रालय ने यूरोपीय देशों के कदम को अवैध, अनुचित और भड़काऊ बताते हुए उसकी निंदा की। उन्होंने ई-3 देशों पर कूटनीति को कमजोर करने का आरोप लगाया।
फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन यानी ई3 देशों ने पिछले महीने 2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना के तहत औपचारिक रूप से 'स्नैपबैक' (Snapback) तंत्र को शुरू किया। इसके तहत अगर 2015 के परमाणु समझौते, जिसे संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) के रूप में जाना जाता है, का उल्लंघन होता है, तो ईरान पर 30 दिनों के भीतर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध फिर से लगाए जा सकते हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी के अनुसार, प्रतिबंध इस महीने के अंत में लागू होने की संभावना है।
ई-3 देशों का तर्क है कि ईरान निरीक्षकों को पूर्ण पहुंच प्रदान करने में विफल रहा है। इसके साथ ही, आरोप लगाए गए कि ईरान ने परमाणु सामग्री पर स्पष्टता नहीं दी और संयुक्त राज्य अमेरिका व अन्य पक्षों के साथ वार्ता में लौटने के लिए ठोस प्रस्ताव पेश करने की समय सीमा को नजरअंदाज किया।
ईरान ने इस साल की शुरुआत में वाशिंगटन के साथ परमाणु वार्ता के कई दौर आयोजित किए, लेकिन जून में ईरानी परमाणु ठिकानों पर इजरायल के हमलों के बाद वार्ता और आईएईए के साथ सहयोग दोनों को रोक दिया।
2015 में ईरान और छह विश्व शक्तियों ने जेसीपीओए नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 2018 में, जब संयुक्त राज्य अमेरिका इस समझौते से बाहर हो गया, तो यह कमजोर पड़ने लगा। इसके जवाब में, ईरान ने भी धीरे-धीरे इस समझौते के नियमों का पालन करना कम कर दिया।
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